क्या गोवा चुनाव के मार्फ़त मामता बनर्जी केंद्र में 'खेला' करने की चाहत रखती हैं?
तृणमूल काग्रेस (TMC) के गोवा में प्रवेश का सीधा तार केंद्र की राजनीति से जुड़ा है. मई महीने में लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ममता बनर्जी की नज़र अब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर टिकी है
अजय झा पश्चिम बंगाल (West Bengal) की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) आज शाम अपनें तीन दिन के दौरे पर गोवा पहुंच रही हैं. आधिकारिक तौर पर तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने यही बताया है कि अपने गोवा प्रवास के दौरान वह राजनीतिक हस्तियों, बुद्धिजीवियों, उद्योगपति और व्यपारियों इत्यादि से मिलेंगी. इस घोषणा के बाद कि तृणमूल कांग्रेस आगामी गोवा विधानसभा चुनाव लड़ेगी, ममता बनर्जी का गोवा का यह पहला दौरा है. फिलहाल उनका गोवा की जनता से मिलने का कोई कार्यक्रम नहीं है.
कयास यही लगाया जा रहा है कि उनके दौरे का मकसद गोवा की नब्ज़ टटोलना है और दीदी यह आंकलन करेंगी कि गोवा की जमीन उनकी पार्टी के लिए कितनी उपजाऊ हो सकती है. ममता बनर्जी के आगमन से गोवा की राजनीति में थोड़ी हलचल जरूर दिखेगी पर अभी से यह उम्मीद करना कि तृणमूल कांग्रेस गोवा में भी कोई बड़ा खेला करेगी कहना थोड़ी जल्दीबाजी होगी.
राजनीतिक रूप से गोवा का वजूद बड़ा है
गोवा भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक है. कुल आबादी करीब 16 लाख के आसपास है और विधानसभा में कुल 40 सीटे हैं. गोवा से लोकसभा के दो और राज्यसभा के लिए एक प्रत्याशी चुना जाता है. गोवा कम आबादी वाला एक छोटा राज्य जरूर है पर गोवा के निवासी राजनीति में खासी रूचि रखते हैं और राजनीतिक गतिविधियां लागातार चलती रहती हैं.
गोवा भारत के उन पांच राज्यों में से एक है जहां अगले वर्ष के पहले तिमाही में विधानसभा चुनाव होने वाला है. गोवा में सत्ता में भारतीय जनता पार्टी है और कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल है. बीजेपी और कांग्रेस के अलावा गोवा में दो स्थानीय दल हैं, महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी और गोवा फॉरवर्ड पार्टी. एनसीपी भी गोवा में चुनाव लड़ती रहती है और आम आदमी पार्टी का भी गोवा में खासा वजूद है. कल ही खबर आई कि बिहार के दो दल भी गोवा में टकरा गए. राष्ट्रीय जनता दल के गोवा इकाई का कल जनता दल (यूनाइटेड) में विलय हो गया.
गोवा में कितनी कामयाब होगी तृणमूल कांग्रेस
पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र की शिवसेना पार्टी भी गोवा में चुनाव लड़ती रहती है, भले ही उनके प्रत्याशी चुनाव ना जीत पाते हों, क्योंकि बीजेपी और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी जैसी दो प्रमुख हिन्दू दलों के रहते हुए शिवसेना अभी तक गोवा में अपना जनाधार नहीं बना पायी है. इतना तो तय है कि अगले चुनाव में हरेक सीट पर कम से कम आधा दर्जन प्रमुख राष्ट्रीय और स्थानीय दलों के उम्मीदवार चुनावी मैदान में दिखेंगे.
ऐसे में यह सवाल उठाना लाजमी है कि क्या गोवा में पश्चिम बंगाल की एक पार्टी के लिए कोई जगह बची भी है? यह पहला अवसर नहीं है जबकि तृणमूल कांग्रेस गोवा में चुनाव लड़ेगी. 2012 के चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस ने यहां अपनी किस्मत आजमायी थी पर विफलता हाथ लगने के बाद पार्टी का प्रदेश में कोई कार्यकर्ता या नेता नहीं बचा था. पर पिछले महीने यकायक तृणमूल कांग्रेस गोवा में एक बार फिर से चर्चा में आ गयी.
गोवा में तृणमूल की नैया पार लगा पाएंगे लुईजिन्हो फलेरियो
जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो ने कांग्रेस पार्टी और विधानसभा से इस्तीफा देने के बाद कोलकाता जा कर तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की.नफलेरियो ने बाद में बताया कि ममता बनर्जी के चुनावी सलाहकार प्रशांत किशोर ने उनसे संपर्क साधा था जिसके बाद उन्होंने तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने का फैसला किया, क्योंकि गोवा को भी दीदी जैसे एक जुझारू नेता की सख्त जरूरत है. अभी तक फलेरियो के सिवा किसी और बड़े नेता ने तृणमूल कांग्रेस ज्वॉइन नहीं किया है, पर इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि दीदी के मान और सम्मान में फलेरियो कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं को ममता बनर्जी की उपस्थिति में पार्टी में शामिल कर दें.
तृणमूल काग्रेस के गोवा में प्रवेश का सीधा तार केंद्र की राजनीति से जुड़ा है. मई में महीने में लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ममता बनर्जी की नज़र अब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर टिकी है. तृणमूल कांग्रेस ने सभी गैर-बीजेपी विपक्षी दलों को एकजुट करके बीजेपी को टक्कर देने की योजना बनाई थी, पर कांग्रेस पार्टी के असहयोग के कारण बात आगे नहीं बढ़ पायी है. तृणमूल कांग्रेस के लिए एक क्षेत्रीय दल की श्रेणी से उठकर राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता पाना ममता बनर्जी के लिए अनिवार्य हो गया है. फलेरियो की इसमें बहुत बड़ी भूमिका रहने वाली है. गोवा की राजनीति में उनका एक रुतबा है और कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में वह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लम्बे अरसे तक प्रभारी रहे थे. यानि तृणमूल कांग्रेस के लिए पूर्वोत्तर के राज्यों में भी फलेरियो ही दरवाज़ा खोलेंने का काम करेंगे.
गोवा में तृणमूल के बढ़ते कदम कांग्रेस को कमज़ोर करेंगे
कुल मिला कर इतना तो तय है कि गोवा में तृणमूल कांग्रेस का चुनाव लड़ने का फैसला राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी को कमजोर करने कि योजना का हिस्सा है, ताकि 2024 का आमचुनाव आते आते कांग्रेस पार्टी से तृणमूल कांग्रेस कहीं ज्यादा शक्तिशाली और प्रभावशाली शक्ति बन जाए. उस स्थिति में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की जगह साझा विपक्ष ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दे.
गोवा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस कुछ बड़ा खेला शायद ना कर पाए पर गोवा की हिस्सेदारी केंद्र में तृणमूल कांग्रेस के नियोजित खेला में अहम रहेगी. गोवा के चुनाव से ही यह सबित हो पाएगा कि क्या दूसरे राज्यों की जनता ममता बनर्जी में भविष्य का नेता देखती है या नहीं. संक्षेप में गोवा के मार्फ़त दीदी केंद्र में खेला करना चाहती हैं.