संकट और चुनौती
कोरोना महामारी से निजात को लेकर अभी भी बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं नहीं। क्योंकि खतरे का स्तर अभी भी कम नहीं हुआ है। वैश्विक स्तर पर सबसे चिंताजनक स्थिति यूरोपीय देशों की है।
कोरोना महामारी से निजात को लेकर अभी भी बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं नहीं। क्योंकि खतरे का स्तर अभी भी कम नहीं हुआ है। वैश्विक स्तर पर सबसे चिंताजनक स्थिति यूरोपीय देशों की है। गौरतलब है कि यूरोप के कई देश महामारी की पहली लहर के समय से ही काफी चुस्ती और एहतियात से काम लेते रहे हैं। इसके लिए उनकी हर तरफ प्रशंसा भी हुई। हालांकि जर्मनी और रूस सहित कई देशों में बाद के दिनों में यह चुस्ती ढीली भी पड़ी। इस बीच, कोरोना विषाणु के नए स्वरूप आते जाने से भी चिंता बढ़ी है।
यूरोप में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रसार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी चिंता जता चुका है। ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि टीकों की पर्याप्त आपूर्ति के बावजूद यूरोप महामारी का केंद्र बना हुआ है। बहुत सारे टीके उपलब्ध हो सकते हैं, लेकिन वहां टीकों का उपयोग समान नहीं रहा है। इसलिए कोरोना मामलों की संख्या फिर से करीब-करीब रेकार्ड स्तर तक बढ़ने लगी है। करीब तिरपन देशों में कोरोना संक्रमण की वजह से अस्पताल में भर्ती होने की दर अगर एक हफ्ते की तुलना में दोगुनी से अधिक हुई है तो आशंका यही है कि यह महामारी की नई लहर का संकेत है। यदि ऐसा ही चला तो इस क्षेत्र में अगले साल फरवरी तक पांच लाख लोगों को इस महामारी के कारण जान गंवानी पड़ सकती है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यूरोपीय देशों में टीकाकरण की रफ्तार अलग-अलग है। औसतन सैंतालीस फीसद लोगों का टीकाकरण पूरा हो चुका है। महज आठ देश ऐसे हैं, जहां पर सत्तर फीसद आबादी टीके की सभी खुराक ले चुकी है। इस दौरान वे दृश्य लोगों ने टेलीविजन पर खूब देखे हैं जिनमें कई यूरोपीय देशों में कोरोना पाबंदियों को सरकारों ने या तो न्यूनतम कर दिया, या फिर ऐसी सख्ती के खिलाफ वहां जनता विरोध में सड़कों पर उतरी। इस स्थिति को वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के कई समूहों के अलावा डब्लूएचओ भी गभीर मानता रहा है।
डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि टीकों की उपलब्धता के बावजूद यूरोप में संक्रमण के मामले अगर बढ़ रहे हैं तो यह दुनिया के लिए खतरे की एक और घंटी से कम नहीं है। साफ है कि कोरोना संक्रमण के खिलाफ कोई भी कवायद अगर एकतरफा या असंतुलित होगी तो इस महामारी के खतरे से आसानी से मुक्ति संभव नहीं है। भारत उन देशों में शामिल है जो पहले दिन से यह कहता रहा है कि इस महामारी के खिलाफ न सिर्फ वैश्विक पहल की स्पष्ट रूपरेखा तय होनी चाहिए बल्कि इस पर साझा अमल भी होना चाहिए।
बहरहाल, मौजूदा हालात में यूरोप में अब ऐसी स्थिति बन रही है कि वहां टीकाकरण की अनिवार्यता पर बड़े फैसले लिए जाएं। इसकी शुरुआत आस्ट्रिया ने कर दी है। अलबत्ता यूरोपीय संघ में टीकाकरण अनिवार्य करने वाला आस्ट्रिया इकलौता देश जरूर है, लेकिन बाकी देशों की सरकारें भी सख्त पाबंदियां लगा रही हैं।
यूरोपीय देशों की स्थिति भारत जैसे देशों के लिए भी सबक है जहां एक तरफ बड़ी आबादी है, वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य सुविधाओं का आनुपातिक आभाव है। टीकाकरण और जरूरी एहितियात के जरिए ही इस महामारी को कारगर तरीके से रोका जा सकता है। यह समझ यूरोप सहित दुनिया के लिए तो जरूरी है ही, विश्व समाज को भी समझ की इस दरकार पर पक्के तौर पर खरा उतरना होगा।