न्यू आइडिया का सृजन जरूरी

प्रगति की भागीदारी में हिमाचल में ‘न्यू आइडिया’ की जरूरत को अब टाला नहीं जा सकता

Update: 2022-03-25 19:09 GMT

प्रगति की भागीदारी में हिमाचल में 'न्यू आइडिया' की जरूरत को अब टाला नहीं जा सकता, बल्कि जरूरत यह भी है कि हर फाइल-योजना या परियोजना के पुराने ढर्रे को बदला जाए। ढांचागत उपलब्धियों के मात्रात्मक आंकड़े इस प्रदेश को भले ही सुखद अनुभूति दें, लेकिन गुणात्मक दृष्टि से संकल्प और परिकल्पना को बदलना होगा। यहां प्रश्न औचत्य का है और औचित्यपूर्ण ढंग से अधोसंरचना के इस्तेमाल का भी है। आश्चर्य यह कि हिमाचल का विकास राज्यस्तरीय खाके में ऐसी असंतुलित गति है, जो किसी एक क्षेत्र को सशक्त करते हुए अन्य को उपेक्षित कर देता है। मसलन पांच नगर निगमों के गठन के बावजूद शहरीकरण की चुनौतियों का समाधान नहीं खोजा जा रहा। वर्षों से उद्योगों की रफ्तार में उत्पादन को रोजगार की संभावनाओं में देखा जाए, तो सबसे ज्यादा ध्यान सोलन जिला तक ही केंद्रित रहा, जबकि इससे पूर्व जब वाईएस परमार मुख्यमंत्री थे, तो काला अंब से लेकर संसारपुर टैरस तक की पट्टी तक कई औद्योगिक केंद्र विकसित हुए। इसी तरह निजी विश्वविद्यालयों की बाढ़ आई तो सोलन तक ही यह प्रयोग पूरा हो गया और अब इनमें से चंद ही खुद को साबित कर रहे हैं।

बेशक हिमाचल आज भी एजुकेशनल हब बन सकता है, लेकिन इसके लिए माहौल व परिचय की जरूरत है। विडंबना यह है कि एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना में राजनीति ने अपनी अमानत के दो टुकडे़ कर लिए। मेडिकल कालेजों की स्थापना आबादी के हिसाब से इतर यह देखती रही कि इनकी इमारतों पर किस नेता के हस्ताक्षर होंगे। जरा गौर से देखें, तो समझ आएगा कि नेरचौक मेडिकल कालेज व एम्स बिलासपुर में ये हस्ताक्षर कैसे आपसी विरोधी हैं। हमें नहीं मालूम मंडी में मेडिकल, सामान्य या क्लस्टर विश्वविद्यालयों की श्रृंख्ला खड़ी कर देने के बावजूद इन संस्थानों के बीच 'न्यू आइडिया' कैसे सामने आएगा। एक ही आइडिया पर आखिर कितने विभाग काम करेंगे।
मसलन सरकारी भवन निर्माण की अलग-अलग सरकारी एजेंसियां ठेकेदारी से काम कर रही हैं, लेकिन ये एक दूसरे से भिन्न नहीं हैं। हर विभाग का कंस्ट्रक्शन विंग काम कर रहा है और हैरत यह कि इनके अधिकारी मूल विभागों से ही लिए गए होते हैं। आज भी शहरी विकास योजनाओं को लेकर कोई न्यू आइडिया सामने नहीं आया, बल्कि शिमला की स्मार्ट सिटी परियोजना भी केवल डंगे लगाने के अभिप्राय में हमारी खुशफहमी बढ़ा रही है। पर्यटन विकास का कोई स्थायी मॉडल नहीं, बल्कि इकाइयां बनकर लीज की मुनादी कर रही हैं। इसी बीच एक 'न्यू आइडिया' का हिमाचल निजी महत्त्वाकांक्षा से हाजिर होता रहा है। यह न्यू आइडिया का हिमाचल तेजी से बाहर शिफ्ट हो रहा है। चंडीगढ़ और इसके आसपास विकसित हो रही हरियाणा व पंजाब की शहरी कालोनियांे में जीने का न्यू आइडिया खोज रहे हिमाचली अपने साथ अपनी आर्थिक क्षमता भी तो ले जा रहे हैं। देश के विभिन्न भागों में हिमाचली इंजीनियर आईटी क्षेत्र के हर 'न्यू आइडिया' में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं, लेकिन प्रदेश में आज तक रोजगार का 'न्यू आइडिया' पैदा ही नहीं हुआ। वर्षों बाद भी यह प्रदेश कोई एक आईटी पार्क स्थापित नहीं कर पाया, तो 'न्यू आइडिया' कब शुरू होगा। वही रटे रटाए जॉब कांट्रैक्ट, आउट सोर्स बगैरा-बगैरा करते हुए हम अपने बच्चों की क्षमता व सामर्थ्य को सूली पर टांग चुके हैं।
क्या हमने कृषि और बागबानी विश्वविद्यालयों से 'न्यू आइडिया' के वैश्विक माहौल में हो रही उथल-पुथल के बारे में प्रासंगिकता जाननी चाही। क्या हमने सरकारी इमारतों को केवल रोजगार के सरकारी अधिकार से इतर दायित्व की कतार और इनकी उपयोगिता का मूल्यांकन किया। आश्चर्य होता है कि मिल्क फेडरेशन साल में एक या दो बार के त्योहारी मौसम में ही अपने उत्पाद को बाजार लाता है। सेब की वकालत में हम भूल गए कि बेमौसमी सब्जियों, फूलोत्पादन या बिलासपुर के आम, कांगड़ा के किन्नू-लीची को कैसे आगे बढ़ाएं। यह इसलिए भी क्योंकि यहां सरकार और सरकारी ढांचे में अंतर है। जिस दिन सरकारें हिमाचल के सरकारी ढांचे को संवारने चलेंगी, न्यू आइडिया पल्लवित होगा। अभी हाल ही में प्रदेश के परिवहन मंत्री का बयान ऐसे ही न्यू आइडिया को सृजित करके बता रहा है कि भविष्य के बस स्टैंड स्थानीय निकायों या निजी क्षेत्र की साझेदारी में विकसित होंगे। यह प्रशंसनीय है और अगर हर मंत्री व विभाग पूंजी निवेश की संभावनाओं में ऐसी ढांचागत उपलब्धियां सृजित करें, तो प्रदेश की महत्त्वाकांक्षा बदलेगी।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

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