क्या बुजुर्ग नेताओं के सहारे सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं ओमप्रकाश चौटाला
एक 86 साल के बुजुर्ग नेता, जो अभी हाल ही में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की सजा काट कर आए हों
अजय झा एक 86 साल के बुजुर्ग नेता, जो अभी हाल ही में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की सजा काट कर आए हों, का मन सत्ता से खेलने को उसी तरह मचलने लगता है जैसे किसी बच्चे का खिलौने से खेलने का. अब सत्ता का झुनझुना बाज़ार में तो मिलता नहीं है कि ख़रीदा जा सके, लिहाजा अपने दिवंगत पिता, जिनकी गिनती किसी ज़माने में देश के बड़े नेताओं में होती थी, के जन्मदिन को धूमधाम से मानाने की सोची. एक जनसभा का आयोजन किया गया, जिसमें विपक्ष के बड़े-बड़े नेताओं को आमंत्रित किया गया. पर सभा में सिर्फ तीन 'बड़े' वयोवृद्ध नेता ही शामिल हुए. जिसमे से एक की उम्र 93 साल, दुसरे की उम्र 83 साल और तीसरे की उम्र 75 साल थी.
इनमे से कोई भी ऐसा नेता नहीं था जो उस 83 साल के सजायाफ्ता नेता के अधूरे सपने को भविष्य में पूरा करने में मदद कर पाए. यह कहानी हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) की है और वह तीन बुजुर्ग नेता पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और पूर्व केन्द्रीय मंत्री चौधरी बिरेन्द्र सिंह थे.
फिर से चुनाव लड़ना चाहते हैं चौटाला
16 वर्ष गुजर गए जब चौटाला आखिरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे. शिक्षक भर्ती घोटाला में चौटाला को न्यायलय ने 10 वर्ष के लिए जेल भेज दिया था, पर अपने उम्र और अपाहिजता की दुहाई देते हुए चौटाला ने समय से पूर्व रिहाई की गुहार लगायी जिसे मान लिया गया और लगभग डेढ़ साल पहले ही अभी हाल में वह रिहा हो गए. पर उम्र और अपाहिजता सपने देखने में बाधा नहीं बन रहा. कानूनी तौर पर वह अब चुनाव नहीं लड़ सकते. चुनाव लड़ने की इजाजत के लिए वह चुनाव आयोग को आवेदन दे चुके हैं और अगर चुनाव आयोग नहीं माना तो फिर न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की योजना बना रहे हैं.
INLD अब अपना अस्तित्व बचाने को संघर्षशील है
समस्या है कि 2005 में सत्ता खोने के बाद चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल से हरियाणा की जनता, पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं ने मुंह मोड़ना शुरू कर दिया. चौटाला की पार्टी अब अपने अस्तित्व को बचने के लिए संघर्षशील है. 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ एक ही सीट जीत पायी थी. पार्टी के एकलौते विधायक और चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह ने किसान आन्दोलन के समर्थन में जनवरी के महीने में विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. उनकी सोच थी कि इससे INLD को बल मिलेगा और दूसरी पार्टी के नेताओं को भी विधायकी छोड़नी पड़ेगी, और वह विपक्ष के बड़े नेता बन जाएंगे. पर हुआ ठीक इसके विपरीत. आठ महीनों का समय गुजर चुका है और चुनाव आयोग एलनाबाद से उपचुनाव कोरोना महामारी के कारण नहीं करवा रही है. चौटाला का मानना है कि हार के डर से सत्ता पक्ष चुनाव करवाने से कतरा रही है.
चौटाला के बुलावे पर सिर्फ तीन बड़े नेता पहुंचे
पिता चौधरी देवीलाल देश के दो सरकारों में उपप्रधानमंत्री रहे थे. योजना थी कि उनके जन्मदिन पर राजनीति का ऐसा जलसा लगे कि सत्ता और चौटाला के बीच की दूरी कम हो जाए. चौटाला का सपना है कि देश में बीजेपी और कांगेस पार्टी से अलग तीसरे मोर्चे का गठन हो ताकि उनकी पार्टी की वापसी हो सके. एनसीपी नेता शरद पवार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी को न्योता भेजा गया, पर इनमें से कोई नहीं आया. आते भी कैसे जबकि यह सभी बीजेपी के खिलाफ 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दूसरा मोर्चा बनाने के प्रयास में जुटे हैं.
प्रकाश सिंह बादल को आना ही था. चौटाला और बादल पगड़ी-बदल भाई हैं. बादल अब राजनीति में सक्रिय नहीं रहे. 93 की उम्र में उन्हें रिटायर होने का अधिकार है. फारूक अब्दुल्ला भी सेमी-रिटायर्ड जीवन जी रहे हैं, हालांकि वह फिलहाल संसद सदस्य हैं, और चौधरी बिरेन्द्र सिंह अब बेरोजगार हैं. 2014 लोकसभा चुनाव के बाद वह कांग्रेस पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. पर बाद में केन्द्रीय मंत्री और फिर राज्यसभा सदस्यता छोड़नी पड़ी क्योंकि वह अपने पुत्र ब्रिजेन्द्र सिंह को राजनीति में आगे बढ़ाना चाहते थे. ब्रिजेन्द्र लोकसभा सदस्य तो हैं पर बीजेपी ने उन्हें केंद्रीय मंत्री नहीं बनाया, इसलिए बिरेन्द्र सिंह बीजेपी से खफा हैं. उन्हें लग रहा है कि अगर चौटाला की योजना सफल हो जाए तो उनकी भी राजनीति में वापसी हो जायेगी, क्योंकि चौटाला को बीजेपी की तरह परिवारवाद से परहेज नहीं है.
क्या साकार होगा ओमप्रकाश चौटाला का सपना
हां, शनिवार की जनसभा, जिसका आयोजन जींद में किया गया था, उसमें जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय महासचिव के.सी. त्यागी भी शामिल हुए, हालांकि आमंत्रण जेडीयू के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भेजा गया था. नीतीश कुमार बिहार में इनदिनों बीजेपी की बदौलत ही मुख्यमंत्री हैं पर उन्हें दो नावों पर एक साथ सवारी करने से परहेज नहीं है. क्या पता कि भविष्य में छोटेमोटे विपक्षी दलों की मदद से उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना साकार हो जाए?
चौटाला इनदिनों हरियाणा में मध्यवर्ती चुनाव की बात दावे के साथ कर रहे हैं, भले ही पिछले दो सालों से प्रदेश में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन की सरकार बिना किसी गतिरोध के चल रही है. अगर चौटाला की सोच थी कि देवीलाल के नाम पर बड़ी जनसभा होगी और वह एक बार फिर से पुराने वाले बड़े नेता बन जायेंगे तो उन्हें निराशा ही हाथ लगी. जनता और अन्य दलों के नेता इस सभा में कम ही संख्या में पहुंचे.
चौटाला उन नेताओं में से नहीं हैं जो आसानी से हार मान लें. वह सपने देखते रहेंगे और योजना भी बनाते रहेंगे, इस उम्मीद के साथ कि हरियाणा में जल्द ही अबकी बार चौटाला सरकार का नारा गूंजने लगेगा. बुढ़ापे में जबकि उनके परिवार का एक हिस्सा अलग हो कर जेजेपी पार्टी बना कर सत्ता का सुख भोग रही है, चौटाला के पास कुछ और करने को है भी नहीं. चौटाला के बारे में सिर्फ इतना ही कह जा सकता है कि शायद वह कहावत 'रस्सी जल गयी पर ऐंठन बांकी हैं' उन्ही के लिए बनी थी.