संपादकीय: अब कितनी होगी तैयारी?

आशंका यह है कि तीसरी लहर आई, तब भी उससे बचाव की तैयारियां आधी-अधूरी ही रहेंगी

Update: 2021-06-15 16:31 GMT

आशंका यह है कि तीसरी लहर आई, तब भी उससे बचाव की तैयारियां आधी-अधूरी ही रहेंगी। स्वास्थ्यकर्मियों और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी बदस्तूर जारी रहेगी। हकीकत यह है कि स्वास्थ्य व्यवस्था की खामियों को लेकर समय-समय पर इसे लेकर हाय-तौबा मचती है, लेकिन फिर बातें पृष्ठभूमि में चली जाती हैं।

कोरोना की दूसरी लहर अभी थमी नहीं है। इस बीच तीसरी लहर को लेकर आशंकाएं बढ़ रही हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि देश में चिकित्सा तैयारियों को अब पुख्ता किया जा रहा है। बल्कि इस दिशा में कोई हल होने के संकेत नहीं है। आशंका यह है कि अगर तीसरी लहर आई, तब भी उससे बचाव की तैयारियां आधी-अधूरी ही रहेंगी। डॉक्टरों, पारामेडिकल स्टाफ और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी बदस्तूर जारी रहेगी। हकीकत यह है कि स्वास्थ्य व्यवस्था की खामियों को लेकर समय-समय पर इसे लेकर हाय-तौबा मचती है, जैसा कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान देखने को मिला। लेकिन लहर कमजोर पड़ते ही वे बातें अब पृष्ठभूमि में चली गई हैं। नतीजा है कि असल हालत में कोई खास परिवर्तन नहीं आ रहा है। प्रश्न है कि आखिर इस देश में हेल्थ वर्करों की इतनी कमी क्यों है? फिर जितने भी डॉक्टर मौजूद हैं, क्या उन्हें पर्याप्त सुविधाएं दी गई हैं, जिनसे वे गांव- गांव तक इलाज पहुंचा सकें? ये कमी नई बात नहीं है।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) ने 2005 में ही ग्रामीण इलाकों में नियुक्त किए जाने वाले डॉक्टरों के लिए वेतन बढ़ाने, उनकी सेवानिवृति आयु बढ़ाने, उनकी पत्नी को उसी जगह पर योग्यतानुसार नौकरी देने, पति-पत्नी को एक जगह नियुक्त करने जैसी अनुशंसा की थी। लेकिन ज्यादातर राज्यों इन पर कोई काम नहीं हुआ। आईएमए 2006 से ही बराबर कहती रही है कि गांवों में तैनात किए जाने वाले स्वास्थ्यकर्मियों की बुनियादी सुविधा बढ़ाने पर ध्यान दिया जाए। मसलन, अस्पताल के नजदीक उनके आवास की व्यवस्था हो और उनके बच्चों को पढ़ने लिखने की सुविधा दी जाए। अगर ऐसा हो, तो गांवों में जो दुर्दशा इस बार दिखी, उसे एक हद तक रोका जा सकता है। आखिर अगर कोई डॉक्टर गांव जाकर इलाज नहीं करना चाहता, तो उसकी वजह यही है कि शहरी इलाकों सुविधाएं एक बड़ा आकर्षण है। लेकिन सिर्फ डॉक्टरों की तैनाती ही काफी नहीं है। अगर वहां अस्पताल और बुनियादी सुविधाएं ना हों, तो स्वास्थ्यकर्मी भी क्या कर लेंगे? इस बार जब शहरों में ऑक्सीजन और वेंटीलेटर जैसी आम चीजों को लेकर अफरा-तफरी मच गई, तो गांवों की बात तो करने का किसी के पास वक्त ही नहीं था। लेकिन कोरोना वायरस ने बताया है कि महामारी गांव-शहर, अमीर-गरीब में फर्क नहीं करती। इसलिए वक्त अब जागने का है। लेकिन सचमुच सरकारें जागेंगी, इसकी उम्मीद कम है।
क्रेडिट बाय नया इंडिया 
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