अनलॉक की प्रक्रिया में तेजी आने से बढ़ रही हैं आर्थिक गतिविधियां, रफ्तार पकड़ रही अर्थव्‍यवस्‍था

कोरोना महामारी ऊंचाइयां छूने के बाद अब धीरे-धीरे नीचे आने लगी है।

Update: 2020-10-30 13:50 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना महामारी ऊंचाइयां छूने के बाद अब धीरे-धीरे नीचे आने लगी है। हालांकि इसकी दूसरी लहर आने की आशंका भी जताई जा रही है, लेकिन यदि कोरोना से बचाव में लोगों ने लापरवाही नहीं की तो फरवरी तक इसका प्रभाव क्षीण होने की आशा है। पिछले आठ महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था को इससे जो नुकसान हुआ है, उसके फलस्वरूप वर्तमान वित्त वर्ष में जीडीपी में लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है, जो पूरे विश्व की जीडीपी की गिरावट के बराबर ही है। अनलॉक की प्रक्रिया में जैसे जैसे तेजी आ रही है, आर्थिक गतिविधियां बढ़ रही हैं। कल-कारखानों में उत्पादन शुरू हो गया है, यद्यपि पूरी क्षमता में नहीं, यातायात के साधन आंशिक रूप से ही सही, चालू हो गए हैं। बाजारों में रौनक लौट रही है। सरकारी और निजी कार्यालयों और संस्थानों में सुचारु रूप से काम होने लगा है। बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर शहरों में काम पर लौट रहे हैं। जन जीवन धीरे धीरे सामान्य हो रहा है।

कृषि की पैदावार आशातीत रही है जो कोरोना काल की विभीषिका को कम करने में सहायक सिद्ध हुई। देश में अनाज का उत्पादन इस वर्ष 298 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो 2018-19 के 285.21 मिलियन टन और पिछले वर्ष के 291.95 मिलियन टन से अधिक है। दालों का उत्पादन पिछले वर्ष 23.02 मिलियन टन हुआ था, जबकि इस वर्ष 25 मिलियन टन संभावित है। दूध के उत्पादन में इस वर्ष 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है। वित्त वर्ष 2012 से 2018 के बीच खाने पीने की चीजों पर लोगों का दूध एवं दुग्ध पदार्थो पर औसत खर्च 21 प्रतिशत था। वर्तमान वित्त वर्ष में इसके बढ़ने का अनुमान है। प्रति व्यक्ति प्रति दिन दूध का उपभोग पिछले वर्ष 411 ग्राम था जो बढ़ कर इस वर्ष 428 ग्राम अनुमानित है।

कम दाम की कारों की मांग शहरों में बढ़ रही है, जहां लोग कोरोना से बचाव के लिए सार्वजनिक वाहनों की अपेक्षा निजी वाहन चाहते हैं। बाइक और ट्रैक्टरों की मांग गांवों में बढ़ी है। किसान अपनी फसल अब अपने क्षेत्र की मंडी में बेचने को बाध्य नहीं हैं, पूरे देश में कहीं भी बेच सकते हैं, जहां उन्हें अच्छी कीमत मिले। ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका अच्छा असर पड़ेगा, जो औद्योगिक उत्पादों की मांग बढ़ाएगा। स्टील के उत्पादन में भी बढ़ोतरी हुई है। ऑटो सेक्टर में सुधार और विदेशों में स्टील की बढ़ती मांग ने इस उद्योग को बल दिया है। कोरोना काल में भारतीय स्टील कंपनियों ने अपना करीब 60 प्रतिशत उत्पाद निर्यात किया है, सबसे अधिक चीन को। मांग में वृद्धि के कारण स्टील की कीमत में दो हजार रुपये प्रति टन की बढ़ोतरी हुई है।

उपभोक्ता वस्तुओं की देश की बड़ी कंपनियों में शामिल एक कंपनी ने इस वर्ष की दूसरी तिमाही में अनुमान से अधिक व्यापार किया। इस अवधि में उसने 8.7 प्रतिशत अधिक लाभ कमाया जो दर्शाता है कि बाजार में मांग वाकई में बढ़ी है। डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया में तेजी आने से आइटी कंपनियों के काम में भी तेजी आ रही है। लॉकडाउन के कारण इनफोसिस का डिजिटल व्यापार से इस वर्ष रेवेन्यू बढ़ने का पहले का अनुमान जो मात्र 0.2 प्रतिशत था, वह 2.3 प्रतिशत पर आ गया है। तीसरी तिमाही में विप्रो के राजस्व में साढ़े तीन प्रतिशत की बढ़त का अनुमान है। सॉफ्टवेयर कंपनियों को वित्तीय सेवाओं, हाई टेक और लाइफ साइंसेज जैसे क्षेत्रों से बढ़ती मांग से लाभ हुआ है। इन कंपनियों का यात्र, वीजा आदि पर होने वाले खर्चो में भारी कमी हुई है, जिससे इनका ऑपरेटिंग मार्जनि बढ़ा है। इस दौर में कम कीमत की प्रोपर्टी की मांग में भी बढ़ोतरी हुई है। प्रोपर्टी की रजिस्ट्री का काम पूरी तरह ठप था, जिसके शुरू होने से सरकार को होने वाली आमदनी में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है।

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