कोरोना मौतेंः पारदर्शिता जरूरी है

भारत में कोरोना से हुई मौतों की संख्या को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के ताजा अनुमान ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

Update: 2022-04-19 09:10 GMT

भारत में कोरोना से हुई मौतों की संख्या को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के ताजा अनुमान ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। वैसे डब्ल्यूएचओ की तरफ से अभी आधिकारिक तौर पर यह रिपोर्ट जारी नहीं की गई है, लेकिन एक अमेरिकी अखबार में इसका कुछ हिस्सा प्रकाशित होने से मामला गरमा गया है। कांग्रेस ने इसी रिपोर्ट को आधार बनाते हुए सरकार पर मौत के आंकड़े छुपाने का आरोप जड़ने में देर नहीं लगाई। हालांकि भारत सरकार की ओर से जताई गई आपत्तियों पर गौर करें तो लगता है कि इस रिपोर्ट से जुड़े कई पहलुओं पर रोशनी पड़नी बाकी है और डब्ल्यूएचओ को अभी कई महत्वपूर्ण सवालों के जवाब देने हैं। मिसाल के लिए, पहला सवाल तो यही है कि भारत जैसे विशाल भौगोलिक क्षेत्र और बड़ी आबादी वाले देश पर ठीक वही मानदंड कैसे लागू किए जा सकते हैं, जो ट्यूनीशिया जैसे कम क्षेत्रफल और छोटी आबादी वाले देश पर लागू किए गए हों। क्या समान मानदंडों के आधार पर निकाले गए निष्कर्षों के सरलीकृत होने की आशंका को पूरी तरह खारिज किया जा सकता है? दूसरा सवाल आंकड़ों की प्रामाणिकता से जुड़ा है।

डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट में टियर वन देशों के मामले में वहां की सरकारों द्वारा दिए गए आधिकारिक आंकड़ों को आधार बनाया गया है, जबकि भारत के 18 राज्यों में गैरसरकारी आंकड़ों को लिया गया है। आखिर इस तरह का दोहरा रवैया अपनाने की जरूरत क्या थी। ऐसा भी नहीं है कि भारत सरकार ने ये सवाल रिपोर्ट लीक होने के बाद उठाए हैं।डब्ल्यूएचओ अधिकारियों को पत्रों के जरिए और वर्चुअल बैठकों के दौरान भी सरकार अपने पक्ष से अवगत कराती रही है। और अगर बात अमेरिकी अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट की हो तो भी यह सवाल तो अपनी जगह है ही कि अखबार को डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के भारत से जुड़े आंकड़े मिल गए तो टियर वन देशों में कोरोना से हुई अतिरिक्त मौत से जुड़े अनुमान उसकी पहुंच से बाहर क्यों रह गए। इन सबके बावजूद भारत डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट के निष्कर्षों पर एतराज नहीं कर रहा है। कोरोना महामारी का स्वरूप और उसकी तीव्रता ऐसी थी कि उसके प्रभावों को ठीक-ठीक नापने में सरकारी स्वास्थ्य तंत्र से चूक होना स्वाभाविक है। लेकिन जब बात इन चूकों को देखने, समझने और आंकने की हो तो कम से कम वहां किसी तरह की लापरवाही या पूर्वाग्रह के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी जानी चाहिए। चूंकि उस आकलन में किसी भी देश के स्वास्थ्य तंत्र के लिए भविष्य के सबक निहित हैं, इसलिए उसका पूरी तरह से विश्वसनीय और पारदर्शी होना आवश्यक है। इसी बिंदु पर विपक्षी दलों से भी थोड़े संयम और समझदारी की उम्मीद की जाती है।



एनबीटी डेस्क


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