अब देश में लॉकडाउन लगाया जाना चाहिए या नहीं, ये तो सरकार तय करेगी. विकराल महामारी से निपटने के लिए रोजाना हालात की समीक्षा और विशेषज्ञों से विमर्श जारी है. देश के अलग-अलग राज्यों में सरकारें लॉकडाउन की घोषणा कर रही हैं. और इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी को लॉकडाउन पर अपनी बात देश के सामने रखने का पूरा हक है. बोलने की आजादी के तहत उन्हें क्या भारत के हर नागरिक को यह हक हासिल है. लेकिन इतना तो उन्हें तय करना ही चाहिए कि इस मसले पर उनकी पक्की राय क्या है.
लॉकडाउन पर राहुल गांधी की कभी हां, कभी ना
क्योंकि पिछले एक साल में लॉकडाउन पर दिए गए राहुल गांधी के बयानों पर अगर नजर डालें, तो अजीब असमंजस की स्थिति बन आती है. कभी वो लॉकडाउन का विरोध करते हैं, तो कभी इसकी मांग कर बैठते हैं. कभी लॉकडाउन को 'तुगलकी' फैसला बताते हैं, तो कभी नकाम बता देते हैं. अब कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी के अध्यक्ष रहे राहुल गांधी कोई सोशल मीडिया के ट्रोल तो है नहीं कि आज कुछ कह दिया, कल कुछ और कह दिया. जब जो मन में आया बोल लिया. उनकी अपनी एक गरिमा है और उसे बरकरार रखने के लिए उन्हें किसी भी मसले पर अपना रुख सामने रखने से पहले मजबूत रुख बनाना होगा. क्योंकि 'मन की बात' करने से पहले मन तो बनाना पड़ता है ना. अब वो सिर्फ माहौल बनाने में यकीन रखते हों तो बात कुछ और है.
'संपूर्ण लॉकडाउन ही,'
आइए, सबसे पहले देखते हैं कि राहुल गांधी ने मंगलवार (4 मई) को क्या कहा. ट्विटर पर आया उनका बयान कुछ ऐसा था. 'भारत सरकार समझ नहीं रही है. अब कोरोना को फैलने से रोकने का सिर्फ संपूर्ण लॉकडाउन का ही एक रास्ता बचा है – कमजोर वर्गों के लिए NYAY की सुरक्षा के साथ. भारत सरकार की निष्क्रियता से कई निर्दोष लोगों की मौत हो रही है.' यहां NYAY से उनका मतलब था, न्यूनतम आय योजना, जिसके तहत कांग्रेस ने 2019 लोक सभा चुनाव के दौरान वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनी तो आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को सालाना 72,000 रुपये की मदद दी जाएगी.
GOI doesn't get it.
The only way to stop the spread of Corona now is a full lockdown- with the protection of NYAY for the vulnerable sections.
GOI's inaction is killing many innocent people.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 4, 2021
'लॉकडाउन की रणनीति तुगलकी'
लेकिन गौर करने की बात यह है कि अभी एक महीना भी नहीं बीता जब लॉकडाउन पर राहुल गांधी के सुर बिलकुल अलग थे. 16 अप्रैल 2021 को अपने एक ट्वीट में उन्होंने लॉकडाउन को 'तुगलकी' बताया था.
तब उन्होंने लिखा था:
केंद्र सरकार की कोविड रणनीति
स्टेज 1- तुगलकी लॉकडाउन लगाओ
स्टेज 2- घंटी बजाओ
स्टेज 3- प्रभु के गुण गाओ
केंद्र सरकार की कोविड रणनीति-
स्टेज 1- तुग़लक़ी लॉकडाउन लगाओ।
स्टेज 2- घंटी बजाओ।
स्टेज 3- प्रभु के गुण गाओ।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 16, 2021
बड़ी बात ये है कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के इस बयान के वक्त भी कोरोना भारत में रोज अपने पुराने रिकॉर्ड तोड़ रहा था. 16 अप्रैल को देश में कोरोना संक्रमण के 2,34,692 नए मामले सामने आए थे. तो जाहिर है राहुल उस समय सिर्फ पिछले साल लगाए गए लॉकडाउन की आलोचना नहीं कर रहे थे. बल्कि दोबारा लॉकडाउन लगाए जाने की अटकलों के बीच उसका विरोध कर रहे थे. आज अगर देश में कोरोना संक्रमण की तेज रफ्तार से हालात भयावह हैं तो उस समय भी स्थिति कम विकराल नहीं थी. 16 अप्रैल के आंकड़ों पर लौटें तो उस दिन भारत में कोविड-19 से 1341 लोगों की मौत की खबर आई थी. लॉकडाउन अगर आज जरूरी है तो तब भी जरूरी था. लेकिन तब उनकी राय बिलकुल उलट थी.
