सरोकार: भारत-पाक दोनों मुल्कों की सुर्खियां बन गईं ये दो खबरें
मुस्कान खान की समस्याओं का समाधान भारत के भीतर से ही निकलेगा, इसमें किसी के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
पाकिस्तान और भारत सरहदों से विभाजित मुल्क हैं। इन दिनों एक-दूसरे देश के नागरिकों को वीजा जारी करना बहुत मुश्किल हो गया है। लेकिन आधुनिक तकनीक हवा की तरंगों पर यात्रा करती है, जिसे किसी वीजा की जरूरत नहीं होती। दोनों मुल्कों से सूचनाओं के प्रवाह को भला कौन रोक सकता है? यही कारण था कि इस सप्ताह दो बार पाकिस्तान और भारत, दोनों मुल्कों में अखबारों के पहले पन्ने और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में शीर्ष समाचारों में कमोबेश एक ही तरह का कवरेज था।
इस हफ्ते पाकिस्तान के हर घर और दफ्तर तक पहुंचने वाली खबर भारत और खासकर भारतीय महिलाओं से संबंधित थीं। पहली खबर तो लता मंगेशकर की दुखद मौत से संबंधित थी, जिसने पूरे पाकिस्तान को दुख और शोक से भर दिया। हर किसी के लिए यह अविश्वसनीय खबर थी। फिर कर्नाटक की छात्रा मुस्कान खान का प्रकरण सामने आया। अगर दोनों मुल्कों में कुछ चीजें ऐसी हैं, जो लोगों को बांटती हैं, तो कुछ और भी चीजें हैं, जो लोगों को एकजुट करती हैं।
लता मंगेशकर एक ऐसी शख्सीयत थीं, जो अपनी स्वर्णिम धुनों से दोनों मुल्कों के लोगों को बांधे रखती थीं। सामान्य टैक्सी ड्राइवर से लेकर तंदूर वाला, छात्र, राजनेता, हर पाकिस्तानी एक ही सवाल पूछ रहा था, 'क्या आपने सुना कि लता मंगेशकर का निधन हो गया है? अल्लाह उनकी आत्मा को शांति दें, वह हमारे लिए इतनी खुशियां लेकर आईं।' लता मंगेशकर एक भारतीय गायिका थीं, लेकिन इससे किसी भी पाकिस्तानी को कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि उन्हें लगता था कि वह भी उन्हीं की हैं।
पाकिस्तान में शायद ही कोई घर हो या शादियों के दौरान मेहंदी की रस्म हो, जब लता मंगेशकर के एकाधिक गीत न गाए गए हों। हम सब अपने घरों में उनका गायन सुनकर बड़े हुए हैं। जब हम बहुत छोटे थे, तो हमारे दादा-दादी और माता-पिता उनके गाने सुनते थे। पाकिस्तान और भारत के बीच कटुता और द्विपक्षीय संबंधों में भारी गिरावट के बावजूद ट्विटर पर अपनी संवेदना भेजने वाले पहले कुछ पाकिस्तानियों में प्रधानमंत्री इमरान खान और उनके मंत्री थे। इमरान खान शायद ही कभी लोगों के प्रति संवेदना प्रकट करते हैं, पर लता मंगेशकर में इतनी शक्ति और प्यार था कि उन्होंने उनके बारे में ट्वीट भी किया, 'लता मंगेशकर की मृत्यु के साथ उपमहाद्वीप ने वास्तव में महान गायकों में से एक को खो दिया है, जिसे दुनिया जानती है। उनके गीतों को सुनकर पूरी दुनिया में इतने सारे लोगों को बहुत आनंद मिला है।'
फिर पाकिस्तानी पार्श्व गायक सलीम रजा जैसे सामान्य लोग भी थे, जिन्होंने यह कहते हुए उन्हें याद किया कि शाम को रेडियो सीलोन से लता मंगेशकर का गाना प्रसारित किया जाता था, जो दिन भर के अपने काम से थके हुए लोगों को राहत और शांति प्रदान करता था। अखबारों ने बहुत समय पहले की कुछ बहुत ही खास तस्वीरें छापी थीं, जब प्रसिद्ध पाकिस्तानी गायिका नूरजहां अपनी मुंबई और अन्य शहरों की यात्राओं के दौरान लता मंगेशकर से मिली थीं और उन्होंने हंसते हुए कसकर एक-दूसरे को गले लगाया था। लता मंगेशकर तब बहुत युवा थीं, जब उन्हें पहली बार नूरजहां के सामने गाने के लिए कहा गया था। यह विभाजन से पहले की बात है।
एक पुस्तक में दी गई जानकारी के अनुसार, दोनों गायिकाओं का एक-दूसरे से परिचय मास्टर विनायक ने करवाया था और युवा लता ने नूरजहां के लिए राग जय जयवंती गाया था। जब नूरजहां ने उन्हें फिल्मी गीत गाने के लिए कहा, तो लता ने फिल्म वापस का गीत जीवन है बेकरार बिना तुम्हारे गाया था। नूरजहां ने लता मंगेशकर की प्रशंसा करते हुए कहा था कि एक दिन तुम एक महान गायिका बनोगी। दूसरी भारतीय महिला, जो पाकिस्तान में लगातार सुर्खियां बटोर रही है, वह है युवा छात्रा मुस्कान खान, जिसे उसके ही विश्वविद्यालय और कुछ बाहरी छात्रों द्वारा हिजाब पहनने के कारण परेशान किया गया था। जैसा कि मैंने दोनों मुल्कों के मीडिया कवरेज में देखा, संतोष की बात है कि मुस्कान खान के समर्थन में सबसे तेज आवाज भारत से ही उठी। भारतीय मीडिया मुस्कान के साथ मजबूती से खड़ा है और शिक्षा प्राप्त करने के उसके अधिकार का समर्थन कर रहा है।
पाकिस्तान में हिजाब पहने किसी महिला को मोटर साइकिल चलाते हुए शैक्षणिक संस्थान में देखना आम बात नहीं है। मुस्कान का हिजाब पहनना या न पहनना महत्वपूर्ण नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि कोई भी चीज उसे शिक्षा प्राप्त करने से नहीं रोक सकती। दरअसल, यह मामला राजनीति से ज्यादा उन मूल्यों से जुड़ा है, जो भारत में हमेशा से रहे हैं। क्योंकि न केवल पाकिस्तान में, बल्कि पश्चिमी दुनिया में भी सभी सिखों को अपनी पगड़ी पहनने की अनुमति है। दरअसल हर जगह महिलाएं और पुरुष कपड़ों के जरिये अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बनाए रखना चाहते हैं।
हालांकि पाकिस्तान में कुछ लोग कह रहे हैं कि मुस्कान खान का समर्थन करना आसान है, पर अफगानिस्तान की उन महिलाओं के बारे में क्या विचार हैं, जो सबसे बुरी समस्याओं से जूझ रही हैं? वे महिलाएं तालिबान द्वारा बनाए गए कुछ बहुत ही सख्त नियमों से बंधी हैं, जहां उनके लिए अकेले यात्रा करना या शिक्षा और नौकरी की तलाश करना मुश्किल है। पाकिस्तान के लोग अपने ट्विटर अकाउंट पर इन अफगानी महिलाओं का समर्थन क्यों नहीं करते? नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई अपने सिर पर दुपट्टा ओढ़ती हैं और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देती हैं। उन्होंने भी मुस्कान खान का समर्थन किया है। लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि मुस्कान खान की समस्याओं का समाधान भारत के भीतर से ही निकलेगा, इसमें किसी के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
सोर्स: अमर उजाला