नए कृषि कानूनों को लेकर किसान नेताओं के अड़ियल रवैये के चलते बातचीत से मामला सुलझने के आसार कम

किसान आंदोलन जारी रहने पर सुप्रीम कोर्ट का चिंतित होना स्वाभाविक है।

Update: 2021-01-07 02:25 GMT

किसान आंदोलन जारी रहने पर सुप्रीम कोर्ट का चिंतित होना स्वाभाविक है। हालांकि उसने बातचीत से मामले को सुलझाने की अपेक्षा व्यक्त की है, लेकिन ऐसा होने के आसार कम ही हैं और इसका कारण है किसान नेताओं का अड़ियल रवैया। वे इसके बावजूद जिद पर अड़े हैं कि केंद्र सरकार कृषि कानूनों में संशोधन को तैयार है। सुप्रीम कोर्ट को ऐसे तथ्यों से परिचित होना चाहिए कि पिछली बार की बातचीत में सरकार ने जैसे ही कृषि कानूनों के विभिन्न हिस्सों पर चर्चा की पेशकश की, वैसे ही किसान नेताओं ने यह जिद पकड़ ली कि इन कानूनों की वापसी से कम उन्हें और कुछ मंजूर नहीं। वे सरकार की कोई दलील सुनने को तैयार नहीं हुए। क्या यह अजीब नहीं कि सरकार तो कृषि कानूनों की कथित खामियों पर विचार करने को तैयार है, लेकिन किसान संगठन ही इससे पीछे हट रहे हैं? इसका सीधा मतलब है कि उनका इरादा किसानों की समस्याओं का समाधान करना नहीं, बल्कि सरकार को नीचा दिखाना है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को दिल्ली लाकर बैठाने वाले किसान नेता सरकार से बातचीत के दौरान केवल अड़ियल रवैये का ही परिचय नहीं दे रहे, बल्कि वे धमकी भरी भाषा का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। पहले उन्होंने सरकार पर दबाव बनाने के लिए गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकालने की धमकी दी, फिर उसकी रिहर्सल के नाम पर लोगों को तंग करने का फैसला किया। यह एक किस्म की ब्लैकमेलिंग ही है।

करीब 40 दिनों से किसानों के दिल्ली के प्रमुख रास्तों पर बैठे होने के कारण लाखों लोग परेशान हैं, लेकिन किसान नेताओं की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। इन नेताओं ने झूठ का सहारा लेकर कृषि कानूनों के खिलाफ जिस तरह मोर्चा खोल दिया है, उससे ऐसा लगता है कि पहले हालात बेहतर थे, लेकिन यह सच नहीं और इसीलिए किसानों की समस्याओं की ओर ध्यान आर्किषत किया जाता था। नए कृषि कानूनों के जरिये किसानों की समस्याओं को दूर करने का ही काम किया गया है। यह हैरान करता है कि एक वक्त जो दल और किसान संगठन ऐसे ही कानूनों की वकालत करते थे, वे अब किसानों को बरगलाने में लगे हुए हैं। उनकी ओर से यह झूठ फैलाया जा रहा है कि नए कानूनों से किसानों की जमीनें छिन जाएंगी और असली फायदा तो मोदी के मित्र उद्यमियों को होगा। क्या यह वही तरीका नहीं, जो नक्सली संगठन आदिवासियों को बरगलाने के लिए इस्तेमाल करते हैं? चूंकि किसान नेता किसानों को बहकाने से बाज नहीं आ रहे इसलिए सरकार को उनके खिलाफ सख्ती बरतने के लिए तैयार रहना चाहिए।


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