चीन ने आसमान में किया करतब, अमेरिका के उड़े होश!
चीन अपनी मिसाइल टेक्नोलॉजी की उपलब्धियों से फिर खबरों में है
विष्णु शंकर चीन अपनी मिसाइल टेक्नोलॉजी की उपलब्धियों से फिर खबरों में है. उपलब्धियां भी ऐसी कि अमेरिका और उसके मित्र देश अभी सकते में हैं. अगस्त महीने में चीन का एक "लौंग मार्च" (Long March) रॉकेट उड़ा और पृथ्वी के चक्कर लगाने के बाद, इसमें रखा गया पे लोड या मिसाइल पृथ्वी की तरफ मुड़ा और पृथ्वी के बाहरी वातावरण से होते हुए धरती पर क्रैश कर गया. मिसाइल अपने लक्ष्य से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर क्रैश हुआ.
ब्रिटेन के अख़बार Financial Times ने सबसे पहले ये खबर ब्रेक की और बताया कि अपने निशाने से चूकने वाली मिसाइल परमाणु बम ले जा सकने वाली हाइपरसोनिक ग्लाइड (Hypersonic Glide) मिसाइल थी. हालांकि चीन ने सिर्फ इतना कहा कि ये बार-बार इस्तेमाल किए जा सकने वाले रॉकेट का मात्र एक टेस्ट था, इससे ज़्यादा कुछ नहीं. अब आपको बताते हैं कि हाइपरसोनिक स्पीड (Hypersonic Speed) की परिभाषा क्या है. ये वह गति है जो आवाज़ की स्पीड से 5 गुना या उससे ज़्यादा हो. और अब ये भी जान लीजिए कि Hypersonic Glide मिसाइल होती क्या है.
इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों को ट्रैक करना आसान होता है
आमतौर पर इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक (Intercontinental Ballistic) मिसाइलें एक पैराबोलिक आर्क में काम करती हैं, यानि ये आसमान में ऊपर जाती हैं और एक निश्चित ऊंचाई पर पहुंच कर नीचे गिरना शुरु करती हैं, ठीक एक गेंद की तरह. इस टेक्नोलॉजी की कमज़ोरी यह है कि ऐसी मिसाइल देखी और ट्रैक की जा सकती है, इसलिए इससे बचने के उपाय हो सकते हैं. मिसाल के तौर पर अमेरिका पर अगर रूस या चीन से कोई बैलिस्टिक मिसाइल दाग़ी गई तो वह North Pole यानि उत्तरी ध्रुव के ऊपर से जाएगी, जहां अमेरिका और कनाडा ने अपने रडार लगा रखे हैं. हालांकि कुछ बैलिस्टिक मिसाइलें पृथ्वी के वातावरण यानि Atomosphere में लौटने के बाद अपनी लाइन से थोड़ा बहुत इधर उधर जा सकती हैं लेकिन उनकी दिशा से यह पता लगाना मुश्किल नहीं होता कि उनके निशाने पर क्या है.
चीन का नया हथियार नई तकनीक से लैस है
चीन के ताज़ा मिसाइल टेस्ट में दो अलग अलग टेक्नॉलाजियों को मिला कर एक हथियार बनाया गया है और अमेरिकी वैज्ञानिक और रक्षा अमले के अधिकारी सोच रहे हैं कि चीन ने ये कमाल कैसे कर दिया. चीन ने किया ये है कि एक ऑर्बिट में घूमने वाले हथियार और ग्लाइड यानि हवा में तैरने वाले यान को मिला कर एक ऐसा हथियार बनाया है जो पैराबोलिक आर्क में उड़ने की बजाय थोड़ी देर के लिए पृथ्वी की कक्षा में घुस कर फिर अपनी पहले से निर्धारित दिशा और लक्ष्य की ओर बढ़ सकता है. पूर्व सोवियत संघ ने 1970 और 80 के दशक में ऐसा हथियार बनाया था.
