भारत के लाल को सलाम बेटियों ने दी अंतिम विदाई

देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत की अंतिम यात्रा के दौरान जिस तरह सारे देश के लोगों की भावनाएं उमड़ीं। देश के कोने-कोने से लोग दिल्ली पहुंचे, कोई पुणे से, कोई पिथौरागढ़ से, कोई उत्तराखंड से।

Update: 2021-12-12 01:50 GMT

देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत की अंतिम यात्रा के दौरान जिस तरह सारे देश के लोगों की भावनाएं उमड़ीं। देश के कोने-कोने से लोग दिल्ली पहुंचे, कोई पुणे से, कोई पिथौरागढ़ से, कोई उत्तराखंड से। कुल मिलाकर देशभक्ति और देश पर मर मिटने वाले सीडीएस, उनकी पत्नी और सेना के 13 अन्य सदस्यों की दुर्घटना से सारा देश हिल गया। अंतिम यात्रा के दौरान जिस तरह से भावुक नजारा देखने को मिला उसे देखकर सेना के अधिकारी भी दंग थे। सीडीएस के पार्थिक शरीर को तिरंगे में लिपटे एक ताबूत के अन्दर रखकर जैसे ही गन केरिज​ घर के अन्दर से निकली फुटपाथ के किनारे खड़े लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। चारों तरफ से 'जनरल बिपिन रावत अमर रहें' के नारे गूंज उठे। हर कोई इस दृश्य को देखकर भावुक था। हाथों में तिरंगे झंडे लिए युवाओं का हुजूम गन कैरिज के पीछे-पीछे नारे लगाते दौड़ा चला आ रहा था। बड़ी संख्या में युवक, महिलाआएं, बच्चे शामिल हो रहे थे। रास्ते से गुजर रहे लोगों ने अपनी गाड़ियां रोक कर श्रद्धांजलि दी। एक पुणे से आई महिला ने कहा कि वह बच्चों को दिखाने लाई है ​कि एक सच्चे देशभक्त, देश सेवा को लोग कैसे सलाम करते हैं, ताकि मेरे बच्चों में भी देशभक्ति का जज्बा बना रहे।एक आम नागरिक होने के नाते मेरी आंखें भी नम थीं। सबसे अधिक मैं उस समय भावुक हो गई जब सीडीएस रावत और उनकी पत्नी के पार्थिव शरीर को एक साथ दोनों बेटियों ने मुखाग्नि दी। एक तो उनकी पत्नी मधूलिका पर फक्र महसूस कर रही थी, ​​जिनके नेक कामों की मैंने बहुत चर्चा सुनी और उनके भाग्य पर भी फक्र कर रही थी कि वह अपने पति के साथ विदाई ले रही थीं। जब पति-पत्नी ऐसे जाते हैं तो इसे सौभाग्य ही माना जाता है। एक पत्नी की नजर में, दूसरा उनकी बेटियों के साहस को जो अपने माता-पिता को इकट्ठे जाते देख रही थीं। मुखा​ग्नि दे रहीं बेटियों के ​लिए बहुत कठिन समय था,परन्तु बहादुर माता-पिता की संतान बहुत बहादुरी से अपने फर्ज निभा रही थीं। यही नहीं ब्रिगेडियर लिद्दर की बेटी आशना बोली मेरे पिता हीरो थे और उनकी पत्नी जो बार-बार ताबूत को चूम रही थीं, उस दृश्य को देखकर कलेजा चीर हाे रहा था क्योंकि मैं जानती हूं पति के जाने के बाद एक पत्नी को बड़ी बहादुरी, सहनशीलता से जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो आसान नहीं है।कुछ वर्ष पहले और अभी भी कहीं-कहीं लोग बेटियों के होने पर परेशान हो जाते हैं परन्तु आजकल जो मिसाल सामने आती है और विशेषकर मधूलिका जी के जीवन और उनके कार्य को देखना और उनकी दोनों बेटियों और ब्रिगेडियर लिद्दर की बेटी आशना, उनकी पत्नी को देखकर ऐसा लगता है ऐसी महिलाएं जीवन में, समाज में प्रेरक बनकर लोगों की पीड़ा कम कर सकती हैं।संपादकीय :ये रास्ते हैं जिन्दगीमास्क लगाना सामाजिक दवाईभारत की रगों में बहता लोकतन्त्रक्रिकेट : परिवर्तन और विवादकिसान आन्दोलन की समाप्तिआओ झुककर सलाम करें.मधूलिका जी हमेशा आर्मी जवानों के घरों को लेकर उनकी समस्याओं के बारे में जानकारी लेकर उनकी समस्याओं का समाधान ढूंढती थीं। सुना है वह अक्सर कहा करती थीं कि हम सबके पति देश की सेवा के लिए हैं और वो देश की सेवा करें, हमें उनकी ताकत बनना है। हमें बड़े से बड़े बलिदान देने के लिए तैयार रहना है। सचमुच मेरे विचार में एक परिवार का समर्पण अगर राष्ट्र के प्रति है तो उसके पीछे उसकी पत्नी का बहुत बड़ा हाथ होता है। सचमुच जनरल रावत और उनकी पत्नी के प्रति सेना को और हम सबको नाज है। इस महान दम्पति काे हमारा सबका सैल्यूट और साथ ही सभी अन्य साथियों को और उनके परिवारों को सांत्वना, यह भावना, सम्मान उनके सभी के लिए दिल से जिन्होंने जिन्दगी का हर लम्हा देश के लिए बिताया। ऐसे महान पुरुष कभी भी मरते नहीं। वह अपने दृष्टिकोण, सोच की अमिट छाप छोड़ जाते हैं और हमेशा अपने कामों और देशभक्ति से लोगों के दिलों में जीवित रहते हैं।

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