भीख की मजबूरी

भीख मांगने वालों के प्रति जिस श्रेष्ठ संवदेना का प्रदर्शन देश की सर्वोच्च अदालत ने किया है, वह न केवल स्वागत-योग्य है, बल्कि अनुकरणीय भी है

Update: 2021-07-28 18:51 GMT

भीख मांगने वालों के प्रति जिस श्रेष्ठ संवदेना का प्रदर्शन देश की सर्वोच्च अदालत ने किया है, वह न केवल स्वागत-योग्य है, बल्कि अनुकरणीय भी है। अदालत ने दोटूक कह दिया कि वह सड़कों से भिखारियों को हटाने के मुद्दे पर एलीट या संभ्रांत वर्ग का नजरिया नहीं अपनाएगी, क्योंकि भीख मांगना एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की बेंच ने कहा कि वह सड़कों और सार्वजनिक स्थलों से भिखारियों को हटाने का आदेश नहीं दे सकती, क्योंकि शिक्षा और रोजगार की कमी के चलते बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए ही लोग आमतौर पर भीख मांगने को मजबूर हो जाते हैं। अदालत का इशारा साफ था कि भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं होगा और इससे भीख मांगने की समस्या का समाधान नहीं होगा। याचिकाकर्ता को शायद उम्मीद थी कि सर्वोच्च अदालत सड़कों-चौराहों पर लोगों को भीख मांगने से रोकने के लिए कोई आदेश या निर्देश देगी। अदालत ने समस्या की व्याख्या जिस संवेदना के साथ की है, वह गरीबी हटाने की दिशा में आगे के फैसलों के लिए बहुत गौरतलब है। अदालत ने पूछा कि आखिर लोग भीख क्यों मांगते हैं? गरीबी के कारण ही यह स्थिति बनती है।

यह सोचने में बहुत अच्छा लगता है कि सड़कों पर कोई भिखारी न दिखे, लेकिन सड़कों से भिखारियों को हटाने से क्या गरीबी दूर हो जाएगी? क्या जो लाचार हैं, जिनके पास आय का कोई साधन नहीं, क्या उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा? जस्टिस चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील चिन्मय शर्मा से यह भी कहा कि कोई भीख नहीं मांगना चाहता। मतलब, सरकार को भीख मांगने की समस्या से अलग ढंग से निपटना होगा। इसमें कोई शक नहीं कि सरकार असंख्य भारतीयों तक नहीं पहुंच पा रही है। मुख्यधारा से छिटके हुए वंचित लोग भीख मांगने को विवश हैं। ऐसे लोगों तक जल्दी से जल्दी सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचना चाहिए। जहां तक चौराहों पर भीख की समस्या है, तो स्थानीय प्रशासन इस मामले में कदम उठा सकता है। सड़क पर भीख मांगने वालों को सचेत किया जा सकता है कि वे किसी सुरक्षित जगह पर ही भीख मांगने जैसा कृत्य करें। भीख मांगना अगर सामाजिक समस्या है, तो समाज को भी अपने स्तर पर इस समस्या का समाधान करना चाहिए। समाज के आर्थिक रूप से संपन्न और सक्षम लोगों को स्थानीय स्तर पर सरकार के साथ मिलकर भीख जैसी मजबूरी का अंत करना चाहिए।
बहरहाल, सर्वोच्च अदालत ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर भिखारियों और बेघर लोगों के पुनर्वास और टीकाकरण का आग्रह करने वाली याचिका पर मंगलवार को केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करके उचित ही जवाब मांगा है। याचिका की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उसमें महामारी के बीच भिखारियों और बेघर लोगों के पुनर्वास, उनके टीकाकरण, आश्रय व भोजन उपलब्ध कराने का प्रशंसनीय आग्रह किया गया है। वाकई भीख मांगने वाले और बेघर लोग भी कोविड-19 के संबंध में अन्य लोगों की तरह चिकित्सा सुविधाओं के हकदार हैं। केंद्र सरकार के साथ तमाम राज्य सरकारों को स्वास्थ्य और रोजगार का दायरा बढ़ाना चाहिए, ताकि जो बेघर, निर्धन हैं, उन तक मानवीयता का एहसास पुरजोर पहुंचे।


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