चीन-रूस का मोर्चा?

Update: 2022-09-19 04:59 GMT
By NI Editorial
उज्बेकिस्तान के समरकंद में हुई शंघाई सहयोग परिषद की शिखर बैठक जो दुनिया ने जो संदेश ग्रहण किया, वह यही है कि चीन और रूस ने इसे प्रतिस्पर्धी विश्व व्यवस्था को आगे बढ़ाने का मंच बना लिया है। इस संदेश से भारत और मुमकिन है कि पाकिस्तान की मौजूदा सरकार भी कुछ असहज महसूस करे, तो समरकंद में हुई जो चर्चाएं सुर्खियों में आईं, उससे बनी इस धारणा को तोड़ना उनके मुश्किल होगा। शिखर बैठक से एक दिन पहले ही रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी द्विपक्षीय मुलाकात के बाद जारी साझा बयान में यह दो टूक कहा कि उथल-पुथल भरी दुनिया में ये दोनों देश 'बड़ी ताकत के रूप में' स्थिरता लाने की भूमिका निभाएंगे। इसके अलावा उन्होंने सुरक्षा के मामलों विकासशील देशों के हितों की रक्षा करने बात भी कही। इस रूप में ये दोनों देश अब अपनी भूमिका को एक नया रूप दे रहे हैँ। इसके असर एससीओ अप्रभावित रहेगा, यह संभव नहीं है। शिखर सम्मेलन से यह सामने आया कि ये दोनों देश ब्रिक्स, यूरेशियन इकॉनमिक यूनियन और एससीओ को एक ही मकसद से काम कर रहे समूह के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। ये मकसद पश्चिमी वर्चस्व को तोड़ना है।
चीन की बढ़ती आर्थिक ताकत का आकर्षण यह है कि उसके ऐसे प्रयासों से ऐसे देश भी जुड़ने लगे हैं, जो अब तक अमेरिकी खेमे में माने जाते थे। मसलन, टर्की ने समरकंद में पर्यवेक्षक के तौर पर भाग लिया। सऊदी अरब, यूएई और कई अन्य देशों ने डायलॉग पार्टनर के रूप में एससीओ से जुड़ने की पहल की है। समरकंद में यह साफ हुआ कि रूस और चीन ने अंतरराष्ट्रीय कारोबार की नई व्यवस्था बनाने के प्रयासों को तेज कर दिया है, ताकि पश्चिमी प्रतिबंधों को बेमतलब बनाया जा सके। इससे खुश ईरान न सिर्फ अब एससीओ का पूर्ण सदस्य बन गया है, बल्कि उसके राष्ट्रपति ने पश्चिम नियंत्रित वित्तीय व्यवस्था का विकल्प जल्द से जल्द प्रचलित करने का आह्वान भी किया। तो कुल मिला कर- भले यह स्पष्ट कहा गया हो या नहीं- एससीओ और ब्रिक्स के जरिए कोशिश आईएमएफ-वर्ल्ड बैंक और नाटो केंद्रित विश्व व्यवस्था का विकल्प तैयार करने की कोशिश हो रही है, यह स्पष्ट हो गया है।

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