चीन का रवैया

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के रवैए को लेकर जो चिंता और नाराजगी जताई है, वह बेवजह नहीं हैं। पिछले दो वर्षों में तो चीन ने सारी हदें पार कर दीं।

Update: 2022-02-22 06:15 GMT

Written by जनसत्ता: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के रवैए को लेकर जो चिंता और नाराजगी जताई है, वह बेवजह नहीं हैं। पिछले दो वर्षों में तो चीन ने सारी हदें पार कर दीं। सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए नए-पुराने सभी समझौतों की धज्जियां उड़ाते हुए गलवान जैसे गंभीर विवाद खड़े कर दिए। आखिर कौन भूल सकता है कि चीनी सैनिकों ने सीमा का उल्लंघन करते हुए भारतीय जवानों पर हमला कर दिया था और हमारे चौबीस जवान शहीद हो गए थे। लेकिन अब ज्यादा चिंता की बात यह है कि चीन गलवान विवाद को खत्म करने के बजाय और बढ़ाने पर ही तुला है।

अब तक तेरह दौर की वार्ताओं में उसके रवैए से यही सामने आया है। ऐसे में भारत चिंतित होना लाजिमी है और अपनी सुरक्षा के लिए हरसंभव कदम भी उठाएगा ही। म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में विदेश मंत्री ने दो टूक शब्दों में दुनिया को उचित ही बताया है कि चीन किसी भी समझौते को मान नहीं रहा है और उसी का नतीजा है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहद खराब हो गए हैं। इसी महीने मेलबर्न में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन और आस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री के साथ द्विपक्षीय वार्ता में भी भारत ने यही बात कही थी।

चीन के साथ तनाव की जड़ सीमा विवाद तो है ही, पर अब इससे भी बड़ी मुश्किल यह खड़ी हो गई है कि वह अक्सर ही ऐसी हरकतों को अंजाम देने में जरा नहीं हिचकिचा रहा जो भारत को उकसाने वाली होती हैं। याद करें, लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब हजारों सैनिकों को तैनात कर उसने मोर्चाबंदी शुरू कर दी। पिछले साल अगस्त में बड़ी संख्या में चीनी सैनिक उत्तरांखड के बाड़ाहोती सेक्टर में घुस आए थे और तीन घंटे तक वहां तोड़फोड़ करते रहे। अरुणाचल प्रदेश से लगती सीमा पर ऐसी घटनाएं आम हैं।

उसे लग रहा है कि जवाबी कार्रवाई में भारत कुछ करे और फिर विवाद खड़े हों। गौरतलब है कि गलवान विवाद से पहले लगभग साढ़े चार दशक तक भारत-चीन सीमा पर शांति बनी रही थी। भारत की ओर से कभी भी ऐसा कोई अनुचित कदम नहीं उठाया गया जो अशांति पैदा करता। लेकिन पिछले दो दशकों में चीन जिस तेजी से विस्तारवादी नीतियों पर बढ़ चला है और वह भारत से लगती लगभग चार हजार किलोमीटर लंबी सीमा पर ऐसी ही गतिविधियां जारी रखे हुए है, जिन पर भारत को सख्त एतराज रहा है।

सीमा पर शांति बनी रहे, इसके लिए भारत और चीन के बीच 1996 में समझौता हुआ था। इस समझौते के अनुच्छेद-6 में साफ कहा गया है कि कोई भी पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के दो किलोमीटर के दायरे में गोली नहीं चलाएगा। इतना ही नहीं, समझौते के मुताबिक इस क्षेत्र में बंदूक, रासायनिक हथियार या विस्फोटक ले जाने की अनुमति भी नहीं है।

इसके अलावा, 2013 में किए गए सीमा रक्षा सहयोग करार में साफ कहा गया था कि यदि दोनों पक्षों के सैनिक आमने-सामने आ भी जाते हैं तो वे बल प्रयोग, गोलीबारी या सशस्त्र संघर्ष नहीं करेंगे। लेकिन इन समझौतों को धता बताते हुए उसने गलवान की घटना को अंजाम दिया। चीन को यह समझना होगा कि जब तक वह शांति समझौतों का पालन नहीं करेगा और भारत की संप्रभुता का सम्मान नहीं करेगा, तब तक संबंधों को सामान्य बनाने के उसके दावे और प्रयास महज धोखा ही साबित होंगे।


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