कोर्ट ने भले आपको राहत दे दी हो, लेकिन नोवाक या तो आप वैक्सीन लें या घर वापस जाएं
नोवाक जोकोविच ने आखिर अपना केस जीत ही लिया. टीका न लगाने के बावजूद भी उन्हें समाज
बिक्रम वोहरा,
नोवाक जोकोविच (Novak Djokovic) ने आखिर अपना केस जीत ही लिया. टीका (Corona Vaccine) न लगाने के बावजूद भी उन्हें समाज में जाने की इजाजत दे दी गई. ऑस्ट्रेलियाई न्यायाधीश एंथनी केली का कहना है कि नोवाक को अपना बचाव तैयार करने के लिए ऑस्ट्रेलियाई सरकार (Australian Government) ने पर्याप्त समय नहीं दिया था. क्या वाकई ऐसा है?
CNN ने इस मसले पर चार बातें सामने रखी हैं. पहला ये कि नोवाक का वीजा रद्द करने के सरकारी फैसले को खारिज कर दिया गया है – जिसका मतलब है कि उस आदेश को रद्द कर दिया गया है, अमान्य घोषित कर दिया गया है. दूसरा, सरकार को आपसी सहमति या आकलन के आधार पर जोकोविच को भुगतान करना चाहिए. तीसरा, जोकोविच को तुरंत नजरबंदी से मुक्त करने के "सभी आवश्यक कदम" उठाने चाहिए और ये फैसले की घोषणा होने के 30 मिनट के अंदर होना चाहिए. चौथा, जोकोविच का पासपोर्ट और दूसरे सभी व्यक्तिगत सामान उन्हें वापस कर दिए जाएं. अच्छा चलिए, जब ऐसा है तो क्यों न उन्हें नोबेल पुरस्कार दे दिया जाए. अब जरा सोचिए कि नोवाक ने किस मुद्दे पर जीत हासिल की है, आखिर कैसे उन्हें जायज ठहराया गया है, आखिर क्यों हम उनके लिए राहत और खुशी का इजहार करें?
हमारे लिए नोवाक जोकोविच को सजा देना उतना आसान नहीं है
भारत में हम जैसे लोग विशेषाधिकार की ताकत और इसके साथ आने वाली रियायतों को देखते हुए बड़े हुए हैं. हमारे लिए वैक्सीन मुद्दे पर उनकी हठधर्मिता के लिए उन्हें सजा देना उतना आसान नहीं है. हम एक ऐसे मुल्क से ताल्लुक रखते हैं जहां वीआईपी कतार में खड़े नहीं होते, एयरपोर्ट पर सुरक्षा-जांच से बचते हैं और उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस भी आसानी से मुहैया करा दिया जाता है. हमारे यहां 33 कैटेगरी के नागरिकों के लिए सुरक्षा-जांच की जरूरत नहीं है. इसलिए हम अपनी संस्कृति में इन असंतुलनों को इस कदर आत्मसात किए हुए हैं कि हम समझेंगे कि दुनिया के नंबर एक टेनिस खिलाड़ी को और अधिक सम्मान दिया जाना चाहिए.
हम किसी को भी सम्मान देने के मामले में बहुत आगे हैं, भले ही वो इसका हकदार नहीं हो तब भी. आखिरकार नोवाक ऑस्ट्रेलियाई ओपन के मौजूदा चैंपियन हैं और वे रोजर और रफा से आगे बढ़कर नंबर वन बनने की कतार में खड़े हैं, इसलिए उन्हें जाने दिया जाए. उन्हें रोकने का मतलब होगा जैसे आईसक्रीम से भरे ग्लास के उपर से चेरी को हटा देना. इसलिए हम में से बहुत से लोग ये सोच रहे होंगे कि इस मामले में इंसाफ हुआ है और न्यायाधीश केली एक अच्छे इंसान हैं.
