Covid-19: विशेषज्ञों के लिए एक परिकल्पना, ताकि जांच हो कि क्या कोविड-19 एक जैविक-युद्ध है

परिकल्पना का सीधा मतलब है- सोच का वो मॉडल जिसके पीछे मज़बूत और सुविचारित तर्क हो

Update: 2021-06-26 16:55 GMT

परिकल्पना का सीधा मतलब है- सोच का वो मॉडल जिसके पीछे मज़बूत और सुविचारित तर्क हो, और शोध के प्रामाणिक आधारों पर जिसके ज़रिए नतीजे तक पहुंचा जा सके. किसी भी रिसर्च की पहली बुनियाद परिकल्पना ही होती है. सोचना, फिर उसे तर्कों की कसौटी पर कसना और आंकड़े जुटाकर रिसर्च को आगे बढ़ाने के बाद ही वो परिकल्पना नई थ्योरी का रूप लेती है. तभी दुनिया के सामने सच आता है.


कोविड 19 की पहेली को सुलझाने के लिए भी ज़रूरी है कि हम उस परिकल्पना की तह तक जाएं. ये बीमारी कैसे आई? आई या लाई गई या भेजी गई? ये वायरस है या कोई विषाणु हथियार? पूरी दुनिया के लिए अचानक ये महामारी कैसे बन गई? फिर कैसे ग़ायब हो गई और दोबारा और पहले से ज़्यादा खतरनाक बनकर वापस कैसे आ गई? विज्ञान के लिए ये सब अब तक पहेली है. लाखों लोगों की मौत हुई, करोड़ों बीमार हुए, अरबों खरबों का नुक़सान हुआ. दुनिया ने अनिश्चितता का दौर देखा. अब भी हर व्यक्ति के मन में तीसरी लहर का डर घर किए हुए है. इसलिए ज़रूरी है कि SARS-CoV-2 यानि कोरोनावायरस की वास्तविक प्रकृति का पता लगाया जाए.


अगर ये वायरस एक प्राकृतिक घटना है और अगर अनियंत्रित व्यवहार ही इसकी खासियत है, तो अब तक दुनिया के मशहूर और विद्वान वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को इसकी रैंडमनेस में भी एक METHOD का पता लगा लेना चाहिए था. क्योंकि इसकी अनियमितता में भी निश्चित रूप से कोई ना कोई पैटर्न रहा होगा. हालांकि, हकीकत यह है कि दुनिया वायरस के अजीबोगरीब व्यवहार को समझने में नाकाम रही है.

इसलिए इससे उन अटकलों का जन्म होता है कि कहीं कोरोनावायरस की सनक के पीछे किसी की दिमागी खुराफात या कोई षड्यंत्र तो नहीं है. और इसी परिकल्पना के तहत यह भी माना जा रहा है कि वायरस उस लैब से लीक होकर तेजी से फैल गया जहां उसे संगृहित कर रखा गया था और अब उसका 'इस्तेमाल' किया जा रहा है.

पहली और दूसरी दोनों लहर में संक्रमण का तेजी से कम होना
भारत में कोरोना संक्रमण की पहली लहर 16 सितंबर, 2020 को अपने चरम पर पहुंच गई, तब रोजाना इस वायरस से बीमार पड़ने वाले लोगों की तादाद 98,000 के आंकड़े को छू चुकी थी. लेकिन इसके बाद संक्रमण की संख्या तेजी से घटने लगी. यह गिरावट करीब-करीब वर्टिकल थी. आसान शब्दों में कहें तो आसमान से सीधे जमीन पर गिरने जैसी थी. इसकी कोई विश्वसनीय वजह सामने नहीं आई है. याद रहे कि इस वक्त कोई लॉकडाउन नहीं था. अगर हमें यह मालूम होता कि कोरोना संक्रमण में तेज गिरावट के कारण क्या थे तो उसका फायदा दूसरी लहर में मिल सकता था, जो पहली से बदतर थी. या जिस तीसरी लहर की आशंका है उसे काबू करने में हो सकता था.

कोरोना का ग्राफ त्योहारों और चुनावों के बावजूद तेजी से गिरता रहा. जबकि दुर्गा पूजा (22-26 अक्टूबर) से लेकर बिहार विधानसभा चुनाव (25 सितंबर को तारीखों का ऐलान, फिर तीन चरणों में 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को मतदान), दिवाली (14 नवंबर) और क्रिसमस (25 दिसंबर) तक हजारों हजार की तादाद में कई-कई घंटों के लिए लोगों की भीड़ जमा होती रही. इन सबके बावजूद संक्रमण की रेखा या ग्राफ तेजी से गिरता चला गया.

