मौत का मांझा
हर साल जुलाई-अगस्त के महीने में खूब पतंगबाजी होती है, जिसमें अनेक लोग चीनी मैटेलिक मांझे का प्रयोग करते हैं, जो बहुत खतरनाक और जानलेवा है। अभी एक ताजा घटना में चीनी मांझे से एक युवा कारोबारी की गर्दन कटने से दिल्ली के मुकरबा चौक पर मौत हो गई। इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं।
Written by जनसत्ता: हर साल जुलाई-अगस्त के महीने में खूब पतंगबाजी होती है, जिसमें अनेक लोग चीनी मैटेलिक मांझे का प्रयोग करते हैं, जो बहुत खतरनाक और जानलेवा है। अभी एक ताजा घटना में चीनी मांझे से एक युवा कारोबारी की गर्दन कटने से दिल्ली के मुकरबा चौक पर मौत हो गई। इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं।
अजीब बात तो यह है के ये घटनाएं निरंतर पिछले कई सालों से जारी हैं, जिस पर प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। इन बेहद खतरनाक चीनी माझे पर तुरंत पूर्ण रोक बहुत जरूरी है। यह मांझा कहीं रास्ते में पड़ा हो तो भी अनेक लोगों को घायल करता और प्रदूषण भी फैलाता है। पशु-पक्षी भी इसकी लपेट में आकर घायल होते और बेमौत मारे जाते हैं। इसलिए इस पर पूर्ण रोक ही सबके हित में है।
देश में कई राजनीतिक दल मतदाताओं को वोट के बदले मुफ्त में दिए जाने वाले उपहार की घोषणा मंच से करते हैं। देश की करोडों की आबादी को मुफ्त की भेंट देश के लिए गंभीर समस्या पैदा करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए केंद्र को निर्देश जारी कर रेवड़ी की प्रवृत्ति पर काबू पाने का आदेश दिया है। अदालत ने इसे सूचीबद्ध करने को भी कहा गया है।
वोट के बदले मुफ्त बिजली और मुफ्त में दिए जाने उपहार से देश के राजस्व में घाटा होता जाता है। यह धीमा जहर है। इससे आर्थिक व्यवस्था चौपट होती है। हर वर्ष की अरबो रुपए की रेवड़ी बांटने का काम ये पार्टियां कर रही हैं। उनके पास कोई दृष्टि नहीं है। उनके पास रोजगार, अच्छी शिक्षा, उत्पादन, विकास, आय के स्रोत बढ़ाने या देश की तरक्की का कोई एजेंडा नही है। राजनीतिक दल मुफ्त की घोषणा करते हैं और उसके संबंधित विभाग करोड़ों-अरबों का घाटा सहन करता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने राजनीतिक दलों द्वारा दिए जाने वाले मुफ्त उपहारों पर सवाल उठाया। जनहित याचिका पर उनके विचार पूछे। जिस तरह मुफ्त बिजली पानी या अन्य वस्तुओं का उपहार हर साल करोड़ों में परिवर्तित होते है, उससे देश को घाटा है। वोट के बदले उपहार की प्रवृत्ति घाटे में रूपांतरित हो जाती है। इस नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र से फंड लिया जाता है। मुफ्तखोरी को नियंत्रित करना राजनीतिक दलों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। राज्य सरकारों को भी ध्यान देने का निर्देश दिया गया है। इस मुद्दे पर सरकार पुन: विचार कर रोक लगाए। इसे नियंत्रित करने की चेष्टा होनी चाहिए।
देश में संसद सत्र के दौरान गतिरोध सामान्य घटना लगने लगी है। मानसून सत्र के दौरान संसद हंगामे की भेंट चढ़ रही है। संसद संवाद का एक उत्कृष्ट मंच है, लेकिन सदस्य गण को हंगामा कर जनता का ध्यान आकृष्ट कराने की बीमारी लगी है। अगर समय रहते इस बीमारी का इलाज नहीं किया गया, तो आने वाले समय में संसद की कार्यवाही बेहद मुश्किल हो जाएगी। संवाद से कठिन समस्याओं का आसानी से हल निकाला जा सकता है।
लोग महंगाई, खाद्य पदार्थों पर जीएसटी, बेरोजगारी, प्रदूषण, अग्निपथ जैसे विषयों पर सार्थक चर्चा की उम्मीद लगाए हुए थे, लेकिन विपक्षी पार्टियां सिर्फ हंगामा कर अपने कर्तव्यों का पालन करना समझती है। महंगाई के मुद्दे पर विपक्षी दलों को सरकार को घेरने का अवसर था, लेकिन विपक्षी पार्टियों ने इस अवसर पर गवां दिया।