दूध का दूध पानी का पानी

नातन सनातन! सनातन सनातन! हर चैनल पर सनातन सनातन! पहले एक बाबा उवाच कि 'सनातन राष्ट्रधर्म' फिर योगी जी कहिन कि 'सनातन राष्ट्रीय धर्म' और फिर हल्ला! एक विपक्षी पूछिन कि संविधान बड़ा कि सनातन? मानस पर हमला हुआ, तो चैनल चैनल 'रामचरितमानस' और उसकी 'ढोल गंवार…' चौपाई की तरह-तरह की व्याख्याएं भी होती दिखीं! कई चैनल 'शूद्र' शब्द की व्याख्या कराते दिखे। एक ने कहा कि 'जन्मना जायते शूद्र:'। यहां कर्म से तय होती है जाति की अवधारणा। और 'ताड़न' का मतलब पीटना नहीं, बल्कि 'शिक्षा देना' है!

Update: 2023-02-12 05:03 GMT

सुधीश पचौरी: नातन सनातन! सनातन सनातन! हर चैनल पर सनातन सनातन! पहले एक बाबा उवाच कि 'सनातन राष्ट्रधर्म' फिर योगी जी कहिन कि 'सनातन राष्ट्रीय धर्म' और फिर हल्ला! एक विपक्षी पूछिन कि संविधान बड़ा कि सनातन? मानस पर हमला हुआ, तो चैनल चैनल 'रामचरितमानस' और उसकी 'ढोल गंवार…' चौपाई की तरह-तरह की व्याख्याएं भी होती दिखीं! कई चैनल 'शूद्र' शब्द की व्याख्या कराते दिखे। एक ने कहा कि 'जन्मना जायते शूद्र:'। यहां कर्म से तय होती है जाति की अवधारणा। और 'ताड़न' का मतलब पीटना नहीं, बल्कि 'शिक्षा देना' है!

एक ओर मानस प्रेमी, दूसरी ओर मानस विरोधी! विरोधियों के भी दो पक्ष! कुछ कहिन कि कुछ चौपाइयां निकाल दो तो ठीक, लेकिन कुछ सीधे मानस को ही जलाते दिखे! नाराज मानस प्रेमी कहते रहे कि किसी अन्य किताब को जला कर देखें तो जानें… बहरहाल, 'रामचरितमानस' चैनलों में इस कदर छाया कि देखते-देखते एक 'पवित्र ग्रंथ' बन गया!

'मानस' का यह नया बाजार बन ही रहा था कि एक वैश्विक 'बाजारी ठग' हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की खबर ने सब 'गुड़ गोबर' कर दिया और एक झटके में दुनिया के दो नंबर के देसी सेठ अडाणी को ढेर कर दिया! कई एंकर कहने लगे, 'हिंडनबर्ग की रिपोर्ट भारत के खिलाफ सूचना युद्ध है… हिंडनबर्ग तो 'हिटमैन' है। पहले बीबीसी ने 'ब्रांड इंडिया' को पीटा, अब हिंडनबर्ग पीट रहा है… एक बड़े वकील साहब कहिन कि बीबीसी ने चीनी कंपनियों से पैसा लिया है… कांग्रेस का एक नेता भी चीनी कंपनियों का पालतू है…

हिंडनबर्ग की मेहरबानी कि बहुत दिनों बाद विपक्ष में जान पड़ती दिखी! संसद और बाहर वह सरकार से जवाब मांगता दिखा कि जो सेठ कुछ पहले दुनिया के छह सौवें नंबर के आसपास का अमीर था, पिछले कुछ ही बरसों में वह दो नंबर पर कैसे आ गया? इसके आगे संसद में 'अडाणी अडाणी' और 'जेपीसी जेपीसी' होना ही था। विपक्ष का हर प्रवक्ता कहता कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के आरोपों की जांच कराओ, ताकि 'दूध का दूध पानी का पानी' हो जाए!

हिंडनबर्ग का झटका इतना तगड़ा था कि सत्ता के प्रवक्ता दो-तीन दिन तक बहसों से गायब रहे। उनकी जगह आते 'राजनीतिक विश्लेषक' कहते दिखते कि विपक्ष ने कब माने जांच समितियों के फैसले? कोर्ट के फैसले जब तक उनके अनुसार नहीं आते तब तक वे उनका भी यकीन नहीं करते, ऐसे में जांच कराने से भी क्या?