क्या राहुल के बदलते रुख की वजह सिर्फ यह है कि उस वक्त लॉकडाउन लगाए जाने की अटकलें थीं तो उन्होंने उसका विरोध किया, और जब सरकार ने राज्यों को लॉकडाउन से बचने की सलाह दी, आखिरी विकल्प के तहत ही इसके इस्तेमाल की अपील की तो राहुल इसके समर्थन में आ गए?
'विश्व युद्ध के दौरान भी नहीं लगा लॉकडाउन'
पिछले साल लॉकडाउन के फैसले पर सरकार को लगातार आड़े हाथों लेने वाले राहुल गांधी अपने तर्क के समर्थन में विश्व युद्ध को भी ले आए. 4 जून 2020 को वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए बजाज ऑटो के प्रबंध निदेशक राजीव बजाज के साथ बातचीत में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा था, 'विश्वयुद्ध के दौरान भी दुनिया लॉकडाउन से नहीं गुजरी थी. तब भी सब चीजें खुली थीं. लॉकडाउन एक अजीब और खौफनाक घटना है.'
'लॉकडाउन सिर्फ एक पॉज बटन'
थोड़ा और पीछे चलें तो याद आता है कि राहुल गांधी मानते थे कि लॉकडाउन किसी भी सूरत में कोरोना महामारी को रोकने का समाधान नहीं है. 16 अप्रैल 2020 को वीडियो लिंक के जरिए मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, 'लॉकडाउन सिर्फ एक पॉज बटन की तरह है, यह समाधान नहीं है. क्योंकि हम जैसे ही लॉकडाउन से बाहर निकलेंगे तो वायरस फिर से अपना काम शुरू कर देगा.'
LIVE: Special Congress Party Briefing by Shri @RahulGandhi via video conferencing.#RahulSpeaksForIndia https://t.co/B7FzeIuiXK
— Congress (@INCIndia) April 16, 2020
हैरानी की बात यह कि जब जून में सरकार ने लॉकडाउन की पाबंदियों को कम कर अनलॉक की प्रक्रिया का ऐलान किया तो राहुल गांधी उसकी भी आलोचना पर उतर आए. 24 जून, 2020 को साझा किए गए एक ट्वीट में उन्होंने कोरोना के बढ़ते मामलों को पेट्रोल और डीजल की महंगाई से जोड़ दिया. राहुल गांधी ने तब लिखा था, 'मोदी सरकार ने कोरोना महामारी और पेट्रोल-डीजल की कीमतें 'अनलॉक' कर दी हैं.'
मोदी सरकार ने कोरोना महामारी और पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतें "अन्लॉक" कर दी हैं। pic.twitter.com/ty4aeZVTxq
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 24, 2020
राहुल का सियासी मंत्र: चित भी मेरी, पट भी मेरी?
एक मशहूर मुहावरा है 'चित भी मेरी, पट भी मेरी'. लगता है राहुल गांधी की पूरी राजनीतिक 'दूरदर्शिता' इसी मुहावरे पर आधारित है. सवाल सरकार के फैसलों के विरोध का नहीं है. विपक्षी पार्टियों की यह जिम्मेदारी है कि वो हर सरकार हर निर्णय की छानबीन करे और उसकी खामियों को उजागर करे. लेकिन ना तो विपक्ष का मतलब हर बात का विरोध होता है, ना ही जनता को भ्रमित करना होता है. क्योंकि जनता ना सिर्फ सरकार बल्कि विपक्ष पर भी नजर रखती है. बात बदल-बदल कर लोगों को बरगलाने से मामला और बिगड़ सकता है. राहुल की अपनी साख और गिरने के साथ कांग्रेस का भविष्य भी अधर में लटक सकता है.
इसलिए जरूरत इस बात की है कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष बड़े-बड़े मसलों पर अपनी धारणा दुरुस्त करें. जनता के सामने अपना पक्ष रखने से पहले उसे परख लें. विचार कर लें कि आगे बार-बार यू-टर्न की नौबत तो नहीं आएगी. कांग्रेस के वरिष्ठ सहयोगियों के साथ मिलकर गहन विचार-विमर्श कर हर मसले पर पार्टी का आधिकारिक रुख तैयार कर लें. फिर अलग-अलग सुर लगाने के बजाए एक सुर में बात करें. ट्विटर की 280 अक्षरों की सीमा से निकलकर सीधे जनता से जुड़े. वीडियो संदेश और कांफ्रेंसिंग के जरिए विस्तारपूर्वक लोगों तक अपनी बात पहुंचाएं. लेकिन ध्यान रहे कि याद्दाश्त का दामन ना छूटे क्योंकि राहुल इतना तो जानते ही होंगे कि 'ये जो पब्लिक है सब जानती है'.