हालांकि फोर्ड और जनरल मोटर्स को टाटा और महिंद्रा जैसी कंपनियों से उतनी टक्कर नहीं मिली, जितनी टक्कर इन्हें मारुति और हुंडई से मिली. फोर्ड और जनरल मोटर्स के भारतीय बाजार में ना चलने के पीछे कई अहम कारण थे. सबसे खास कारण था. फोर्ड का भारतीय बाजार के उस हिस्से पर फोकस ना कर पाना, जिसकी सबसे ज्यादा बिक्री होती है. यानि जिन कारों की कीमत 3 से 5 लाख के बीच होती है. फोर्ड के पास ऐसा कोई मॉडल नहीं था. इस सेगमेंट में फोर्ड के पास 'फ्रीस्टाइल' कार थी, जिसकी शुरुआत ही 6 लाख रुपए से होती है. जबकि मारुति और अन्य कंपनियों के पास ऑल्टो, वैगनआर, स्विफ्ट जैसी कई कारें हैं जो इस रेंज में आती हैं.
800 सीसी वाली कारों में पिछड़ गईं यह विदेशी कंपनियां
800 सीसी वाली कारों का भारत में सबसे बड़ा बाजार है. फोर्ड के पास इस सेगमेंट में केवल फीगो और फ्रीस्टाइल कारें ही हैं. वहीं दूसरी ओर ह्युंडई के पास कई फीचरों वाली i20, सुजुकी की स्विफ्ट और बलेनो, टाटा मोटर्स की टियागो और आल्ट्रोज ने इस सेगमेंट पर कब्जा कर रखा है. दूसरी बात की फोर्ड की फीगो और फ्रीस्टाइल के कीमत की शुरुआत 6 लाख से है जो भारतीय बाजार के हिसाब से केवल मिडिल या लोअर मिडिल क्लास तक ही पहुंच रखती है. हवाई सुजुकी के पास ऑल्टो है जिसकी शुरुआत लगभग सवा तीन लाख रुपए से होती है. मारुति अपनी इन्हीं छोटी कारों के बदौलत छोटी कारों के मार्केट में 67 फ़ीसदी की हिस्सेदारी रखती है.
फोर्ड के रेंज पर महिंद्रा टिकी हुई है?
फोर्ड जरूर भारतीय बाजार से चली गई, लेकिन उसी रेंज की महिंद्रा जैसी कंपनियां अभी भी भारतीय बाजार में कैसे टिकी हुई हैं. इस पर भी कई सवाल उठ रहे हैं. इसका बहुत सीधा सा जवाब है दरअसल महिंद्रा छोटी कारों के सेगमेंट में काम नहीं करती है. महिंद्रा मल्टी यूटिलिटी व्हीकल और एसयूवी सेगमेंट में पकड़ बनाए हुए हैं. उसमें उसके मॉडल्स की रेंज भी काफी लंबी है. इसके साथ ही उसने मिड रेंज जिनकी कीमत 6 से 10 लाख के बीच होती है, में भी दूसरी कंपनियों को टक्कर देने के लिए केयूवी और टीयूबी जैसे मॉडल मार्केट में उतारे हैं.
भारत में मारुति का बाजार सबसे बड़ा
भारत के कार बाजार में मारुति की पकड़ ज्यादा मजबूत है. उतनी शायद ही किसी और ऑटोमोबाइल कंपनी की होगी छोटी कारों में जहां मारुति की बादशाहत 67 फ़ीसदी है वही कॉम्पैक्ट कारों के सेगमेंट की बात करें तो उसमें भी 64 फ़ीसदी मारुति की पकड़ है. हालांकि यह जरूर है कि मारुति की हिस्सेदारी 2018 के मुकाबले घटी है. 2018 में जहां एसयूवी सेगमेंट में मारुति की हिस्सेदारी 26 फ़ीसदी हुआ करती थी. वह अब घटकर 14 फ़ीसदी ही रह गई है.
फोर्ड के जाने के 2 महत्वपूर्ण कारण
भारत से कार कंपनी फोर्ड इंडिया के जाने से उसमें काम करने वाले कंपनी के करीब 4000 कर्मचारी प्रभावित होंगे। हालांकि कंपनी केवल भारत में कार बनाना बंद कर रही है उसके इंजन पार्ट्स अभी भी बनते रहेंगे. फोर्ड के जाने के पीछे दो मुख्य कारण हैं- पहली कोरोना की वजह से भारत के कार बाजार में नरमी और दूसरी महिंद्रा के साथ उसका करार खत्म हो जाना. दरअसल पिछले 10 सालों में फोर्ड ने भारत में अच्छा खासा निवेश किया था लेकिन इसके बावजूद भी उसे लगभग 2 अरब से ज्यादा का घाटा हुआ है. साल 2021 में फोर्ड की बाजार हिस्सेदारी घटकर 2 फ़ीसदी हो गई थी इसकी वजह से कंपनी अपनी स्थापित क्षमता का केवल 20 फ़ीसदी ही इस्तेमाल कर पा रही थी महामारी के कारण निर्यात में 55 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी.
कार खरीदारों की बड़ी रफ्तार क्या कहती है
भारत में अपना व्यापार बंद करने को लेकर फोर्ड ने जो दलील दी उसमें से एक दलील यह भी थी कि भारत में कार बाजार नरमी पर है, लेकिन आंकड़ों पर नजर डालें तो वह कुछ और ही कहानी बयान करते हैं. भारत में कार बाजार में 80 फ़ीसदी की हिस्सेदारी रखने वाली तीन बड़ी कंपनियां जिनमें मारुति सुजुकी, हुंडई मोटर्स और टाटा मोटर्स शामिल हैं का दावा है की मार्केट में नए खरीददार काफी तादाद में सामने आ रहे हैं. मारुति सुज़ुकी के खरीदारों पर नजर डालें तो वित्त वर्ष 2020-21 में यह बढ़कर 47 फ़ीसदी हो गई थी, जो वित्त वर्ष 2019-20 में 43 फ़ीसदी रही थी. वही हुंडई मोटर इंडिया के खरीदारों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. 2019 में जहां इसकी बिक्री 32 फ़ीसदी रही थी. वहीं इस वर्ष यह 40 फ़ीसदी तक हो गई है.
पैसेंजर कार मार्केट में अभी ग्रोथ की बहुत संभावना है
मारुति सुजुकी इंडिया के चेयरमैन आर सी भार्गव का मानना है कि भारत में अभी पैसेंजर कार मार्केट में ग्रोथ की बहुत बड़ी संभावना है. दरअसल आरसी भार्गव का कहना है कि अगर वाहन उद्योग को अर्थव्यवस्था तथा विनिर्माण क्षेत्र को गति देना है तो देश में कारों की संख्या प्रति एक हजार व्यक्ति पर 200 होनी चाहिए. जो फिलहाल 25 से 30 है. इसके लिए हर साल लाखों कार बनाने की जरूरत है.
पिछले दिनों ही आर सी भार्गव ने वाहन उद्योग संगठन सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स के 61वें सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि सरकार भले ही ऑटो इंडस्ट्री को सपोर्ट देने के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करती है, लेकिन जब बात सही कदम उठाने की होती है तो जमीन पर ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता है. उन्होंने कहा ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री में लंबे समय से गिरावट आ रही है ऐसे में इस पर ध्यान देने की जरूरत है.