देश में कोरोना के मोर्चे पर हालात सुधरने के बावजूद राहुल पीएम मोदी पर नाकामी का आरोप लगा रहे हैं
हाल में उन्होंने कहा कि एकजुट होकर ही हम इस आपदा से लोगों का जीवन और आजीविका की रक्षा कर सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस घेब्रेयसिस ने वैश्विक महामारी कोविड-19 से निपटने में निरंतर सहयोग के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार प्रकट किया है। हाल में उन्होंने कहा कि एकजुट होकर ही हम इस आपदा से लोगों का जीवन और आजीविका की रक्षा कर सकते हैं। दरअसल डब्ल्यूएचओ के मुखिया भारत द्वारा बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और नेपाल जैसे तमाम पड़ोसी देशों को वैक्सीन आपूर्ति करने के फैसले के आलोक में यह प्रशंसा कर रहे थे। पिछले एक वर्ष में यह चौथा अवसर था जब डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने केंद्र सरकार द्वारा महामारी से निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों की सराहना की।
विश्व की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी में कोरोना को रोकने की डब्ल्यूएचओ ने मोदी की तारीफ की थी
गत वर्ष जुलाई में उन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती मानी जाने वाली धारावी (मुंबई) में कोरोना संक्रमण को रोकने की तारीफ की थी। इसे मिसाल बताते हुए उन्होंने कहा था कि यह दर्शाता है कि चरम पर होने के बावजूद संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है। गत वर्ष उन्होंने सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की प्रशंसा की थी जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत वैक्सीन के मोर्चे पर अपनी शक्ति का उपयोग वैश्विक समुदाय को कोरोना से मुक्ति दिलाने में करेगा। फिर नवंबर में जब पीएम मोदी ने घेब्रेयसस से वार्ता की तो डब्ल्यूएचओ के सर्वेसर्वा ने भारत के प्रयासों और आयुष्मान भारत जैसी पहल की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत स्वास्थ्य क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। गत वर्ष मई में भारत में डब्ल्यूएचओ प्रतिनिधि ने भारत के प्रयासों को व्यापक एवं प्रभावी बताया था। इस संस्था ने उत्तर प्रदेश के कोविड प्रबंधन विशेषकर कांटैक्ट-ट्र्रेंसग रणनीति की तारीफ करते हुए कहा था कि यह अन्य राज्यों द्वारा अपनाने योग्य भी है।
अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ के सुर से सुर मिलाते हुए कहा- भारत वैक्सीन जरूरतें पूरी करने के लिए तत्पर
अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत को अपने प्रयासों पर खूब वाहवाही मिली। अमेरिका ने भी डब्ल्यूएचओ के सुर से सुर मिलाते हुए कहा कि भारत दूसरे देशों की वैक्सीन जरूरतें पूरी करने के लिए तत्पर है। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा, 'हम वैश्विक स्वास्थ्य में भारत की भूमिका को सराहते हैं जो दक्षिण एशिया में कोविड टीके की लाखों खुराक साझा कर रहा है।'
भारत ने कोरोना से निपटने में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की
आखिर इन बातों के क्या मायने हैं? दरअसल ये इसलिए महत्वपूर्ण हैं ताकि नागरिकों को कुछ नेताओं विशेषकर राहुल गांधी द्वारा कोविड प्रबंधन के मामले में लगातार किए जा रहे दुष्प्रचार और नकारात्मकता से मुक्ति मिले। यह तब है जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और स्पेन जैसे विकसित देश कोरोना से निपटने में अभी भी लड़खड़ा रहे हैं वहीं भारत में केंद्र की मोदी सरकार और राज्यों में विभिन्न दलों के नेतृत्व वाली सरकारों ने कदम से कदम मिलाकर सेहत संबंधी उस आपदा से निपटने में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है जैसी आपदा से देश सदियों में एक बार ही दो-चार हुआ हो।
