नेपाल में अब देउबा सरकार

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भंग प्रतिनिधि सभा को करीब पांच महीने में दूसरी बार बहाल करते हुए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को बड़ा झटका दिया है,

Update: 2021-07-14 03:54 GMT

आदित्य चोपड़ा| नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भंग प्रतिनिधि सभा को करीब पांच महीने में दूसरी बार बहाल करते हुए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को बड़ा झटका दिया है, जो सदन में विश्वासमत हारने के बाद अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। विश्वासमत हारने के बावजूद राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी द्वारा केपी शर्मा को प्रधानमंत्री बनाना ही लोकतंत्र से एक मजाक साबित हुआ। विपक्ष ने ओली द्वारा संसद भंग करने के मामले में अदालत में चुनौती दी थी और साथ ही संसद के निचले सदन की बहाली और नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का अनुरोध किया था, इस याचिका पर 149 सांसदों के हस्ताक्षर हैं। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री ओली के सभी फैसलों को पलट दिया। नेपाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संविधान की रक्षा हुई है, लोकतंत्र की रक्षा की गई है और संविधान की कानूनी व्याख्या की गई है। जबकि ओली की पार्टी का कहना है कि शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करने के सुप्रीम काेर्ट का आदेश संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है। संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल सुप्रीम कोर्ट के पास प्रतिनिधि सभा की बहाली के लिए पर्याप्त आधार था। अदालत के पास सदन भंग करने के फैसले को उलटने के लिए 23 फरवरी के फैसले में भी मिसाल थी। ओली के 20 दिसम्बर के सदन के विघटन के 23 फरवरी को अदालत ने यह कहते हुए पलट दिया था कि सदन को तब तक भंग नहीं किया जा सकता जब तक वैकल्पिक सरकार बनाने की सम्भावनाएं हैं। शेर बहादुर देउबा काफी लम्बे वक्त से नेपाल की राजनीति में सक्रिय हैं और वो पहले भी नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं और फिलहाल नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। वे तीन जून 2004 से लेकर एक फरवरी 2005 के बीच प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं। वे इस दौरान तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं।

अब सवाल यह है कि नेपाल की नई सरकार बनेगी तो कितने ​दिन चलेगी। उसका भविष्य क्या होगा। सवाल यह भी है कि यूएमएल के माधव कुमार नेपाल धड़े का समर्थन देउबा के साथ ​कितने दिन रहेगा। क्योंकि 24 मई को अदालत में याचिका दायर करने वाले 146 सांसदों में से 23 यूएमएल के नेपाल गुट के हैं। यद्यपि माधव कुमार नेपाल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सराहनीय काम किया है, क्योंकि अदालत ने सीधे देउबा को नया प्रधानमंत्री नियुक्त करने को कहा है। ऐसे में हमारे लिए कोई भूमिका नहीं बचती। अब संसद बहाल हो गई है और सभी फैसले संसद करेगी। नेपाल यद्यपि छोटा सा मुल्क है परन्तु वहां की 80 फीसदी आबादी हिन्दू धर्म को मानती है। शैव मत और गोरखनाथ की बड़ी मान्यता है। सभ्यता और संस्कृति के मापदंडों पर भी नेपाल की नजदीकी भारत के साथ बैठती थी। भारतीय उपमहाद्वीप में नेपाल हिन्दू राष्ट्र के तौर पर अपनी भाषा, संस्कृति और पहनावे और अध्यात्म की अलग पहचान रखता था। नेपाल के राजा को हिन्दू देवी-देवताओं की तरह पूजा जाता था लेकिन धीरे-धीरे नेपाल के उदारवादी नेता हाशिये पर जाते गए आैर माओवादी बंदूक की नोंक पर अपने हिसाब से लोकतंत्र की परिभाषा तय करने लग गए। 28 मई, 2008 को नेपाल के इतिहास में राजवंश युग का अंत हो गया।
राजशाही के खिलाफ नेपाली इ​सलिए एकजुट हुए थे क्योंकि उन्हें यही समझाया गया था कि नेपाल को राजशाही से मुक्त होकर अच्छा शासन मिलेगा और लोगों को ज्यादा स्वतंत्रता मिलेगी। हुआ इसके उलट, नेपाल के हाथ लगी राजनीतिक अस्थिरता। लोकतंत्र की सांसें राजनीतिक दलों की भयंकर गुटबाजी में अटक गईं। जिस तरह से माओवादियों का उदय नेपाल में हुआ था तभी से चीन की नजरें उस पर लगी हुई थीं। सरकारें बनती और टूटती गईं। तीन वर्ष पहले केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में पीपीएन यूएमएल और नेपाल की माओवादी क्रांति के जनक पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व वाली सीपीएन माओवादी ने चुनावी गठबंधन किया था। गठबंधन को बहुमत भी मिला। सरकार बनने के बाद दोनों दलों का विलय हो गया लेकिन दोनों में मतभेद पैदा हो गए और राजनीतिक ​अस्थिरता का नया दौर शुरू हो गया। ओली के प्रधानमंत्री नहीं रहने से चीन को भी जबर्दस्त झटका लगा है। क्युकी ओली चीन के एजैंट के तौर पर काम कर रहे थे और भारत विरोधी रवैया अपनाए हुए थे। चीन का हस्तक्षेप सरकार में बहुत बढ़ गया था। मौजूदा संघीय लोकतांत्रिक ढांचे से जनता का मोह भंग हो चुका था। नेपाल की नई सरकार को भारत से रिश्ते सामान्य बनाने होंगे। नेपाल में हर राजनीतिक दल की जिम्मेदारी है कि वे लोकतंत्र को स्वस्थ बनाएं। भारत के ​​लिए नेपाल की सरकार के परिवर्तन काफी महत्वपूर्ण हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि नेपाली कांग्रेस भारत से अच्छे संबंधों की पारम्प​रिक नीति को आगे बढ़ाएगी।


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