बहसों के साथ-साथ चैनल अडाणी के भी दर्शन कराते रहते। हम एक सेठ के उत्थान-पतन को देखते। कुछ बताते कि उन्होंने जो कमाया है, कायदे से कमाया है, उनकी कंपनियां दुरुस्त हैं… और लीजिए, दो-तीन दिन लुढ़कने के बाद अडाणी फिर से चौथे या छठवें नंबर पर आते दिखे! यह पूंजी का खेल है प्यारे!

कुछ नरमीले बहसिए यह भी कहते दिखे कि आप अडाणी की खबर लें, लेकिन भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था के दुश्मन न बनें। भारत की अर्थव्यवस्था गिरी, तो आप कहां बचेंगे? इसी बीच पाक तानाशाह मुशर्रफ के गुजरने की खबर जैसे आई थी वैसे ही गई। कुछ चैनल इसी बहाने दिखाते रहे कि पाक की अर्थव्यवस्था किस कदर बर्बाद हुई है… कुछ चैनल ऐसे पाक नागरिकों को दिखाते, जो कहते कि अच्छा होता कि बंटवारा न हुआ होता, हमें ये दिन तो न देखने पड़ते!

इस बीच एक चीनी जासूसी गुब्बारे और असम में बाल विवाह के हजारों अपराधियों की धर-पकड़ ने भी खबर बनाई, लेकिन हिंडनबर्ग-अडाणी की कहानी चैनलों में जस की तस बनी रही और जांच के जरिए 'दूध का दूध और पानी का पानी' वाली मांग भी बार-बार दोहराइ जाती रही! फिर भी दूध और पानी मिला ही रहा! इसी बीच अपने 'तापस जी' ने यूपी के सीएम योगी के 'सनातन राष्ट्रीय धर्म' उवाच पर चोट कर दी कि वे कोई धर्मगुरु नहीं, ठग हैं… हाय मुहब्बत की दुकान में भी ऐसा नफरती वाक्य!

एक चैनल ने लाइन लगाई: 'योगी पर बयान संतों का अपमान' और भाजपा प्रवक्ता ठोके कि ऐसे लोगों को जनता सबक सिखाएगी…इसके बाद सीधे अखाड़ा संसद में ही खुला और महामहिम राष्ट्रपति और उनके संबोधन तक को नहीं बख्शा गया। विपक्षी संसद से सड़क तक 'जेपीसी जेपीसी' के नारे लगाते रहे और कार्यवाही स्थगित होती रही।

फिर एक दिन कुछ भाषण हुए। लोकसभा में राहुल भैया का भाषण आकर्षण का केंद्र रहा। वे अडाणी और सत्ता की मिलीभगत का राग अलापते रहे… एक भाजपा सांसद ने इस पर आपत्ति की कि बिना प्रमाण के आरोप लगाना विधान सम्मत नहीं, वे या तो प्रमाण दें, वरना उनके बोले को हटाया जाए और जब उनके कुछ वचनांशों को हटा दिया गया, तो उनके एक पैरोकार बोले कि यह जनतंत्र की हत्या है… ये क्या बात हुई सर जी!

इसके बाद असली अवसर लोकसभा में शेरो-शायरी से सजा पीएम का चुटीला भाषण रहा, जिसे विपक्ष ने अपेक्षाकृत शांति से सुना, लेकिन अगले रोज राज्यसभा के दृश्य एकदम उलटे दिखे। इधर पीएम बोलते रहे, उधर विपक्ष पूरे अस्सी मिनट 'मोदी अडाणी भाई भाई' के नारे लगाता रहा। अफसोस, कैमरों ने नारे लगाने वालों को न दिखाया, अगर दिखाते तो हमको भी मालूम होता कि किसके गले में इतना दम था…

बहरहाल,अपने जवाबी भाषण के अंत में पीएम ने सीना ठोक कर कहा कि देश देख रहा है कि एक अकेला कितनों पर भारी पड़ रहा है… जो 'दूध का दूध पानी का पानी' मांग रहे थे, वे जान लें कि अब वे हंस कहां, जो 'नीर क्षीर' कर सकें! आज बनावटी राजनीति ने दूध और पानी को इस कदर फेंट दिया है कि लाख फिटकरी डालो, उबालो, दूध और पानी अलग होता ही नहीं!




क्रेडिट : jansatta.com



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