राहुल गांधी की कोरोना पर की जा रही क्षुद्र राजनीति देश की छवि खराब कर रही है
राहुल गांधी ने पहले तो गत वर्ष मार्च में मोदी सरकार द्वारा लगाए लॉकडाउन की आलोचना की और जब सरकार ने लॉकडाउन हटाया तो उन्होंने उसका भी विरोध किया। अपनी दलीलों को मजबूती प्रदान करने के लिए उन्होंने जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों के आंकड़ों का उदाहरण दिया जहां लॉकडाउन हटाने के बाद कोरोना मामले घटे जबकि भारत में उनमें तेजी आई। उसके बाद से ही वह कोविड से निपटने में देश के प्रयासों की आलोचना करते आए हैं। इसमें उन्होंने यह लिहाज भी नहीं किया इस पर उनके द्वारा की जा रही क्षुद्र राजनीति देश की छवि ही खराब कर रही है। अब उन देशों की खस्ताहालत को देखते हुए पता नहीं उनके पास क्या तर्क होंगे? चूंकि वहां कोविड-19 काबू से बाहर हो रहा है तो ये देश नए सिरे से लॉकडाउन लगाने पर विवश हैं।
दुनिया भर में 10 करोड़ से अधिक लोग अब तक इस वायरस की चपेट में आ चुके
दुनिया भर में 10 करोड़ से अधिक लोग अब तक इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं। भारत में 24 जनवरी को कोरोना के 13,203 नए मामले सामने आए, जो 14 सितंबर 2020 को आए 97,894 के चरम पर पहुंचे मामलों से खासे कम हैं। गत चार महीनों से नए मामलों में कमी आ रही है। इसके उलट राहुल जिन देशों की तारीफों के पुल बांध रहे थे वे देश फिलहाल भारी मुश्किल में फंसे हैं। इस समय ब्रिटेन में 20 लाख तो फ्रांस में 27 लाख सक्रिय मामले हैं जबकि भारत में 1.78 लाख ही सक्रिय मामले रह गए हैं। वहीं 2.5 करोड़ मामले दर्ज करने वाले अमेरिका में अभी भी करीब एक करोड़ सक्रिय मामले हैं। ऐसे में यह अजीब लगता है कि भारत में हालात सुधरने के बावजूद राहुल गांधी मोदी सरकार पर नाकामी का आरोप लगाकर हमला करने में लगे हैं। उनका आरोप है कि अनियोजित लॉकडाउन जैसे कदम से हालात बेकाबू हो गए और लाखों लोग मर गए। इसके उलट सत्य यही है कि भारत उन देशों में से एक है जहां इस महामारी के चलते मृत्यु दर खासी कम रही। एक करोड़ संक्रमितों में से यहां 1.5 लाख लोगों की जान गई। यानी मृत्यु दर 1.5 फीसद रही जो दुनिया में न्यूनतम दरों में से एक है। अच्छी बात यही है कि अधिकांश राज्यों के मुख्यमंत्री राहुल गांधी की बातों पर ध्यान नहीं दे रहे। वे केंद्र के सक्रिय सहयोग से अपने राज्यों में इस संकट का समाधान करने में जुटे हैं।
डब्ल्यूएचओ ने महामारी से निपटने के उपायों पर हो रही राजनीति की आलोचना की
इस बीच डब्ल्यूएचओ स्वास्थ्य आपात कार्यक्रम की स्वतंत्र निगरानी एवं सलाहकार समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में महामारी से निपटने के उपायों पर हो रही राजनीति की आलोचना की है। यह रिपोर्ट राहुल गांधी जैसे नेताओं की ओर ही इशारा करती है जिसमें कहा गया है कि सरकारों पर ऐसे आरोपों से जनता का मनोबल गिरता है और इस अभियान को ठेस पहुंचती है। समिति का यही मानना है कि इस अप्रत्याशित संकट में दुनिया एक अहम मोड़ पर खड़ी है और व्यापक वैश्विक एकजुटता और बहुपक्षीय सहयोग के बिना इसे मात दे पाना मुश्किल है।
राहुल वास्तविकता को समझने में नाकाम रहे
ऐसे में यह बहुत दुखद है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेता इस वास्तविकता को समझने में नाकाम रहे और अपने छिछले आरोपों से लगातार केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ही उन स्वास्थ्यकर्मियों की सेवा और समर्पण पर सवाल उठा रहे हैं जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालते हुए कोरोना मरीजों का उपचार किया। यह विध्वंसकारी राजनीति का चरम है। सौभाग्य से उनकी अपनी ही पार्टी में कुछ समझदार नेता हैं जो उनकी राय से सहमति नहीं रखते और देश को इस भयंकर संकट से बाहर निकालने में अनर्थक प्रयास कर रहे हैं।