दूसरी लहर में एक बार फिर वही पैटर्न नजर आया. 6 मई, 2021 को प्रतिदिन 4.14 लाख संक्रमण के चरम पर पहुंचने के बाद कोरोना कर्व दोबारा गिर गया. इस बार भी गिरावट तेजी से आई. कुछ लोग इसके लिए लॉकडाउन का हवाला दे सकते हैं, लेकिन कोरोना की पहली लहर लॉकडाउन के बिना ही क्यों खत्म हो गई, इसका उनके पास कोई जवाब नहीं है. यहां हर्ड इम्यूनिटी की थ्योरी भी लागू नहीं होती क्योंकि इसके लिए आबादी के अहम हिस्से (70 फीसदी या ज्यादा) का संक्रमित होना जरूरी है. इस सबसे बावजूद इतनी तेज गिरावट मुमकिन नहीं हो सकती, आप ही बताएं, क्या हो सकती है? मैं दावे से कहना चाहता हूं कि पूरे मामले को इस परिकल्पना से ही समझा जा सकता है जिसकी चर्चा इस लेख में हो रही है.

ताकतवर वायरस की संक्रमण शक्ति का कम होते जाना
मेरी बेहद सीमित और अनौपचारिक रिसर्च कहती है कि दूसरी लहर की शुरुआत में एक आदमी के कोराना संक्रमित होने पर उसके परिवार के बाकी सभी सदस्य वायरस की जद में आ जाते थे. लेकिन मई के तीसरे/चौथे हफ्ते से जब दूसरी लहर कमजोर पड़ने लगी तो यह ट्रेंड पूरी तरह बदल गया. इसके बाद परिवार के एक व्यक्ति के संक्रमित होने पर बाकी सदस्य भी वायरस की चपेट में आएं ऐसा हमेशा नहीं होता था.

वायरस की ताकत के ह्रास के हाइपोथेसिस या परिकल्पना पर अगर गौर करें तो इसे आसानी से समझा जा सकता है. जिसका मतलब यह है कि वायरस के एक इंसान से दूसरे और दूसरे से तीसरे व्यक्ति में फैलने के दरम्यान उसकी ताकत धीरे-धीरे कमजोर पड़ती चली जाती है. इसलिए मुमकिन है जब तीसरे संक्रमित इंसान से किसी चौथे व्यक्ति में वायरस फैले तो उसकी ताकत इतनी क्षीण हो चुकी हो कि आगे किसी और इंसान के इसकी चपेट में आने की संभावना ही ना रहे.

इसलिए परिकल्पना यह है कि पहले से दूसरे और तीसरे व्यक्ति को संक्रमित करने तक वायरस अपनी मारक क्षमता खो देता है. अगर व्यापक तौर पर इस तरह के आंकड़े जुटाए जाएं और अधिकारियों द्वारा इसका विश्लेषण किया जाए तो मुझे पूरा यकीन है कि यह सोच सच साबित होगी. क्योंकि आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते. और अगर इस सोच में दम है तो कोरोना के रोजाना मामलों में अचानक आई गिरावट को बिना किसी संदेह के समझा जा सकता है कि इंसान से इंसान में फैलने के दौरान वायरस ने धीरे-धीरे संक्रमण की अपनी ताकत खो दी.

R-naught गणित
अब अगर यह परिकल्पना सही है, और आप इसे R-naught गणित से जोड़ते हैं, तो आप इस निश्चित तौर पर इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि Covid-19 एक प्राकृतिक आपदा से कहीं ज्यादा है. इसका विश्लेषण करते हैं तो जैविक हमले की आशंका का भी संकेत नजर आता है. तो यह कौन सा गणित है जो हमें ऐसी चरम संभावना पर विचार करने के लिए मजबूर करता है?

एक निश्चित तादाद में लोगों को संक्रमित करने की वायरस की क्षमता को जिस डाटा से समझा जा सकता है उसे R-naught कहते हैं. R-naught को आसान शब्दों में कहें तो एक व्यक्ति कितने लोगों को संक्रमित कर सकता है, इस समझने की पद्धति R-naught है. रिसर्च के मुताबिक कोरोनावायरस का R-naught 5 है. इसका मतलब है कि एक कोविड पॉजिटिव व्यक्ति पांच और लोगों को संक्रमित कर सकता है. तो, अगर शुरुआत में पांच लोग संक्रमित हुए तो दूसरे स्तर पर 25 और लोग संक्रमित हुए होंगे. अगर हम मान लें कि वायरस इससे आगे भी तीसरे और चौथे स्तर पर लोगों को संक्रमित करने की ताकत रखता है तो ज्यादा से ज्यादा 625 लोगों को संक्रमित करेगा. जिनमें से 600 लोग ऐसे होंगे जो तीसरे और चौथे लेवल पर कमजोर वायरस से संक्रमित हुए.

