अदालत की चिंता

अदालत की चिंताकोरोना पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जता दी है। अदालत ने तो इसे राष्ट्रीय आपातकाल जैसा बताया है।

Update: 2021-04-23 01:47 GMT

अदालत की चिंताकोरोना पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जता दी है। अदालत ने तो इसे राष्ट्रीय आपातकाल जैसा बताया है। साथ ही हालात से निपटने के तरीकों को लेकर सरकार से कार्ययोजना मांगी है। कोरोना की दूसरी लहर रोंगटे खड़े कर रही है। हालात से निपटने में केंद्र और राज्य सरकारों की लाचारी भी सामने आ गई है। महामारी की सबसे ज्यादा मार झेल रहे राज्यों महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान में अस्पताल आॅक्सीजन की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। ज्यादातर अस्पताल कुछ ही घंटे की आॅक्सीजन के सहारे चल रहे हैं। ये हालात पिछले तीन-चार दिन में कुछ ज्यादा ही बिगड़े हैं। हालत यह हो चली है कि अस्पतालों ने बिस्तर और आॅक्सीजन न होने से नए मरीजों को भर्ती करना ही बंद कर दिया है। गौरतलब है कि देश में कोरोना से चौबीस घंटे में मौतों का आंकड़ा दो हजार के ऊपर निकल गया है। इतना ही नहीं, देश में एक दिन में सवा तीन लाख संक्रमित और बढ़ गए। चौबीस घंटे के भीतर इतने संक्रमितों का बढ़ना दुनिया के किसी देश का यह अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है।

अगर हालात बेकाबू नहीं होते तो दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को तल्ख टिप्पणियां नहीं करनी पड़तीं। अस्पतालों को पर्याप्त आॅक्सीजन नहीं मुहैया करा पाने से नाराज दिल्ली हाई कोर्ट को तो यहां तक कहना पड़ा कि लोगों को मरते हुए नहीं देखा जा सकता। अदालत का रुख गौरतलब है कि चाहे भीख मांगिए, उधार मांगिए या चोरी कीजिए, किसी भी सूरत में अस्पतालों को आॅक्सीजन उपलब्ध करवाइए। हाई कोर्ट की ऐसी टिप्पणी सरकारों की अक्षमता और लापरवाही बताने के लिए काफी है। जब तीन हफ्ते पहले हालात बिगड़ने शुरू हुए थे, तभी से आॅक्सीजन की उपलब्धता बनाए रखने के प्रयास होते तो कई जानें बचाई जा सकती थीं। अभी ज्यादातर अस्पतालों की हालत यह है कि उन्हें जरूरत की आधी आॅक्सीजन भी नहीं मिल रही है।
जब दिल्ली, भोपाल मुंबई, लखनऊ, जयपुर जैसी राजधानियों में यह हालत है तो देश के दूसरे शहरों में कोरोना मरीज किस दशा में होंगे, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
महामारी से निपटने के लिए मरीजों की अस्पतालों में देखभाल, उनके लिए बिस्तर व आॅक्सीजन और साथ ही टीकाकरण अभियान जैसे मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान लेना महत्त्वपूर्ण बात है। अक्सर यह देखने में आता रहा है कि महामारी से निपटने संबंधी मुद्दों को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल का अभाव रहा है। कई राज्यों ने तो हालात से निपटने में मदद को लेकर केंद्र पर पक्षपात के आरोप भी लगाए। इससे केंद्र और राज्यों के बीच टकराव की स्थितियां पैदा हुईं और खमियाजा जनता को भुगतना पड़ा। हाल में आॅक्सीजन और टीके उपलब्ध कराने में भी ऐसा देखा गया।
महामारी की तीव्रता और इससे पैदा हुए हालात में केंद्र और राज्य सरकारों का ऐसा रवैया कम से कम जनकल्याणकारी सरकारों का तो बिल्कुल भी नहीं हो सकता। यह वक्त आपस में लड़ने या राजनीति करने का नहीं, बल्कि एकजुट होकर महामारी से निपटने का है। आॅक्सीजन की कमी दूर करने के मुद्दे पर केंद्र पिछले तीन दिन में ही हलचल में आया दिखाई दिया। जो एलान अभी किए हैं, वे तो बहुत पहले हो सकते थे। विशेषज्ञों के चेताने के बावजूद हमने भविष्य की जरूरतों को नजरअंदाज किया और तैयारियां भी नहीं की। उसी का नतीजा है कि आज हालात बद से बदतर हो गए और अब अदालतों को आगे आना पड़ा है।

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