धूर्त कोरोना: ब्लैक-व्हाइट फंगस की नयी चुनौती

सवा साल से तबाही मचाने वाले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को भय व अवसाद से भर दिया है

Update: 2021-05-23 13:12 GMT

सवा साल से तबाही मचाने वाले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को भय व अवसाद से भर दिया है। पहली लहर, दूसरी का भयावह कहर और तीसरी की आशंकाओं के बीच नित नयी सूचनाएं असमंजस व डर का वातावरण बना रही हैं। यही वजह है कि देश के विभिन्न राज्यों के जिलाधिकारियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा भी कि नित नये वेरिएंट सामने और घातकता में बदलाव लाने वाला यह वायरस बहुरूपिया है और धूर्त भी है। उन्होंने अब बच्चों और युवाओं को ग्रास बनाने वाले वायरस के खिलाफ नयी रणनीति बनाने और नये समाधान पर बल दिया। इस बीच केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकारों को महामारी बनते ब्लैक फंगस को 'महामारी कानून' के तहत अधिसूचित करने को कहा है। इसके साथ ही जो नये शोध सामने आये हैं, उसके हिसाब से नयी एडवायजरी जारी की है। इसमें कहा गया है कि खांसने और छींकने से कोविड संक्रमण हवा में दस मीटर की परिधि तक चपेट में ले सकता है। इससे बचाव के लिये जारी दिशा-निर्देशों में डबल मास्क लगाने की सलाह भी दी गई है और कमरों में हवा का प्रवाह तेज करने को कहा गया है ताकि बंद कमरों में वायरस की अधिकता को कम किया जा सके। इसका निष्कर्ष यह है कि अब तक जिस बात पर वैज्ञानिक बल देते रहे थे, उसमें बदलाव की जरूरत है। आरंभ में वैज्ञानिकों का कहना था कि खांसने और छींकने में जो बूंदें सतह पर गिरती हैं, उससे संक्रमण फैलता है और यह हवा से नहीं फैलता। इसी क्रम में दो गज की दूरी और सतह को संक्रमण-रहित बनाने पर जोर दिया गया था। लेकिन नयी एडवायजरी से स्थिति बदलती नजर आ रही है। दरअसल, यह एक नयी महामारी है और इसके खिलाफ व्यापक शोध व अनुसंधान का वक्त नहीं मिल पाया है। संभव है धीरे-धीरे कई दूसरी मान्यताओं में भी समय के साथ बदलाव आये।


बहरहाल, कालांतर वैज्ञानिक शोध से यह ठीक-ठीक कहा जा सकेगा कि कोरोना वायरस वास्तव में हवा के जरिये कितनी दूर तक फैलता है। वह संक्रमण करने में कितने समय तक सक्रिय रह सकता है। लेकिन एक बात तो तय है कि कोरोना वायरस का संक्रमण हवा के जरिये फैलता है। इसके लिये जरूरी है कि कमरों में ताजा हवा की अधिकता हो। कमरे हवादार न होने पर वायरस के देर तक टिके रहने की स्थिति बन सकती है। ऐसे में वातानुकूलित कमरों में ताजा हवा का लगातार प्रवाह जरूरी है, जिससे संक्रमण की आशंका को टाला जा सकता है। दूसरे, देश में ब्लैक व व्हाइट फंगस के प्रकोप से फिर चिंताएं बढ़ गई हैं। इस बाबत एम्स दिल्ली के विशेषज्ञों द्वारा जारी गाइड लाइन में म्यूको माइकोसिस यानी ब्लैक फंगस का समय रहते पता लगाने तथा उसकी रोकथाम के उपाय बताये गये हैं। इसके जरिये डॉक्टरों व मरीज तथा उसके तीमारदारों को सलाह दी गई है कि समय रहते जोखिम वाले मरीजों की पहचान करके ब्लैक फंगस की शुरुआती जांच की जाये। इसमें इसके शुरुआती लक्षणों के बारे में भी बताया गया है। बताया जा रहा है कि म्यूको माइकोसिस के मामले उन रोगियों में देखे जा रहे हैं, जिन्हें स्टेरॉयड दिया गया। विशेषकर उन मरीजों में जो मधुमेह व कैंसर से ग्रस्त रहे हैं। लेकिन एक बात तय है कि मधुमेह और ब्लैक फंगस के बीच मजबूत संबंध हैं। एम्स ने आंखों के डॉक्टरों को ऐसे सभी जोखिम वाले मरीजों की ब्लैक फंगस के लिये बेसिक जांच करने की सलाह दी है। फिर लगातार ऐसे मरीजों की निगरानी कई हफ्तों तक की जानी चाहिए। बहरहाल, नित नये संकट पैदा करते कोरोना वायरस के मुकाबले के लिये जरूरी है कि बचाव की परंपरागत सावधानियों का पालन किया जाये। अब जब पता चला है कि वायरस हवा के जरिये भी फैलता है तो अतिरिक्त सावधानी जरूरी है। टीकाकरण इसका अंतिम समाधान है और वह फिलहाल लक्ष्य हासिल करता नजर नहीं आता तो बचाव ही उपचार है। मास्क के उचित प्रयोग, शारीरिक दूरी तथा खुली हवा की व्यवस्था बचाव के साधन ही हैं।

क्रेडिट बाय दैनिक ट्रिब्यून 

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