कोरोना वैक्सीन और बिहार

बिहार के चुनावी दंगल में ‘कोरोना वैक्सीन’ के आने पर साफ हो गया है

Update: 2020-10-24 03:35 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिहार के चुनावी दंगल में 'कोरोना वैक्सीन' के आने पर साफ हो गया है कि लोकतन्त्र में सबसे बड़ा महत्व लोक या लोगों का ही होता है। लोगों द्वारा चुनी गई सरकार का सर्वप्रथम कर्त्तव्य लोगों को स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा व रोजगार की सुविधाएं सुलभ कराने का ही होता है। भारतीय संविधान में 'लोक कल्याणकारी राज' की स्थापना का विचार यही सोच कर इसके निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर ने रखा था जिससे किसी भी राजनीतिक पार्टी के शासन में लोगों का हित सर्वोपरि रहे। भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में प्रत्येक बिहारी नागरिक को मुफ्त कोरोना वैक्सीन देने का वादा करके एक मायने में आम जनता के मूल मुद्दों को उभारने का प्रयास किया है लेकिन इसके साथ ही बिहार के मूल मुद्दे शिक्षा व रोजागार के भी हैं जिनकी तरफ हर पार्टी को ध्यान देना होगा। हालांकि इसे लेकर विपक्षी दल भाजपा की आलोचना कर रहे हैं मगर उन्हें यह हकीकत स्वीकार करनी होगी, इसके बहाने भाजपा ने जमीन से जुड़े मुद्दों के आधार पर चुनाव लड़ने की चुनौती विपक्षी दलों के सामने फैंक दी है क्योंकि कोरोना केवल बिहार का विषय नहीं है बल्कि यह पूरे देश का यहां तक कि पूरे विश्व की समस्या है। यही वजह है कि तमिलनाडु व मध्यप्रदेश की सरकारों ने भी घोषणा कर दी है कि वे भी अपने-अपने राज्य के निवासियों को वैक्सीन मुफ्त बांटेंगी। इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण यह है कि केन्द्र सरकार ने वैक्सीन के वितरण के लिए ही 55 हजार करोड़ की धनराशि की व्यवस्था की है। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि केन्द्र सरकार की मंशा इस वैक्सीन के तैयार होते ही इसे आम जनता में बांटने की है।

दरअसल वैक्सीन को हम चुनावी मुद्दे तक सीमित नहीं कर सकते हैं। यह मुद्दा देश के आमजन के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। अतः प्रत्येक नागरिक को इसे पाने का अधिकार है। अतः चुनावों में स्वास्थ्य जैसे विषय काे मुद्दा बनाना राजनीति में एक शुभ संकेत ही माना जायेगा। भारत में स्वास्थ्य पर सकल उत्पाद का दो प्रतिशत से भी कम खर्च किया जाता है। कोरोना महामारी के फैसले से इस क्षेत्र में मजबूत सार्वजनिक चिकित्सा तन्त्र स्थापित करने पर बहस छेड़ने का अवसर भी विभिन्न राजनीतिक दलों को प्राप्त होगा और इसके जरिये वे आम आदमी के स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल के लिए अपनी-अपनी योजनाएं जनता के सामने रख सकेंगे। दरअसल यह सकारात्मक राजनीति की शुरूआत करने वाला मुद्दा होगा क्योंकि किसी भी देश में स्वास्थ्य और शिक्षा पर किया जाने वाला खर्च दीर्घकालिक निवेश होता है जो लोगों को स्वस्थ व शिक्षित बना कर उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करता है।

बिहार में शिक्षा व्यवस्था की भी बुरी हालत है और यहां की प्रतिभाशाली युवा पीढ़ी को दूसरे राज्यों मंे गुणवत्ता की उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु पलायन करना पड़ता है। इसके साथ ही रोजगार के लिए भी यहां के नागरिकों को दूसरे राज्यों में पलायन भारी संख्या में करना पड़ता है। अतः सभी राजनीतिक दलों को अपने-अपने चुनावी एजैंडे में अब इन मूलभूत विषयों को जगह देनी होगी। इसकी शुरूआत भी हो चुकी है। विपक्षी दलों के मुख्यमन्त्री पद के दावेदार राजद के नेता श्री तेजस्वी यादव ने दस लाख सरकारी नौकरियां देने का वादा बिहार की जनता से किया है तो वहीं भाजपा ने 19 लाख रोजगार के अवसर सृजित करने का वादा अपने चुनाव घोषणा पत्र में किया है। ये जनता से जुड़े मूल सवाल हैं। चुनावी वातावरण में ऐसे मुद्दे आ जाने से आम मतदाता का भी राजनीतिक प्रशिक्षण होने में मदद मिलती है। गौर से देखा जाये तो चुनाव राजनीतिक पाठशाला का ही काम करते हैं जिनमें आम आदमी अपने से जुड़ी समस्याओं के बारे में शिक्षित होता है। यही शिक्षा उसे एक बेहतर मतदाता बनाती है और वह जाति-बिरादरी व सम्प्रदाय के घेरे से बाहर अपने मूल सवालों के बारे में विचार करने लगता है।

भाजपा ने वैक्सीन को चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करके वास्तव में लोक कल्याणकारी राज की स्थापना की तरफ आम जनता का ध्यान खींचने की कोशिश की है परन्तु यह भी तर्कपूर्ण है कि देश की 130 करोड़ आबादी में से 100 करोड़ से ऊपर की आबादी ऐसी है जिसे इसे मुफ्त देने की जरूरत है। देश की कुल 29 राज्यों की सरकारों को भी यह देखना होगा कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में इसका मुफ्त वितरण करने के लिए खर्चा वहन करें क्योंकि स्वास्थ्य का विषय मूल रूप से राज्यों की सूची में ही आता है। जिस प्रकार की खबरें आ रही हैं कि वैक्सीन के बनने में अब ज्यादा समय नहीं है उसे देखते हुए सभी राज्य सरकारों को एक साझा मंच बना कर केन्द्र के साथ तालमेल में ऐसी स्कीम पहले से ही तैयार करनी चाहिए जिससे सभी वैक्सीन पाने वाले व्यक्तियों का वरीयता क्रम बन सके और कोई भी गरीब आदमी इससे छूट न सके लेकिन इस मुद्दे के बहाने सभी राज्य चिकित्सा तन्त्र को मजबूत बनाने के लिए भी कारगर कदम उठा सकते हैं, खास कर जिला अस्पतालों को आधुनिक सुविधाओं से लैस करने हेतु अपने-अपने बजट में पर्याप्त धनराशि का आवंटन कर सकते हैं, परन्तु सबसे सुखद यह है कि इस बार बिहार के चुनाव में स्वास्थ्य, रोजगार व शिक्षा जैसे मुद्दे केन्द्र में हैं और मतदाता इन पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।

Tags:    

Similar News

-->