आर्थिक बहाली बनाम तीसरी लहर
अब इस बात में कोई शक नहीं रह गया है कि भारत में कोरोना की तीसरी लहर आ चुकी है
आलोक जोशी अब इस बात में कोई शक नहीं रह गया है कि भारत में कोरोना की तीसरी लहर आ चुकी है। राहत की बात यह है कि फिलहाल ओमीक्रोन रफ्तार में भले तेज हो, लेकिन इसकी मारक क्षमता पिछले अवतारों के मुकाबले कम लग रही है। फिर भी, इस बात का हिसाब लगना शुरू हो गया है कि बीमारी फैली, तो अर्थव्यवस्था को कितना झटका लग सकता है? इस फिक्र की वजह साफ है। कोरोना की भारी मार के बावजूद पिछले डेढ़ साल में बड़ी कंपनियों का मुनाफा रिकॉर्डतोड़ रफ्तार से बढ़ा है। वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान देश की 4,000 से ज्यादा लिस्टेड कंपनियों का शुद्ध लाभ 57 फीसदी से ज्यादा बढ़ा और यह 5.31 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इन कंपनियों के मुनाफे का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में अनुपात भी 2.63 प्रतिशत पर पहुंचा, जो 10 साल का नया रिकॉर्ड है।
इससे भी चौंकाने वाले नतीजे हैं देश की सबसे बड़ी 500 कंपनियों के। उनके मुनाफे में तो 75 फीसदी की रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है, और वह आंकड़ा है 6.22 लाख करोड़ रुपये। जबकि इसी साल उनकी आमदनी की रफ्तार में 2.5 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है। बिजनेस पत्रिका फॉर्च्यून इंडिया के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में भी यह रफ्तार जारी रहने के संकेत साफ हैं। पहली छमाही में, यानी अप्रैल से सितंबर तक ही लिस्टेड कंपनियों का मुनाफा पिछले साल के आंकडे़ के 80 फीसदी से ऊपर पहुंच चुका था। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनियों के मुनाफे में इस साल 34 प्रतिशत और अगले साल भी उसके ऊपर 15 प्रतिशत की बढ़त दिखने के आसार हैं।
यह चमत्कारी मुनाफा तब हो रहा है, जब पिछले वित्त वर्ष में जीडीपी बढ़ने के बजाय 7.3 प्रतिशत गिरी थी और इस साल भी कहने को उसमें 9.5 प्रतिशत की बढ़त दिखने वाली है, लेकिन ऐसा हो भी गया, तब भी वह दो साल पहले के मुकाबले सिर्फ 1.5 फीसदी ऊपर पहुंच पाएगी। अब कोरोना की नई लहर के विकराल होने के साथ ही आशंका बढ़ने लगी है कि यह 1.5 फीसदी की बढ़त भी कायम रह पाएगी या नहीं? अभी तक तो लग रहा है कि सरकारें लॉकडाउन लगाने के मूड में नहीं हैं। कहना मुश्किल है कि यह संकल्प कब तक टिका रहेगा। लेकिन उसके बिना ही नुकसान का हिसाब-किताब शुरू हो चुका है। एचडीएफसी बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि ओमीक्रोन से जीडीपी को करीब 0.3 प्रतिशत की चोट पहुंच सकती है, जबकि रेटिंग एजेंसी इक्रा का अंदाजा है कि यह नुकसान 0.4 प्रतिशत हो सकता है। तीसरा आकलन इंडिया रेटिंग का है। इसके मुताबिक, अर्थव्यवस्था को 0.1 फीसदी का नुकसान हो सकता है।
पूरी दुनिया का हाल देखें, तो लगता है कि भारत में अभी सिर्फ ट्रेलर दिख रहा है। अमेरिका में एक दिन में 10 लाख केस आ चुके हैं और ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया व फ्रांस में भी अब तक के रिकॉर्ड टूट चुके हैं। इन देशों की जनसंख्या की भारत से तुलना करें, तो तस्वीर की भयावहता का अंदाजा होगा। इसके साथ ही दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों और वित्त मंत्रियों के सामने नई चुनौती खड़ी हो रही है। पिछले करीब दो साल से पश्चिमी देशों ने जिस तरह नोट छाप-छापकर बांटे हैं, उसने अब सभी देशों में महंगाई के भूत को जगा दिया है। इससे निपटना ही इन बैंकों का मुख्य काम होता है। यानी, अब उन्हें पैसे की सप्लाई पर लगाम कसनी है। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने तो कह भी दिया है कि वह तय समय से तीन महीने पहले ही यह काम शुरू करेगा। ब्रिटेन में यह कसरत शुरू हो भी चुकी है। मगर चीन की अर्थव्यवस्था ने आखिर कौन सी बूटी खा ली है कि दुनिया भर के त्रास का असर वहां नहीं दिख रहा है? इस सवाल का एक जवाब तो यह है कि चीन में क्या होता है, उसका पता लगाना संभव नहीं है। लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि चीन ने पिछले दिनों अपने देश के अमीरों को चेतावनी दी थी कि देश में गैर-बराबरी बढ़ रही है, जिसको बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अमीरों और बड़ी-बड़ी कंपनियों को बात का मतलब तुरंत समझ में आ गया और उन्होंने अपनी तरफ से मोटी-मोटी रकम सरकार के हवाले करनी शुरू कर दी। फिर, सिर्फ तीन मामले मिलने पर पिछले हफ्ते 12 लाख की आबादी वाले एक पूरे शहर यूत्जू में लॉकडाउन लगा दिया गया। लेकिन चीन की भारत से तुलना न हो सकती है, न होनी चाहिए।
भारत की अपनी समस्याएं कम नहीं हैं। हमारे देश में पश्चिमी देशों से काफी ज्यादा महंगाई बर्दाश्त करने की क्षमता है, पर अब वह स्थिति आ रही है, जब अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़ेगा ही, अगर इसे काबू न किया गया तो। अमेरिका में जैसे ही लगाम कसी जाएगी, भारत जैसे देशों से डॉलर निकलकर अमेरिका जाने शुरू हो जाएंगे। पिछले कुछ समय से बिकवाली दिख भी रही थी, लेकिन वह कितनी टिकेगी, देखना बाकी है। भारत के शेयर बाजार में अपने लोगों का पैसा भी बड़ी मात्रा में लग रहा है। लेकिन अगर बाजार गिरने लगा, तो इनमें से कितने टिकेंगे, यह देखना भी बाकी है। दूसरी तरफ, महंगाई भले ही हमारे हिसाब से आसमान पर न हो, लेकिन अगर पड़ोसी देशों से ज्यादा रही, तो निर्यात पर उसका दबाव पड़ना तय है। और, इस चक्कर में बहुत सी चीजें विदेश से आनी शुरू हो जाती हैं। यह व्यापार संतुलन के लिए अच्छी खबर नहीं है। शायद यही वजह है कि ज्यादातर अर्थशास्त्री मान रहे हैं कि फिलहाल रिजर्व बैंक ब्याज दरों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा और वह दूसरे तरीकों से महंगाई को काबू करने की कोशिश करता रहेगा। लेकिन उससे पहले अब चुनौती वित्त मंत्री के सामने पहुंचने वाली है। कोरोना की तीसरी लहर के बेकाबू होने का खतरा अगर छोड़ भी दें, तब भी इस वक्त समाज और कारोबार के तमाम तबके ऐसे हैं, जिन्हें या तो सरकार से मदद चाहिए या यह भरोसा कि जो मदद मिल रही है, उसमें कटौती नहीं की जाएगी। यह तस्वीर भी आने वाले दिनों में साफ होगी।