नोवाक और टीके के प्रति उनके जिद्दी रवैये को लेकर लोग परेशान हैं
अगर यह इंडिया ओपन होता तो हम उन पर रियायतों की बौछार कर देते. ऊपर से आदेश प्राप्त करते और उन्हें गाजे-बाजे के साथ स्टेडियम में ले जाते. अरे यार, ये जोकोविच है, अलग-अलग खिलाड़ियों के लिए अलग-अलग स्ट्रोक खेलने वाला. क्या ऐसा मुमकिन है कि हम उन्हें 33 आरोपियों के साथ एक घटिया होटल में बंद कर दें? ऐसा होता तो सोमवार की सुनवाई के लाइव कास्ट में जितनी तकनीकि गड़बड़ियां दिखीं उससे कहीं ज्यादा दखलअंदाजी नजर आता.
हम इसे स्वीकार करते कि जो व्यवहार उनके साथ किया गया वो बर्बर और बुरा था और वास्तव में इसकी कोई जरूरत नहीं थी. उनके साथ विनम्र व्यवहार से भी वही नतीजे हासिल किए जा सकते थे. लेकिन नोवाक की कैद पर जज एंथनी केली की इस आपत्ति के बावजूद कि उनके पास खेल में शामिल होने की छूट का सर्टिफिकेट जिसकी पुष्टि एक स्वतंत्र चिकित्सक ने की थी और टेनिस ऑस्ट्रेलिया ने इसे हरी झंडी दी थी, चलिए एक पल के लिए इन सभी तकनीकी चीजों से अलग हटकर मुद्दे की बात करते हैं.
दुनिया के नंबर वन टेनिस खिलाड़ी आप वैक्सीन ले लीजिए. अब तक 3.92 अरब लोगों का टीकाकरण किया जा चुका है, जो कि आधी दुनिया के बराबर है. यह भी सोचने वाली बात है कि करीबन 5.49 मिलियन लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है. ये वायरस रोज ही अपने रूप बदल रहा है. ये अभी गया नहीं है और यहां हम नोवाक और टीके के प्रति उनके जिद्दी रवैये को लेकर परेशान हैं.
टीका नहीं तो प्रवेश नहीं
ठीक है, मत लीजिए टीका. लेकिन फिर खेलिए भी मत. अपनी अंतरात्मा से उठी आवाज के नतीजों का सामना करिए. जब हेवीवेट चैम्पियन मोहम्मद अली, जो पहले कैसियस क्ले के नाम से जाने जाते थे, ने वियतनाम जाने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि उनका उन लोगों से कोई झगड़ा नहीं है, तो उन्हें अपने फैसले का परिणामों से जूझना पड़ा था.
जोकोविच बहुत अमीर हैं और टेनिस की गेंद को सबसे बेहतर हिट करते हैं. उन्होंने मल्टीपल सिरोसिस या एचआईवी या कोविड का न तो इलाज खोजा है और न ही ऊपर देखकर दुनिया को उल्कापिंड से बचाया है. तो फिर इन्हें छूट क्यों दी जाए? वे पैसे के लिए खेलते हैं, ये उनका काम है. हम सभी हर सुबह उठकर इस नई समस्या से संघर्ष कर रहे हैं. हमें ये भी नहीं मालूम होता कि हमें जो छींक आ रही है वो किसी ओमिक्रॉन का संकेत है. इसलिए इस एक टेनिस खिलाड़ी की परेशानी से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. आप अपने फैसलों के साथ जीते हैं और अगर आपने तय किया है कि आप अपने रसूख के दम पर टीका नहीं लेने की छूट ले सकते हैं और हमारी तरह कतार में खड़े होने से बच सकते हैं, तो आप अपने आस-पास रहने वाले निर्दोष लोगों को जोखिम में डाल रहे हैं. इसलिए हम आपके आसपास नहीं रहना चाहते हैं.
सच कहा जाए तो नोवाक ने इस बात पर विचार ही नहीं किया है कि वो दूसरों के लिए खतरा बन सकते हैं. क्योंकि कोरोना पॉजिटिव होने के एक दिन बाद ही वे एक समारोह में बिना मास्क के नजर आए थे, उन्हें दूसरों की कोई परवाह नहीं थी. इसलिए उनके लिए किसी भी तरह की सहानुभूति महसूस करना मुश्किल है. क्यों न हम इन छूट के प्रति और ज्यादा सतर्क हो जाएं और साफ कर दें कि टीका नहीं तो प्रवेश नहीं.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)