कोर्ट की पहल पर बनी कमेटियों को मौतों का सही आकलन करने का काम दिया गया। इन्हीं समितियों की रिपोर्ट को अब जारी किया गया है। सवाल है कि क्या ऐसा प्रयास सारे देश में नहीं होना चाहिए? ये बात आखिर सरकारों को कब समझ में आएगी कि सच देर सबेर सामने आ ही जाता है?
तो अब बिहार में ये सरकार ने भी मान लिया कि कोरोना काल में मौतों के आंकड़े वहां दबाए गए। वहां मृतकों की संख्या में अब आधिकारिक रूप से बढ़ोतरी कर दी गई है। अब सूरत यह है कि पहले गलत आंकड़ों के सहारे कोरोना से 0.76 प्रतिशत मौत के साथ बिहार देश में 16वें स्थान पर था। बीते हफ्ते संशोधित आंकड़ों के मुताबिक राज्य में मौत की दर 1.07 फीसद हो गई है। अब तक यहां कोरोना महामारी से 9,375 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि पहले सात जून तक 5424 लोगों की मौत बताई जा रही थी। आंकड़ो में संशोधन का तात्पर्य यह है कि 72.84 प्रतिशत मौतों से राज्य सरकार अनजान थी या जानबूझ कर अनजान बनी हुई थी। ये जो बिहार की कहानी है, वह सारे देश की है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में कुछ गुजराती और हिंदी अखबारों ने प्रशंसनीय काम किए। उनकी मेहनत और साहस से उस दौर में रोज के स्तर पर जाहिर होता रहा कि सरकारी आंकड़ों और असल मौतों में कितना बड़ा फर्क है। लेकिन सरकारों पर उससे कोई फर्क नहीं पड़ा। वे अपने आंकड़ों को लेकर आज तक आगे बढ़ रही हैँ। बिहार सरकार भी इस मामले में अपवाद नहीं है।
वहां उसे सच को एक हद तक स्वीकार करना पड़ा है, तो उसका श्रेय न्यायपालिका को जाता है। हमने एक हद इसलिए कहा, क्योंकि अब बताए गए आंकड़े ही पूरा सच है, ये मानने की कोई वजह नहीं है। बहरहाल, यह ध्यान में रखना चाहिए कि पिछले महीने पटना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से कोरोना से मौत के मामलों की सही गिनती को करने को कहा था। तब मेडिकल कालेज अस्पताल में कमेटियां बनीं जिनमें प्राचार्य, अस्पताल के अधीक्षक तथा मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष शामिल किए गए। वहीं जिला स्तर पर बनाई गई टीम में सिविल सर्जन (सीएस), एक्टिंग चीफ मेडिकल ऑफिसर और सीएस द्वारा तय किए गए मेडिकल ऑफिसर को रखा गया। इन्हें जिला भर में होम आइसोलेशन, कोविड केयर सेंटर, डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर, निजी अस्पतालों व एंबुलेंस या अन्य वाहनों से अस्पताल तक लाने के दौरान हुई मौतों का आकलन करने का काम दिया गया। इन्हीं दोनों समितियों की रिपोर्ट को अब जारी किया गया है। सवाल है कि क्या ऐसा प्रयास सारे देश में नहीं होना चाहिए? ये बात आखिर सरकारों को कब समझ में आएगी कि सच देर सबेर सामने आ ही जाता है?
क्रेडिट बाय नया इंडिया