लाख लोगों के संक्रमण से शुरुआत?
ऐसे में सवाल यह है कि कोरोना कर्व के तेजी से गिरने से पहले एक करोड़ लोग कैसे संक्रमित हो गए? अगर चौथे कैरियर तक पहुंचते हुए वायरस ने अपनी ताकत खोने के बावजूद 1 करोड़ लोगों को संक्रमित कर दिया तो जरूर संक्रमण की शुरुआत एक लाख लोगों से हुई होगी. तभी R-naught 5 के हिसाब से वायरस ने चौथे लेवल तक 1 करोड़ लोगों को अपनी चपेट में ले लिया. इसलिए, जब तक कि एक लाख लोग प्राइमरी कैरियर नहीं रहे हों, R-naught 5 के हिसाब से, कोरोना वायरस इस हद तक नहीं फैल सकता था जितना कि फैल गया.

विदेशों से उड़ान भर कर आने वाले चंद लोगों से इस तरह का विनाशकारी संक्रमण तब तक मुमकिन नहीं है जब तक कि विमानों में भर-भर कर वायरस से प्रभावित लोग नहीं आए हों या एक लाख लोग प्राइमरी तौर पर संक्रमित नहीं रहे हों. अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा निलंबित होने और घरेलू उड़ानों में भारी कमी के बीच ऐसी संभावना आसानी से खारिज की जा सकती है.

फिर प्राइमरी कैरियर की इतनी बड़ी तादाद कहां से आई?
क्या भारत में बाहर से सामानों की कोई ऐसी खेप आई थी जिसमें किसी तरह का समझौता किया गया हो या वो किसी तरह से दूषित रही हो? पहली लहर के दौरान जब इटली में कोरोना विस्फोट हुआ तो सीधे तौर पर इसका संबंध वुहान से आए इटैलियन फैशन इंडस्ट्री के चमड़े से था. सिर्फ इटली ही नहीं, कई दूसरे देशों में पहली और दूसरी लहरों में अचानक कोरोना विस्फोट देखा गया.

वायरस वेरिएंट्स के बनने, म्यूटेशन के विकसित होने और इसके फैलने में समय लगता है. यह सब रातों-रात या उस रफ्तार से नहीं होता जिससे कोरोना वायरस का म्यूटेशन हुआ. यदि R-naught की परिकल्पना सही है और संक्रमण के हर स्तर के साथ वायरस की शक्ति कम होती है, तो कोरोना की लहरें एक प्राकृतिक वायरस के उतार-चढ़ाव जैसी बिलकुल नहीं हैं. यह किसी साजिश का संकेत है और यहां तक कि यह अकल्पनीय… सुनियोजित जैविक-हमलों की ओर भी इशारा करता है. और अगर यह परिकल्पना गलत है, तो अभी तक दैनिक संक्रमणों में तेज गिरावट का कोई और कारण समझ में नहीं आता है.

जो दिख रहा है, मामला उससे कहीं बड़ा और अलग है!
अब यह डाटा वैज्ञानिकों, सरकारों, वायरोलॉजिस्ट और विशेषज्ञों पर निर्भर है कि वो यह पता लगाएं कि क्या इस परिकल्पना का कोई मतलब है या नहीं. इन जानकार लोगों को कुछ महीने पीछे जाकर आंकड़ों की जांच करने की जरूरत है, यह पता लगाने के लिए कि महाराष्ट्र और केरल में क्या हुआ जब दूसरी लहर अचानक भड़क उठी? उड़ानें और यात्री कहां से आए? आयातित माल की उत्पत्ति कहां से हुई? सब कुछ जांचा और परखा जाना चाहिए. तभी भारत या दुनिया वास्तव में इस घातक कोरोनावायरस की पहेली को सुलझा पाएगी.

दुर्भाग्य से विशेषज्ञ और सरकारें ऐसा नहीं कर रही हैं. उसी समय कुछ पंडित ऐसे हैं जो तीसरी लहर की भविष्यवाणी करने में व्यस्त हैं, वो लोगों को लगभग यह यकीन दिला चुके हैं कि तीसरी लहर होगी. इसलिए जब यह लहर आती है तो हम इसे इस कदर स्वीकार कर चुके होंगे कि इसके स्त्रोत और कारणों का पता लगाने की बात आखिर तक हमारे ध्यान में नहीं होगी. मुझे हैरानी है कि अगर हम वायरस के बारे में इतना कम जानते हैं, तो हम इतने आश्वस्त कैसे हैं कि तीसरी लहर आ रही है, जैसे कि कहीं किसी ने इसकी योजना बनाई हो.


(बरुण दास टीवी9 नेटवर्क के सीईओ हैं).
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