सहयोग और साझेदारी : भारत-जापान रिश्ते की गर्मजोशी, 70 साल पुराने संबंधों के मायने और प्रतिबद्धता

इस पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी।

Update: 2022-03-22 01:51 GMT

सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज से लेकर मेरा जूता है जापानी की भावना और आधुनिक युग की मेट्रो रेल, कार और टेलीविजन सेट से आने वाली बुलेट ट्रेन तक उगते हुए सूरज के देश जापान के साथ भारत का सत्तर साल पुराना रिश्ता अब एक खास मायने रखता है। फिर भी जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा (यह उनकी पहली विदेश यात्रा है) की यात्रा एक खास समय में एशियाई क्षेत्र में हुई है, जब यूरोप में एक उग्र संघर्ष छिड़ा है, जो वैश्विक चिंता बढ़ा रहा है।

भारत और जापान क्वाड के सदस्य देश हैं, जिसका गठन एशिया में 'कानून का शासन' स्थापित करने और साझा विरोधी के रूप में उभरे चीन को नियंत्रित करने के उद्देश्य से की गई। 14वें वार्षिक शिखर सम्मेलन में तमाम द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की गई, जो कोविड-19 और दोनों देशों के घरेलू मुद्दों के चलते साढ़े चार साल की देरी से आयोजित की गई। इसी बीच शिंजो आबे ने प्रधानमंत्री का पद किशिदा को सौंप दिया।
वर्ष 2006 के बाद से, जब दिल्ली और टोक्यो ने सामरिक और वैश्विक भागीदारी का गठन किया, तब से व्यापार, सैन्य अभ्यास और एक नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था पर आम सहमति के जरिये दोनों देश एक दूसरे के करीब आए, जो पहले नहीं था। किशिदा अधिक जापानी निवेश हासिल करने की भारत की क्षमता के बारे में एक सकारात्मक प्रभाव के साथ आए, क्योंकि 2014 की निवेश संवर्धन साझेदारी के तहत 35 खरब जापानी येन के लक्ष्य को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है।
किशिदा ने घोषणा की कि जापान अब 50 खरब जापानी येन का निवेश करेगा, क्योंकि जापानी कंपनियां और सरकार भारत को एक व्यवहार्य निवेश गंतव्य के रूप में देखती है। भारत यात्रा की पूर्व संध्या पर एक लेख में किशिदा ने भारत की सामाजिक व आर्थिक तैयारी एवं एक व्यावहारिक साझेदार बनने की प्रगति के बारे में बात की।
उन्होंने लिखा कि 'पूंजीवाद के नए रूप को साकार करने की कोशिश करते समय भारत निश्चित रूप से सबसे अच्छा भागीदार है, जैसा कि प्रमुख विनिर्माण आधार, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के जरिये कार्बन उत्सर्जन घटाने के प्रयासों में नेतृत्व, उन्नत डिजिटल समाज की पहल, जैसे आधार और आपूर्ति शृंखला के लचीलेपन के उपायों सहित आर्थिक सुरक्षा पहलों को बढ़ावा देने के रूप में वैश्विक स्वास्थ्य संकट की प्रतिक्रिया में भारत के योगदान ने दिखाया है।'
जापानी निवेश में भारतीय श्रम के कौशल का उपयोग और आपूर्ति शृंखला का निर्माण शामिल होगा। दोनों देशों ने डिजिटल सुरक्षा और हरित प्रौद्योगिकियों पर सहयोग के लिए भी प्रतिबद्धता जताई है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु हमलों से युद्ध विरोधी नीति के लिए मजबूर जापान के लिए यह अकल्पनीय है कि अब भारत-जापान सहयोग ने सुरक्षा के क्षेत्र में भी काफी प्रगति की है, जिसमें जापानी आत्मरक्षक बलों और भारतीय सशस्त्र बलों के बीच संयुक्त अभ्यास शामिल है।
