घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 (डी.वी. अधिनियम) की धारा 26 के तहत एक पत्नी की भरण-पोषण संबंधी याचिका पर दिल्ली के अपर जिला न्यायाधीश के हाल के एक निर्णय को दिल्ली उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया। याचिकाकर्ता पत्नी ने हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत एक निर्धन व्यक्ति के रूप में निचली अदालत के समक्ष भरण-पोषण का दावा करते हुए वाद दायर किया था।
परिवार न्यायालय ने 28 मार्च, 2018 को उसे 10,000 रुपये प्रति माह की दर से गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता के अनुसार चूंकि उसे उसके पति ने न्यायालय द्वारा निर्देशित राशि का भुगतान नहीं किया, इसलिए उसने परिवार न्यायालय के समक्ष निष्पादन की अर्जी दायर की। पति ने भी पत्नी के खिलाफ एक दीवानी मुकदमा दायर किया, जिसमें दुर्भावनापूर्ण अभियोजन के लिए ब्याज और भविष्य के हित के साथ 20,00,000 रुपये के हर्जाने की मांग की गई।
पत्नी ने पति के खिलाफ दंड संहिता, 1860 की धारा 498 ए (किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना) और 406 (विश्वास का आपराधिक हनन) के तहत एक आपराधिक शिकायत में पति के आरोप मुक्त होने पर मुकदमा दायर किया था। पत्नी ने डी.वी. अधिनियम की धारा 26 के तहत पति को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 10,000 रुपये और मुकदमे के खर्च के लिए एक लाख रुपये का भुगतान करने के निर्देश की मांग की।
पर निचली अदालत ने उसके आवेदन को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निचली अदालत ने गलत रूप से केवल इस आधार पर आवेदन को खारिज किया कि वर्तमान आवेदन पहले दिए गए भरण-पोषण आदेश के निष्पादन की दिशा में दायर किया गया था। डी.वी. अधिनियम की धारा 26 के अनुसार धारा 18, 19, 20, 21 और 22 के तहत उपलब्ध कोई भी राहत दीवानी अदालत, परिवार न्यायालय या दंड न्यायालय के समक्ष किसी कानूनी कार्रवाई में भी मांगी जा सकती है।
धारा 20 (1) (डी) के अनुसार पीड़ित महिला को दिया गया भरण-पोषण, किसी अन्य लागू कानून के तहत भरण-पोषण के आदेश के अतिरिक्त प्रभावी होगा। दिल्ली उच्च न्यायालय की राय में, पत्नी डी. वी. अधिनियम की धारा 20 एवं 26 के प्रावधानों को लागू करने की हकदार होगी, जिनके तहत वह भरण-पोषण सहित मौद्रिक राहत प्राप्त कर सकती है। न्यायालय के अनुसार यह राहत परिवार न्यायालय के आदेश के तहत दिए गए भरण-पोषण के अतिरिक्त होगी।
ध्यान दिया जाए कि उच्चतम न्यायालय 2021 के अपने एक फैसले- रजनीश बनाम नेहा मामले, में कह चुका है कि डी.वी. अधिनियम की धारा 20 (1) (डी) यह स्पष्ट करती है कि इसके तहत प्रदान किया गया रखरखाव, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 125 और वर्तमान में लागू किसी अन्य कानून के तहत रखरखाव के आदेश के अतिरिक्त होगा। उसने यह भी स्पष्ट किया कि इस अधिनियम और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 या हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 या हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 दोनों के तहत भरण-पोषण की मांग करने पर कोई रोक नहीं है।
(लेखक सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट हैं।)