भीख की मजबूरी
भीख मांगने वालों के प्रति जिस श्रेष्ठ संवदेना का प्रदर्शन देश की सर्वोच्च अदालत ने किया है, वह न केवल स्वागत-योग्य है, बल्कि अनुकरणीय भी है
भीख मांगने वालों के प्रति जिस श्रेष्ठ संवदेना का प्रदर्शन देश की सर्वोच्च अदालत ने किया है, वह न केवल स्वागत-योग्य है, बल्कि अनुकरणीय भी है। अदालत ने दोटूक कह दिया कि वह सड़कों से भिखारियों को हटाने के मुद्दे पर एलीट या संभ्रांत वर्ग का नजरिया नहीं अपनाएगी, क्योंकि भीख मांगना एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की बेंच ने कहा कि वह सड़कों और सार्वजनिक स्थलों से भिखारियों को हटाने का आदेश नहीं दे सकती, क्योंकि शिक्षा और रोजगार की कमी के चलते बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए ही लोग आमतौर पर भीख मांगने को मजबूर हो जाते हैं। अदालत का इशारा साफ था कि भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं होगा और इससे भीख मांगने की समस्या का समाधान नहीं होगा। याचिकाकर्ता को शायद उम्मीद थी कि सर्वोच्च अदालत सड़कों-चौराहों पर लोगों को भीख मांगने से रोकने के लिए कोई आदेश या निर्देश देगी। अदालत ने समस्या की व्याख्या जिस संवेदना के साथ की है, वह गरीबी हटाने की दिशा में आगे के फैसलों के लिए बहुत गौरतलब है। अदालत ने पूछा कि आखिर लोग भीख क्यों मांगते हैं? गरीबी के कारण ही यह स्थिति बनती है।