स्टूडेंट्स को तंग न करें

रूसी हमले के बाद यूक्रेन से वापस लौटे भारतीय मेडिकल स्टूडेंट्स की समस्याएं जैसे खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं। बीच में ही पढ़ाई छोड़ आने को मजबूर इन स्टूडेंट्स के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि वे अपना कोर्स कैसे पूरा करें।

Update: 2022-09-16 02:08 GMT

नवभारत टाइम्स: रूसी हमले के बाद यूक्रेन से वापस लौटे भारतीय मेडिकल स्टूडेंट्स की समस्याएं जैसे खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं। बीच में ही पढ़ाई छोड़ आने को मजबूर इन स्टूडेंट्स के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि वे अपना कोर्स कैसे पूरा करें। उसके बगैर उनका कोई करियर नहीं हो सकता। लंबे इंतजार के बाद इस महीने नैशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) से उन्हें यह इजाजत मिली कि वे यूक्रेन के विश्वविद्यालयों से अपना ट्रांसफर दुनिया के किसी भी विश्वविद्यालय में करवा सकते हैं। यह उन स्टूडेंट्स के लिए एक बड़ी राहत है। लेकिन सिर्फ कागजों पर। इसे अमल में लाने के लिए जरूरी है कि यूक्रेन के विश्वविद्यालय इनका ट्रांसफर करें और उन्हें उनके ओरिजिनल दस्तावेज सौंपें। मगर इन विश्वविद्यालयों का रवैया न सिर्फ बेतुका बल्कि अमानवीय है।

कई संस्थानों ने इन स्टूडेंट्स का ट्रांसफर का अनुरोध सीधे तौर पर खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि अब देश में हालात ठीक हैं और इसलिए उन स्टूडेंट्स को वापस आकर कॉलेज जॉइन करना चाहिए। जिन यूनिवर्सिटी और इंस्टिट्यूट्स ने ऐसा मनमाना आदेश जारी नहीं किया और इच्छुक स्टूडेंट्स का ट्रांसफर करना सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया है उनकी तरफ से भी ऐसी ऐसी शर्तें लगाई जा रही हैं जिन्हें पूरा करना मौजूदा हालात में लगभग नामुमकिन है।

उदाहरण के लिए, कई यूनिवर्सिटी कह रही हैं कि इन स्टूडेंट्स को तब तक उनके ओरिजिनल पेपर्स नहीं दिए जा सकते, जब तक वे लाइब्रेरी से ली गई किताबें और कॉलेज की अन्य संपत्ति खुद आकर वापस नहीं करते। सचाई यह है कि जिन स्थितियों में ये स्टूडेंट्स वहां से स्वदेश लौटे उनमें यह संभव ही नहीं था कि वे सारा सामान साथ ले आते। मिनिमम सामान के साथ जान बचाते हुए निकल आना ही उस समय संभव था और सबने ऐसा ही किया भी। ये स्टूडेंट्स कह भी रहे हैं कि सारा सामान वे ज्यों का त्यों हॉस्टलों में छोड़ आए। अब कहां वे किताबें ढूंढें और कैसे वापस करें। बाकी औपचारिकताओं के लिए भी स्टूडेंट्स से खुद वहां आने के लिए के लिए कहा जा रहा है।

ध्यान रहे रूस-यूक्रेन युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है। जाहिर है, इन यूनिवर्सिटीज का मकसद ट्रांसफर मामले को अधिक से अधिक अटकाए रखना है ताकि स्टूडेंट्स उनके यहां बने रहें और यूनिवर्सिटी को उनसे होने वाली कमाई बंद न हो। लेकिन यह वक्त ऐसा है जिसमें यूनिवर्सिटी को अपनी कमाई से ऊपर उठकर स्टूडेंट्स के भविष्य के लिहाज से सोचना चाहिए। अगर यूनिवर्सिटी स्वेच्छा से ऐसा नहीं करतीं तो राजनयिक और जरूरत पड़े तो राजनीतिक स्तर पर भी यह मसला उठाया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि इसका सरल और व्यावहारिक उपाय जल्द से जल्द निकले।


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