Coronavirus In India: मई के दूसरे सप्ताह में जब कोरोना और घातक होगा, उसके लिए हम कब सोचेंगे?

पूरे देश के हॉस्पिटलों में बेड की कमी हो गई है. बेड मिल भी जाये तो ऑक्सिजन नहीं मिलने वाली है

Update: 2021-04-22 16:10 GMT

पूरे देश के हॉस्पिटलों में बेड की कमी हो गई है. बेड मिल भी जाये तो ऑक्सिजन नहीं मिलने वाली है. सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट और पीएम सहित देश के सभी प्रमुख राज्यों के मुख्यमंत्री ऑक्सीजन की समुचित व्यवस्था के लिए मीटिंग-मीटिंग खेल रहे हैं. क्योंकि हमने आने वाली समस्याओं का सामना करने के लिए पहले प्लानिंग नहीं की. जिसका नतीजा यह निकल रहा है कि जो चीजें हमारे पास हैं उनके लिए भी देश की जनता भटक रही है. यह समस्या यहीं खत्म नहीं होने वाली है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगले महीनें 10 मई से 15 मई के बीच कोरोना संक्रमण का पीक टाइम होगा. इसके लिए हम क्या कर रहे हैं? और इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? क्यों कि यह इतना बड़ा संकट हो सकता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होगी.


कल्पना करिये कि पिछले चार दिनों में 10 लाख नए मामले सामने आए हैं तो ये हालत है कि अस्पतालों में ऑक्सिजन की कमी से मरीज दम तोड़ रहे हैं. जीवन रक्षक दवाएं मेडिकल स्टोर्स से गायब हैं. मार्केट में नींबू और संतरे भी नहीं मिल रहे हैं. हालत यह है कि अगर पब्लिक को पता चल जाए हरी घास से कोरोना ठीक हो रहा है तो मैदान के मैदान से हरी घास साफ हो जाएगी. अब जरा सोचिए जब ये केस आज से 10 गुना हो जाएंगे तो क्या होगा? टीओई वेबसाइट पर छपी एक स्टोरी के मुताबिक एक्सपर्ट का मानना है कि मई का पहला और दूसरा सप्ताह भारत के लिए बहुत क्रिटिकल होने वाला है. वैसे एक्सपर्ट पहले ही चेतावनी देते रहे हैं. अप्रैल के पहले सप्ताह में ही ऐसी खबरें आ गईं थीं अगले 45 दिन कोरोना संक्रमण के हिसाब से बहुत खराब हैं. पर हमने क्या किया? हमारे देश की कार्यपालिका-न्यायपालिका अब जाकर सक्रिय हुईं हैं. फैसले पर फैसले सुनाएं जा रहे हैं. कार्यपालिका मीटिंग पर मीटिगं में व्यस्त हैं. ऑक्सिजन के प्रोडक्शन और डिस्ट्रिब्यूशन को लेकर जो फैसले लिए जा रहे हैं वो एक हफ्ते पहले भी लिए जा सकते थे. फिलहाल गलतियों से सीख कर दुबारा गलतियां न करने वाला भी महान होता है. पर ऐसा लगता नहीं है कि अभी हम चेत गए हैं. क्योंकि अभी भी पीक को ध्यान में रखकर कुछ भी नहीं हो रहा है.

कुप्रबंधन का एक नमूना देखिए
आज देश के एक कद्दावर मंत्री जिनके अधीन रेलवे भी है उन्होंने ट्वीट करके जानकारी दी कि एक सिग्नललेस ट्रेन ग्रीन कॉरीडोर के जरिए कहीं भी न रुकते हुए ऑक्सिजन के लिए लखनऊ से बोकारो के लिए निकल चुकी है. ये फैसला लेने और ट्रेन रवाना करने का काम आज से एक हफ्ते पहले भी हो सकता था. देश में ऑक्सिजन की कोई कमी नहीं है. फिर भी हर रोज हजारों की संख्या में लोग मर रहे हैं. अभी भी हमारे नीति नियंता आज के बारे में सोचकर फैसले ले रहे हैं. होना ये चाहिए कि एक महीने आगे की सोचकर फैसले लिए जाएं. मंत्री जी को ये बताना चाहिए था कि ऐसी कुल 20 ट्रेनें तैयार हो रही हैं जो देश भर में ऑक्सिजन पहुंचाएंगी. इस्पात मंत्रालय को सामने आकर ये भी बताना चाहिए कि छोटे-छोटे हैंडी सिलिंडर बनाने के आदेश दे दिए गए हैं. लौह फाउंडरियों को सिलिंडर बनाने के आदेश तब दिए जाएंगे जब कोरोना आज से 10 गुना आक्रामक हो चुका होगा.

