विवाद बनाम विवेक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख का ताजा बयान सुलझा हुआ और मंदिर-मस्जिद संबंधी विवादों को सुलझाने का रास्ता दिखाने वाला है। ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पिछले कई दिनों से विवाद छिड़ा हुआ है।
Written by जनसत्ता: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख का ताजा बयान सुलझा हुआ और मंदिर-मस्जिद संबंधी विवादों को सुलझाने का रास्ता दिखाने वाला है। ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पिछले कई दिनों से विवाद छिड़ा हुआ है। मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण में मिले कुछ प्रतीकों को लेकर हिंदू पक्ष के काफी लोग उत्साहित हैं। हालांकि सर्वेक्षण की प्रक्रिया को गोपनीय रखने का अदालती आदेश था, पर उसके ब्योरे सर्वेक्षण के दौरान ही बाहर आते गए, जिससे मस्जिद परिसर में मिले प्रतीकों को लेकर बहसें शुरू हो गईं।
लोग पक्ष और विपक्ष में बंट गए। ऐसे में मोहन भागवत ने लोगों को संयम से काम लेने और अदालत के फैसले को मानने की सलाह दी है। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि इस्लाम आने के बाद देश भर में बहुत सारे मंदिर तोड़े गए, बहुत सारी मस्जिदों में हिंदू प्रतीक मिल सकते हैं, मगर इसका मतलब यह नहीं कि हर मस्जिद को खोद कर हिंदू प्रतीक निकाले जाएं। अयोध्या आंदोलन के बाद संघ ने चूंकि घोषणा कर दी थी कि वह अब किसी और देवस्थान के लिए आंदोलन में हिस्सा नहीं लेगा, इसलिए वह अब इस तरह के किसी भी विवाद में उलझना नहीं चाहता।
निस्संदेह सरसंघचालक के इस बयान से बहुत सारे लोगों में भरोसा पैदा हुआ है कि ज्ञानवापी या इस तरह के दूसरे मामलों में संघ लोगों को प्रोत्साहित नहीं करेगा। ज्ञानवापी परिसर में मिले हिंदू प्रतीकों से उत्साहित होकर अनेक हिंदू संगठनों और उनके कार्यकर्ताओं ने एलान कर दिया कि वे देश भर में विवादित मस्जिदों से जुड़े मामले अदालतों में ले जाएंगे। कई मस्जिदों के नाम भी रेखांकित कर दिए गए। कुछ लोगों ने अड़तालीस हजार ऐसे पूजास्थलों की सूची बना डाली।
स्वाभाविक ही इस तरह के उन्माद से अल्पसंख्यकों में भय का माहौल बना है। कई मुसलिम नेता इसे लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते भी देखे जाने लगे हैं। ऐसे में उम्मीद जगी है कि मोहन भागवत के बयान से वे लोग कुछ सीख लेंगे, जो मंदिर-मस्जिद विवाद पैदा कर देश में अस्थिरता का माहौल बनाने और सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं। चूंकि संघ का प्रभाव व्यापक जनसमुदाय तक है और उसके प्रमुख का कोई भी बयान लोग ध्यान से सुनते और उस पर अमल करते हैं, इसलिए माना जा रहा है कि उनके ताजा बयान से ऐसे विवादों पर विराम लगेगा और लोग विवेक से काम लेंगे।
पिछले कुछ समय से ऐसी अवधारणा बनाने का प्रयास किया गया है कि जैसे मुसलिम इस देश के नागरिक नहीं हैं। इसके चलते कई बार तल्ख और अमर्यादित टिप्पणियां भी सुनने को मिली हैं। मोहन भागवत ने उस अवधारणा को खंडित करते हुए नसीहत दी है कि हिंदू और मुसलमान में कोई भेद नहीं। मुसलिम भी इसी देश के नागरिक हैं, यहीं की संस्कृति में पले-बढ़े हैं।
दोनों के पूर्वज समान हैं। दोनों की परंपराएं समान हैं। उनसे नफरत का कोई आधार नहीं होना चाहिए। हर किसी को अपनी पूजा पद्धति के साथ-साथ दूसरों की पूजा पद्धति का भी सम्मान करना चाहिए। हालांकि सरसंघचालक पहले भी ऐसी नसीहत लोगों को दे चुके हैं। तब भी उम्मीद बनी थी कि समाज में नफरत फैलाने वाले उससे कुछ सबक लेंगे। मगर शायद उस पर बहुत सारे लोगों ने अमल करना जरूरी नहीं समझा। अब नए बयान के बाद फिर उम्मीद जगी है कि लोगों का विवेक जागेगा। मगर वास्तव में भागवत के इस बयान का कितना असर होगा, देखने की बात है।