By लोकमत समाचार सम्पादकीय
समाज में क्रूरता की घटनाएं किस तरह से बढ़ती जा रही हैं, मंगलवार को सामने आए दो मामले इसकी ज्वलंत मिसाल हैं। पहली घटना ओडिशा के कटक शहर में हुई, जिसमें पंद्रह सौ रु. लौटाने में असमर्थ एक युवक को दोपहिया वाहन से बांधकर करीब दो किलोमीटर तक घसीटा गया। हालांकि इस संबंध में शिकायत के बाद दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है लेकिन हैरानी की बात है कि उक्त दोनों आरोपियों की किसी को दिनदहाड़े सड़क पर पूरे दो किमी तक घसीटने की हिम्मत कैसे पड़ गई और किसी ने उन्हें रोका क्यों नहीं? यह भी कम हैरानी की बात नहीं है कि रोड पर किसी यातायात कर्मी की नजर भी उन पर नहीं पड़ी!
दूसरी घटना में मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के अटकोहा गांव में एक व्यक्ति ने मोबाइल चुराने के संदेह में आठ साल के एक बच्चे को कुएं में लटकाते हुए गिराने की धमकी दी। घटना के वक्त मौजूद चौदह वर्षीय एक लड़के ने इसका वीडियो शूट किया जिसमें आरोपी व्यक्ति लड़के को हाथ से पकड़कर कुएं में लटकाए हुए दिख रहा है और उसे पानी में गिराने की धमकी दे रहा है। हालांकि इन दोनों घटनाओं में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है लेकिन हकीकत यह है कि कानून व्यवस्था को हाथ में लेने की ऐसी निर्दयतापूर्ण सैकड़ों घटनाएं देश में रोज होती हैं और उनमें से बहुत सी तो प्रकाश में भी नहीं आ पातीं।
लड़कियों के साथ बीच रास्ते में सरेआम छेड़खानी करने, उन्हें मार तक डालने की घटनाएं अक्सर पढ़ने को मिलती हैं। ऐसी व्यक्तिगत घटनाओं के अलावा भीड़ द्वारा कानून को हाथ में लेने और निर्दयता दिखाने की घटनाएं भी अब विरल नहीं रह गई हैं। बच्चा चोरी के संदेह में साधुओं को पीट-पीटकर अधमरा कर देने की घटनाएं देश के अलग-अलग हिस्सों से सामने आ चुकी हैं। बेशक ऐसी घटनाओं में अफवाहों का बड़ा हाथ होता है और सोशल मीडिया उन्हें फैलाने का एक बड़ा माध्यम बनकर उभरा है। लेकिन कानून व्यवस्था के प्रति अविश्वास भी ऐसी घटनाओं में झलकता है क्योंकि किसी को अगर किसी के प्रति संदेह भी हो तो उसे पुलिस में शिकायत दर्ज करानी चाहिए क्योंकि सजा देने का अधिकार कानून-व्यवस्था को ही होता है। हालांकि दोषियों को जांच-पड़ताल के बाद सजा मिलती ही है, लेकिन लोगों के पास शायद इतना धैर्य नहीं रह गया है कि वे अगर किसी को दोषी समझते हैं तो उसे सजा दिलाने के लिए वैध तरीके से आगे बढ़ें। लोगों को कानून हाथ में लेने से रोकने के लिए उनमें कानून व्यवस्था का डर पैदा करने की जरूरत तो है ही, नैतिक रूप से भी हमें एक ऐसे समाज के निर्माण पर जोर देना होगा जहां लोगों के अंदर स्वयं ही जिम्मेदारी की भावना हो, उनके भीतर करुणा हो और कानून व्यवस्था को हाथ में लेने के बजाय वे एक जिम्मेदार नागरिक बनें।