अमेरिका और कनाडा के रडार चूंकि North Pole यानि उत्तरी ध्रुव में तैनात हैं, तो इस हथियार का फायदा यह है कि यह अपने आर्क से हट कर South Pole यानि दक्षिणी ध्रुव के ऊपर से होते हुए रडार से बच कर अमेरिका में अपने निशाने की तरफ बेरोकटोक जा सकता है. तो चीन ने ये हथियार इसलिए बनाया है क्योंकि उसे हमेशा ये डर रहा है कि अमेरिका का मिसाइल डिफेंस सिस्टम उसके छोटे लेकिन मारक एटमी हथियार भंडार का मुकाबला करने में सक्षम है.
चीन पहला देश है जिसने ऐसे हथियार का प्रोटोटाइप तैयार किया है
ग्लाइड करने वाले हथियारों का एक लाभ यह भी है कि उनका बड़ा लिफ्ट टू ड्रैग रेशियो यह सुनिश्चित करता है कि वे बिना रॉकेट इंजन का इस्तेमाल किये हुए ज़्यादा लम्बे समय तक हवा में रडार से बिना पहचाने गए तैर सकते हैं और अपने निशाने की तरफ ज़्यादा लम्बा और आड़ा तिरछा रास्ता भी ले सकते हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि अमेरिका भी ऑर्बिटिंग और ग्लाइडिंग टेक्नोलॉजी पर आधारित हथियार का प्रयोग अपने X37B स्पेसक्राफ्ट के साथ कर चुका है, लेकिन चीन पहला देश है, जिसने इस मारक हथियार का प्रोटोटाइप तैयार कर उसका टेस्ट भी कर लिया है.
चीन के इस टेस्ट पर नजर रखने की जरूरत
भारतीय वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि चीन के इस ताज़ा टेस्ट के नतीजों पर नज़र रखने की ज़रुरत है, खासतौर पर अभी भारत और चीन के रिश्तों को देखते हुए इस तरह का हथियार अंतरिक्ष और ज़मीन पर भारत के डिफेंस सिस्टम्स के लिए खतरा हो सकता है. चूंकि ऐसा हथियार बड़ी तेज़ गति से मार करता है, इसलिए हमें ऐसे प्रतिरक्षा हथियारों की ज़रुरत होगी जो ऐसी ही गति से उनका मुक़ाबला कर सकें.
भारत भी हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी पर आधारित हथियारों को विकसित करने का काम कर रहा है जो आक्रमण और प्रतिरक्षा दोनो कर सकें. अंतरिक्ष में भारतीय प्रतिरक्षा सक्षमता के प्रयास साल 2019 में ASAT यानि Anti Satellite Weapon System के टेस्ट के साथ सफल रहे थे.
भारत हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी वाले हथियारों के विकास पर जोर दे रहा है
भारतीय Hypersonic टेक्नोलॉजी DRDO और ISRO दोनों ने विकसित और टेस्ट की है. सितम्बर 2020 में DRDO ने Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle का सफल टेस्ट किया. इस प्रयोग में अग्नि मिसाइल के सॉलिड रॉकेट मोटर ने मिसाइल को 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचाया, जिसके बाद मिसाइल का क्रूज़ यानि योजना के मुताबिक़ रॉकेट से अलग हो गया. Hypersonic अवस्था में क्रूज़ यान 20 सेकेण्ड तक अपने Flight Path पर आवाज़ से 6 गुना तेज़ गति से उड़ा और प्रयोग में सफल रहा.
दिसंबर 2020 में हैदराबाद में DRDO की Advanced Hypersonic Wind Tunnel की शुरुआत की गई. ये प्रेशर वैक्यूम चालित Enclosed Free Jet Facility है जो MACH 5 से MACH 12 तक की गति Simulate कर सकती है. यानि भारत भी अब Hypersonic टेक्नोलॉजी पर आधारित हथियारों के विकास में पूरी तरह जुट गया है.