राष्ट्रपिता का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान

भारत के क्रांतिकारियों ने उपनिवेशवाद का अगर जमकर विरोध नहीं किया होता तो दक्षिण एशिया के देश भी इसकी सीख कभी नहीं लेते।

Update: 2021-09-28 18:48 GMT

भारत के क्रांतिकारियों ने उपनिवेशवाद का अगर जमकर विरोध नहीं किया होता तो दक्षिण एशिया के देश भी इसकी सीख कभी नहीं लेते। क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विरोध की ज्वाला इस कदर भड़काई कि पड़ोसी देशों ने आग में पेट्रोल डालने का काम करके स्वयं भी आजादी पाई थी। अपने देश का इतिहास सदियों से संघर्षमयी रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ब्रिटिश हुकूमत के सख्त विरोधी रहे। इसके लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष की राह अपनाए रखी। देश को आजादी दिलाने में बापू का योगदान सर्वश्रेष्ठ है। बापू के जन आंदोलन से प्रेरित होकर अन्य देशों ने भी आजादी की मांग उठाई थी। सोने की चिडि़या कहलाए जाने वाले भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी ऐसे ही नहीं मिली है। आजादी के परवानों ने इसके लिए अपने प्राणों की आहुतियां दी हैं। भारत लंबे समय तक ब्रिटिश हुकूमत का उपनिवेशवाद रहा था। भारत के अलावा पड़ोसी देशों का भी ठीक ऐसा ही इतिहास रहा है। भारत को गुलामी की जंजीरों से निकालने के लिए भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद, ऊधम सिंह आदि अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों ने कुर्बानियां दी हैं। वहीं राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचंद गांधी के बलिदानों को आज स्मरण रखने की अधिक जरूरत है। अहिंसा के पुजारी कर्मचंद गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत की प्रत्येक ज़्यादतियों पर उन्हें करारी शिकस्त दी। नतीजतन देश की जनता का साथ सदैव उन्हें मिलने की वजह से जन आंदोलन खड़ा होने में कतई देर नहीं लगी। प्रत्येक वर्ष 2 अक्तूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन शिक्षण संस्थानों सहित सरकारी क्षेत्रों में अवकाश रहता है और जनता को उनके मार्गों पर चलने की सीख दी जाती है। वह भारत के राष्ट्रपिता तथा बापू के नाम से विख्यात हैं। किसी व्यक्ति विशेष को राष्ट्रपिता का स्थान देना हमारे भारतीय संविधान में उल्लेखित नहीं है। 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महात्मा गांधी जयंती पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। जयंती पर प्रार्थना सभा, स्मरणीय समारोह, नाटक मंचन, भाषण, व्याख्यान, निबंध लेखन, प्रश्नोत्तरी, चित्रकला और कविता पाठ शिक्षण संस्थानों, सामाजिक और राजनीतिक संस्थानों में ऐसी प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं। इन प्रतियोगिताओं में स्थान पाने वालों को ईनाम से नवाजा जाता है। वह एक देशभक्त थे और अहिंसा के पथ पर चलते हुए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हमेशा जंग जारी रखी।

बापू अहिंसा के पुजारी रहे, जिसके चलते ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की लड़ाई जीतने के लिए अहिंसा और सच्चाई के पथ पर अग्रसर रहे। वह कई बार जेल भी गए, हालांकि देश को आजादी मिलने तक अपना आंदोलन जारी रखा था। वह हमेशा सामाजिक समानता में भरोसा रखते थे। इसलिए अस्पृश्यता के घोर खिलाफ थे। सरकारी अधिकारियों द्वारा नई दिल्ली राजघाट में महात्मा गांधी की समाधि पर प्रत्येक वर्ष फूल मालाएं चढ़ाई जाती हैं। राजघाट को फूल मालाओं से सजाया जाता है और नेतागण बापू को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इसे पूरे देशभर के शिक्षण संस्थानों में खास तौर पर राष्ट्रीय दिवस के तौर पर मनाया जाता है। महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 को एक छोटे से तटीय शहर पोरबंदर (गुजरात) में हुआ था। कर्मचंद उनके पिता का नाम था। 1914 में उन्हें महात्मा की उपाधि मिली। गांधी एक विचारधारा का नाम कहे जाने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनका मानना था कि कुछ ऐसा जीवन जिओ जैसे कि कल तुम मरने वाले हो, कुछ ऐसा सीखो जैसे कि तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो। अहिंसा मानवता के लिए सबसे बड़ी ताकत है। यह आदमी द्वारा तैयार किए गए विनाशकारी हथियार से अधिक शक्तिशाली है। पुस्तकों का मूल्य रत्नों से भी अधिक है क्योंकि पुस्तकें आत्मा को उज्ज्वल करती हैं। केवल सच ही दुनिया में अकेला खड़ा रहता है। उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती है। आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी। अधिकांश लोग उनके प्रसिद्ध आंदोलन दांडी मार्च और भूख हड़ताल को याद करते हैं। महात्मा गांधी ने आजादी के लिए दलित लोगों को सम्मान दिलाने के लिए बहुत संघर्ष किया। उनके कार्यों में महिलाओं के लिए नागरिक अधिकार व जाति व्यवस्था का उन्मूलन भी शामिल है। महात्मा गांधी के अंतिम दाह संस्कार में लगभग दस लाख लोग शामिल हुए थे। उनकी शव यात्रा आठ किलोमीटर लंबी थी, जो घंटों तक चली।
ग्रेट ब्रिटेन, जिस देश के खिलाफ उन्होंने स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी, ने उनकी मृत्यु के 21 साल बाद उन्हें सम्मानित करते हुए एक डाक टिकर जारी किया। भारतीय रिजर्व बैंक ने 1996 में अपनी शुरुआत के बाद से महात्मा गांधी की छवि प्रदर्शित करके बैंक नोट जारी किए। गांधी ने भारत के सबसे निचली जाति के अछूतों के लिए समान अधिकार की मांग के लिए भूख हड़ताल तक की। महात्मा गांधी ने समानता का हक पाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत से लंबी लड़ाई लड़ी, मगर देश को आजाद हुए साढ़े सात दशक गुजर जाने के बावजूद असमानता, जातिवाद, भ्रष्टाचार, क्षेत्रवाद, भाषावाद, साम्प्रदायिकता, नस्लवाद आदि बुराइयों को हम आज भी खत्म नहीं कर पाए जो सफल लोकतंत्र के मार्ग में बहुत बड़ी बाधाएं हैं। बापू ने अकेले अपनी विचारधारा से जन आंदोलन खड़ा करके देश को आजादी दिलाई थी, मगर आज भ्रष्ट राजनीति के चलते हालात खराब हो रहे हैं। आज आजादी सभी चाहते हैं, मगर महात्मा गांधी बनने को कोई तैयार नहीं है। आज देश कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, मगर बहुत कम लोगों में समाज और राष्ट्र का पुनर्निर्माण किए जाने का जज्बा है। सोशल मीडिया में महात्मा गांधी व प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का उपहास उड़ाया जाता है जो कि संकीर्ण मानसिकता की उपज ही कहा जा सकता है। गांधी अपने पूरे जीवन काल में रोजाना 18 किलोमीटर पैदल चलते थे। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने उनकी हत्या कर दी, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में अपने योगदान के कारण वह आज भी याद किए जाते हैं।
सुखदेव सिंह
लेखक नूरपुर से हैं
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