दोनों प्रधानमंत्रियों ने लंबे समय से लंबित मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल नेटवर्क परियोजना पर चर्चा की, जो भारत की आंतरिक राजनीति में एक विवादास्पद विषय बन गई है। वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, 12 औद्योगिक टाउनशिप के साथ दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर और चेन्नई-बेंगलुरु औद्योगिक कॉरिडोर पर भी चर्चा की गई। ये कुछ मेगा जापान-भारत परियोजनाएं हैं, जो लंबे समय से देरी का सामना कर रही हैं।
इन परियोजनाओं के अलावा अन्य क्षेत्रों में, जिनके लिए इस यात्रा के दौरान कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, राजनीतिक स्तर पर उच्च स्तर के समझ-बूझ के कारण निकट भविष्य में और अधिक प्रगति होने की उम्मीद है। इतना ही नहीं, किशिदा ने भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) में वापस लाने के लिए एक विशेष प्रयास किया। हालांकि भारत ने अभी तक इसके बारे में कोई फैसला नहीं लिया है।
दरअसल जापान भारत को एशिया को प्रभावित करने वाले बहुपक्षीय निकायों में भागीदार के रूप में देखता है। वह दक्षिण पूर्व एशिया के प्रति भारत की लुक/ऐक्ट ईस्ट नीति और आसियान क्षेत्र में उसकी भूमिका की सराहना करता है, जहां चीन भारत का विरोधी है। जापान उस क्षेत्र में भारत के बढ़ते कद और आसियान के सदस्य देशों के साथ बढ़ते द्विपक्षीय संबंधों की सराहना करता है।
वर्ष 2017 के शिखर सम्मेलन के दौरान, भारत और जापान ने कनेक्टिविटी, वन प्रबंधन, आपदा जोखिम में कमी और क्षमता निर्माण के क्षेत्रों में पूर्वोत्तर में भारत की विकास परियोजनाओं के समन्वय के उद्देश्य से भारत-जापान ऐक्ट ईस्ट फोरम की स्थापना की थी। इन स्वागत योग्य तथ्यों के बावजूद दोनों देशों के बीच राजनयिक स्तर पर मतभेद मौजूद हैं। जैसे, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की जापान ने आलोचना की, भारत ने नहीं की।
लेकिन दोनों ने अफगानिस्तान में 'शांति और स्थिरता' सुनिश्चित करने के लिए सहयोग करने की अपनी प्रतिबद्धता जताई। यात्रा के अंत में संयुक्त बयान में भारत की धरती पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमलों की निंदा की गई। यह तब है, जब जापानी कार और अन्य सामान पाकिस्तानी बाजार में मौजूद हैं। क्वाड एशिया में स्थिरता और प्रगति की कुंजी है, क्योंकि अमेरिका और चीन व्यापार युद्ध में फंसे हैं।
जैसा कि किशिदा ने अपने विशेष लेख में उल्लेख किया है, 'हाल ही में जापान-ऑस्ट्रेलिया-भारत-अमेरिका (क्वाड) नेताओं के वीडियो सम्मेलन में, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी और मैंने भाग लिया था, हमने सहमति जताई कि ताकत के जरिये यथास्थिति को बदलने का कोई भी एकतरफा प्रयास हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए, और ठीक इसी स्थिति के कारण 'फ्री ऐंड ओपन इंडो-पैसिफिक' की दिशा में प्रयासों को और बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।'
भारत और जापान, दोनों चीन से भिन्न हैं। मोदी ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पीएलए की आक्रामकता के बारे में किशिदा को बताया। जैसा कि विदेश सचिव हर्ष शृंगला ने जोर देकर कहा, भारत-चीन संबंधों में कोई भी सामान्य स्थिति वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पीछे हटने से संबंधित वार्ता की प्रगति पर निर्भर करेगी। साफ है कि चीनी विदेश मंत्री वांग यी की प्रस्तावित भारत यात्रा पर इस पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी।

सोर्स: अमर उजाला

Tags:    

Similar News

-->