नेताओं और अधिकारियों को अपने घरों से बाहर निकलना होगा
कोरोना के पीक से निपटने के लिए नेताओं और अधिकारियों को अपने घरों से बाहर निकलना होगा. इस अराजकता की स्थिति में यूपी में मुख्यमंत्री और विपक्ष के सबसे ताकतवर नेता को कोरोना हो गया हे वो आइसोलेट हैं. यही हाल दिल्ली में हैं पत्नी के कोरोना पॉजटिव होने के चलते दिल्ली के मुख्यमंत्री भी आससोलेशन में हैं. देश में विपक्ष के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी भी कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं. ऐसे में अधिकारी बेअंदाज हो गए हैं. मुट्ठी भर इमानदार और सेवा भाव वाले अधिकारियों के भरोसे देश चल रहा है. देश में सबसे अधिक गाली सुनने वाली पुलिस ही एकमात्र मोर्चे पर खड़ी दिख रही है. ये बेचारे जरूरत पड़ने पर ऑक्सिजन भी पहुंचा रहे हैं और सिलिंडर को ट्रक पर लोड-अनलोड भी कर रहे हैं. कई जगहों पर डेडबॉडी भी ठिकाने लगा रहे हैं. बड़े नेताओं और बड़े अधिकारी जब मोर्चे पर दिखेंगे तो आम जनता भी सीधी खड़ी होकर कोरोना से दो-दो हाथ कर सकेगी. नोएडा के इनसाइक्लोपीडिया कहे जाने वाले पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि अब अधिकारी ट्विटर पर भी नहीं दिख रहे हैं. स्थानीय पत्रकार और नेता अधिकारियों को टैग करके समस्या बताते हैं पर जब अधिकारी अपने हैंडल पर जाएगा ही नहीं तो समस्या सुलझेगी कैसे?

सर्वदलीय एकीकृत टीम का विकास करना होगा
देश इस समय किसी दूसरे देश के आक्रमण जैसी विभीषिका से जूझ रहा है. जैसे युद्ध के समय पूरा देश एक हो जाता है वैसे ही एक सर्वदलीय टीम की भी व्यवस्था तैयार होनी चाहिए. प्रख्यात पत्रकार व चिंतक चंद्रभूषण कहते हैं सत्ता पक्ष की ओर से ही यह पहल होनी चाहिए. अभी की स्थिती यह है कि अगर कोई अच्छा विचार सामने आता है तो उसका स्वागत होने के बजाय उसे आक्रमण के तौर पर लिया जाता है. जैसे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वैक्सिनेशन के संबंध कुछ अच्छे सुझाव दिए उस पर विचार करने के बजाय सत्ता पक्ष के एक मंत्री उनपर हमलावर हो गए. इसी तरह लॉकडाउन जैसे फैसले भी दलीय के आधार पर लिए जा रहे हैं. इस तरह शायद ही कोरोना संक्रमण के पीक को हम झेल सकेंगे.

मंदिरों-मस्जिदों और गुरुद्वारों को भी इस युद्ध में शामिल करें
कोरोना से लड़ाई में अब तक मंदिरों और मस्जिदों को भी स्वतः आगे आ जाना चाहिए था. हमारे धार्मिक संस्थानों के पास धनशक्ति हो या जनशक्ति किसी भी चीज की कमी नहीं हैं. हजारों की संख्या में बेड, लाखों की संख्या में टेस्टिंग कराने में सक्षम हैं ये. सिर्फ नेतृत्व के अभाव में वे आगे आने से कतरा रहे हैं. एक सर्वदलीय टीम यह काम अच्छे तरीके से करा सकती है. धर्म गुरुओं को भी संदेश देने से आगे बढ़कर मोर्चा संभालना होगा. यह बहुत बड़े संकट का समय है बिना सबके योगदान से इसका मुकाबला नहीं किया जा सकता.

क्या आपातकाल जैसी व्यस्था करनी होगी
देश से इमरजेंसी हटाए जाने के बाद एक अमेरिकी लेखक को इंटरव्यू देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने कहा था कि लोग उनसे पूछते हैं कि इमरजेंसी लगाने का फैसला उन्होंने पहले क्यों नहीं लिया? दरअसल इंदिरा गांधी ये कहना चाह रहीं थीं कि देश के निम्न और मध्य वर्ग ने इमरजेंसी से बहुत राहत की सांस ली थी. कहा जाता है कि इमरजेंसी के दौरान में अपनी लेटलतीफी के मशहूर भारतीय रेल राइट टाइम हो गई थी. अधिकारी अपने ऊपर कब एक्शन हो जाए इसको लेकर जनसेवा में जुट गए थे. दफ्तरों में घड़ी की जरूरत अधिकारी और कर्मचारी राइट टाइम पर पहुंचकर पूरा कर रहे थे. इंदिरा गांधी की दलील पर गौर करें तो उनका कहना था इस दौरान महंगाई पर लगाम लग गई थी, देश के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ा इजाफा हुआ, सरकारी कंपनियों की भूमिका खत्म होने की शुरुआत हुई और औद्योगिक उत्पादन में बड़ा इजाफा दर्ज किया गया था. माना जाता है कि 21 महीने के इस गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था के दौरान आम आदमी ने बहुत राहत की सांस ली थी.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अमित खेमका कहते हैं यह सही है कि इमरजेंसी के समय चीजें राइट हो गई थीं पर कोई भी व्यवस्था लोकतांत्रिक व्यवस्था से उत्तम नहीं हो सकती. सेना को तो छोड़िये नेताओं के हाथ में भी हम पूरा अधिकार देकर किसी भले की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. खेमका कहते हैं कि यह सही है कि अभी देश में युद्ध काल जैसी स्थितियां हैं पर उसका मुकाबला आपातकाल जैसे कानून के बजाय वर्तमान लोकतांत्रिक तरीके से करना ही ज्यादा माकूल होगा.


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