दोहरा पैमाना
दुनिया भर में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए जब भी कोई आवाज उठती है तो दूसरे तमाम देशों के साथ-साथ चीन भी इस पर पूरी तरह काबू पाने की बात करता है। लेकिन इसकी क्या वजह हो सकती है
Written by जनसत्ता: दुनिया भर में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए जब भी कोई आवाज उठती है तो दूसरे तमाम देशों के साथ-साथ चीन भी इस पर पूरी तरह काबू पाने की बात करता है। लेकिन इसकी क्या वजह हो सकती है कि जब आतंकवादी संगठनों या आतंकियों पर लगाम लगाने की कोई कोशिश सामने आती है तब चीन बिना हिचक अपना दोहरा चेहरा लेकर दुनिया के सामने खड़ा हो जाता है। चीन का ऐसा रवैया अक्सर आतंकवाद पर काबू पाने के वैश्विक प्रयासों में बाधा बनता है, मगर इससे शायद उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
कुख्यात आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के दूसरे नंबर के ओहदेदार अब्दुल रऊफ अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र में चीन ने जिस तरह एक बार फिर अड़ंगा लगाया है, उससे साफ है कि आतंकवाद से निपटने के मामले में दोहरा मानदंड अपनाना शायद उसकी फितरत में शामिल है।
गौरतलब है कि अब्दुल रऊफ अजहर को काली सूची में डालने के लिए संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका और भारत की ओर से पेश साझा प्रस्ताव को तकनीकी आधार पर चीन ने बाधित कर दिया। भारत-अमेरिका समेत सुरक्षा परिषद के बाकी सभी सदस्य उस पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में थे।
भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने में जैश-ए-मोहम्मद की क्या भूमिका रही है, यह एक जगजाहिर तथ्य रहा है। इसे लेकर जब भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सवाल उठते हैं, तब कोई न कोई दलील देकर पाकिस्तान इन आरोपों को खारिज कर देता है। मगर अनेक ऐसे मौके आए हैं जब इन संगठनों के पाकिस्तान स्थित ठिकानों को लेकर पुख्ता जानकारी सामने आई।
जहां तक जैश-ए-मोहम्मद के ओहदेदार अब्दुल रऊफ अजहर का सवाल है, तो उसे 1999 में कंधार में आइसी-814 विमान अपहरण की घटना और 2019 में पुलवामा हमले के मुख्य साजिशकर्ताओं में गिना जाता है। पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के चालीस जवानों की जान गई थी।
इसके अलावा भी जैश-ए-मोहम्मद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घटनाओं के लिए जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन कई स्तर पर स्पष्ट सबूत सार्वजनिक होने के बावजूद चीन अगर बिना किसी हिचक के उसके बचाव में खड़ा होता है तो इसकी क्या वजह हो सकती है? दरअसल, पिछले कुछ सालों के दौरान पाकिस्तान को लेकर चीन का जैसा नरम रुख रहा है, उसका असर इस रूप में भी देखा जा रहा है कि वह आतंकवाद को लेकर भी दोहरे पैमाने का शिकार हो रहा है।
यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे कई संगठनों के सदस्य आतंकी वारदात को अंजाम देने के बाद पाकिस्तान में ही शरण लेते रहे हैं। काफी जद्दोजहद के बाद सितंबर, 2017 में बेजिंग में हुए ब्रिक्स सम्मेलन के घोषणापत्र में पाकिस्तान स्थित ठिकानों से काम करने वाले जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे कई संगठनों का नाम लेकर उनसे निपटने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया गया था। लेकिन उसके बाद इन संगठनों और इसके सदस्यों पर अंकुश लगाने के मामले में चीन के मानदंड अलग रहे।
उसकी ताजा हरकत से पहले भी जून, 2022 में पाकिस्तानी आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित सूची में शामिल करने के भारत और अमेरिका के संयुक्त प्रस्ताव को चीन ने आखिरी क्षण में बाधित कर दिया था। सवाल है कि एक ओर आतंकवाद का विरोध और दूसरी ओर किसी कुख्यात आतंकी को काली सूची में डालने के प्रयास को बाधित करने के उसके ऐसे रवैये को किस तरह देखा जाएगा।