जानलेवा नलकूप
हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों के बाद भी आज तक नलकूपों की सुरक्षा नहीं की जा रही है। इन्हें लापरवाही से खुला छोड़ने के कारण आज भी नलकूप में बच्चों के गिरने का सिलसिला जारी है।
Written by जनसत्ता: हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों के बाद भी आज तक नलकूपों की सुरक्षा नहीं की जा रही है। इन्हें लापरवाही से खुला छोड़ने के कारण आज भी नलकूप में बच्चों के गिरने का सिलसिला जारी है। ऐसे हादसों में दम घुटने से इन छोटे मासूम बच्चों की जान चली जाना काफी दुखद है। ऐसे हादसे एक तरह से सबके लिए सबक हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे हादसे होते रहते हैं। पिछले दिनों एक सप्ताह में तीन हादसों में दो में मासूम बच्चों की जान जाना बहुत ही दुखदायी है।
मगर आश्चर्य है कि न तो ऐसे हादसों पर लगाम कसने के कड़े कदम उठाए जाते हैं, न ही इन नलकूप हादसों से कोई सबक लिया जाता है। दुख तो इस बात का है कि लगातार होते हादसे जिंदगी का कोई नजरिया भी बदल पाते हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर लगातार सामने आते नलकूप हादसों के बावजूद खुले नलकूपों में कब तक मासूम जानें दम तोड़ती रहेंगी।
अक्सर कोई बड़ा हादसा होने पर प्रशासन द्वारा नलकूप खुला छोड़ने वालों के खिलाफ सख्ती का नाटक किया जाता है, पर फिर भी ऐसे हादसों पर रोक नहीं लगती। निरंतर सामने आते ऐसे हादसे यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि सख्ती की ये बातें महज बयानों तक सीमित रहती हैं।
21 जुलाई, 2006 को हरियाणा के एक गांव में पांच वर्षीय प्रिंस के पचास फुट गहरे नलकूप में गिरने के बाद बचाव अभियान के दृश्य टीवी चैनलों पर दिखाए जाने के चलते पहली बार पूरी दुनिया का ध्यान ऐसे हादसों की ओर गया था और उम्मीद जताई गई थी कि अब फिर ऐसे हादसे सामने नहीं आएंगे, किंतु विडंबना यही है कि आज भी ऐसे हादसे जारी हैं।
साल भर में औसतन पचास बच्चे इन बेकार पड़े नलकूपों का शिकार बन जाते हैं। इसलिए प्रशासन को चाहिए कि ऐसे हादसों को रोकने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाए। नलकूप मालिकों पर अत्यधिक सख्ती की जाए, ताकि वे बंद पड़े नलकूप को ढक्कन लगा कर रखें।
इसके बाद भी फिर अगर कोई घटना घट जाती है, तो नलकूप में गिरे बच्चों को बाहर निकालने की कार्यवाही तुरंत की जाए तथा बच्चों को निकालने के लिए काम में आने वाले आधुनिक यंत्रों का इस्तेमाल किया जाए ताकि बच्चा शीघ्र नलकूप से बाहर निकाला जा सके।