चेहरे कभी समानांतर नहीं होते और यही वजह है कि मौत के आगोश में इनसान की यादें सोती नहीं, बल्कि जिंदगी का इम्तिहान इसी अंतिम यात्रा का सबसे बड़ा विश्लेषण हो जाता है। कुछ इसी तरह हिमाचल के पूर्व मंत्री जीएस बाली का निधन हर चाहने वाले, आलोचक, समीक्षक या राजनीतिक हलकों में एक खालीपन पैदा करता है। हमेशा वक्त से आगे निकलने की जद्दोजहद ने उन्हें अलग करके देखा और यही वजह है कि वह अपने संघर्ष को हर सफलता का मानक बनाते हुए, ऐसी जमीन बनाने में कामयाब हुए, जो राजनीति के हर पहर और पहरेदारी के हर मोर्चे पर अगुवा होती है। जीएस बाली का हिमाचल की राजनीति का अनूठा चेहरा बनने की वजह आसान नहीं और इसे साबित करते हुए वह समर्थकों का एक खास वर्ग और प्रभाव की अमानत के स्वयं मूर्तिकार रहे। राजनीतिक तौर पर उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि जातीय समीकरणों से ऊपर दिखाई देती है, जहां वह कांगड़ा की ओबीसी सियासत के बीच ब्राह्मण होकर भी सबसे अधिक प्रासंगिक बन जाते हैं। कांगड़ा का नगरोटा बगवां विधानसभा क्षेत्र ओबीसी बहुल हलका है, लेकिन वह लगातार चार बार विधायक बनने में सक्षम होते हैं। इसी क्षेत्र से इससे पूर्व कोई ओबीसी उम्मीदवार भी यह रुतबा हासिल नहीं कर सका।
कारण उनकी शैली, रणनीतिक कौशल, स्पष्टता, विजन और विकास के नए आयाम पैदा करना रहा है। वह किसी कमजोर समझे जाने वाले मंत्रालय में भी संकल्प और नवाचार की ऊर्जा भरने में सक्षम बने। बतौर खाद्य आपूर्ति मंत्री बाली ने सरकारी डिपो को न केवल बहुआयामी बनाया, बल्कि इसका डिजिटल प्रारूप भी पेश किया। महज कुछ खरीद फरोख्त से आगे जितनी दालें उन्होंने उपलब्ध कराई, इससे पहले ऐसा नहीं हुआ। बतौर परिवहन मंत्री जीएस बाली प्रदेश की बसों को नई पहचान देते रहे और देश में इलेक्ट्रिक बसों की पहली खेप उतार कर वह केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के करीब खड़े हो जाते हैं। हिमाचल में वोल्वो बसों की शुरुआत तथा बीओटी के तहत बस अड्डा निर्माण की तरफ बढ़ते उनके इरादे निजी निवेश को सार्थक करते हैं। भले ही राजनीतिक विरोध के चलते स्की विलेज की परिकल्पना पूरी नहीं हुई, लेकिन विकास का यह जादूगर जानता था कि अंतरराष्ट्रीय पर्यटन की दृष्टि से यह परियोजना कुल्लू-मनाली क्षेत्र को विश्व का महत्त्वपूर्ण डेस्टिनेशन बना सकती है। जीएस बाली हिमाचल में एनआरआई टाउनशिप बनाने की परिकल्पना में हिमाचल में निजी निवेश का जहाज उड़ाना चाहते थे और इसी के साथ वह ऊना-धर्मशाला एक्सप्रेस हाई-वे के माध्यम से इसका मानचित्र स्थापित करने को प्रयासरत रहे। बाली के व्यक्तित्व का सम्मोहन उन्हें कांग्रेस के अलावा भाजपा में चर्चित करता रहा और इन्हीं रिश्तांे की बुनियाद पर वह मीडिया के लिए सुर्खियां पेश करते थे
हिमाचल में मीडिया के प्रति राजनीतिक समझ के कारण बाली सारे प्रदेश में अपनी संभावना को अलंकृत करते रहे और इस तरह तख्त और ताज के लिए उन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल होता रहा। वह अपने साथ राहुल गांधी को इतना बटोर लेते कि मुख्यमंत्री के रूप में स्व. वीरभद्र सिंह भी चकित हो जाते। वह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को साथ लेकर हिमाचल पहुंच जाते, तो इस मैत्रीभाव से राजनीतिक कयास बढ़ जाते। ऐसे में राजनीति खुद भी सोचती होगी कि क्या जीएस बाली ने सदा ज्यादा हासिल किया या यह सोचना होगा कि जो व्यक्ति कांगड़ा से मुख्यमंत्री पद की सरेआम हिमायत करता था, उससे जुड़ी हस्ती का मूल्यांकन अभी होना बाकी है। बाली दरअसल हिमाचल के राजनीतिक केंद्र बिंदु में खुद को स्थापित करने की कला जानते थे और इस लिहाज से वह हर कयास की पैमाइश में अव्वल रहे। राजनीति के प्रदर्शन और सरकारी पद की अहमियत में जीएस बाली ने अपना एक मानचित्र बना लिया था। नगरोटा बगवां या कांगड़ा की सियासत ही नहीं, उनके व्यक्तित्व का कायल पूरा हिमाचल रहा। किसी भी सरकार में ऐसे नेताओं की आवश्यकता को पूरा करना एक दुलर्भ परिपाटी है और बाली को किसी अन्य व्यक्ति या नेता के रूप में हासिल करना फिलहाल मुश्किल होगा। कांग्रेस के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बाद जीएस बाली का दिवंगत होना, आंतरिक संतुलन व नेतृत्व की दृष्टि से ऐसी क्षति है, जिसे शीघ्र पूरा करना कठिन होगा।