टुकड़ों-टुकड़ों में लौटता चीन

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर 12वें राउंड की बातचीत के सार्थक परिणाम आ रहे हैं।

Update: 2021-08-08 01:56 GMT

आदित्य चोपड़ा| भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर 12वें राउंड की बातचीत के सार्थक परिणाम आ रहे हैं। दोनों देशों के सैनिक पूर्वी लद्दाख के गोगरा में पीछे हट गए हैं। साथ ही वहां निर्मित सभी अस्थाई ढांचों को भी हटा लिया गया है। इस क्षेत्र में पिछले वर्ष मई में दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आ गए थे। अब सवाल यह है कि चीन टुकड़ों-टुकड़ों में क्यों लौट रहा है। ऐसा लगता है कि वह हम पर कोई अहसान कर रहा है। कायदे से तो उसे इस साल फरवरी में पैगोंग झील इलाके से सेनाओं को पीछे हटाने पर सहमति बन जाने के बाद अन्य क्षेत्रों में भी आमने-सामने खड़ी सेनाओं को अपने पूर्व के स्थानों पर लौट जाना चाहिए था, लेकिन एेसा नहीं हुआ। इसके लिए चीन का अडियल रवैया जिम्मेदार रहा। चीन की रणनीति यही रहती है कि दूसरे पक्ष पर इतना दबाव बना कर रखा जाए ताकि दूसरा पक्ष थक जाए और वह अपनी रणनीति पर काम करता रहे। यह तथ्य किसी से छिपा हुआ नहीं है कि चीन भारत की घेराबंदी की चौतरफा कोशिश में लगा है। चीन और पाकिस्तान की जुगलबंदी भारत के लिए नित नई चुनौतियां पेश करती रहती है। हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन की भारत यात्रा के दौरान आैर उस दौरान दलाई लामा के प्रतिनिधियों से उनकी वार्ता के बाद चीन खासा तिलमिलाया था। ऐसे में साम्राज्यवादी चीन के मंसूबों को समझना कठिन नहीं है। इसके बावजूद सैन्य वार्ता चलती रही। चीन का एक-एक जगह से धीरे-धीरे लौटना इस बात का संकेत है कि इस बार लाख ​कोेशिशों के बावजूद चीन भारत पर दबाव बनाने में कामयाब नहीं हो सका। अब सवाल यह है कि चीन के सैनिक हाट स्प्रिंग और देपसांग इलाके से कब हटेंगे। भारत सीमा पर 2020 की स्थिति बहाल करना चाहता है। चीन को कभी यह उम्मीद नहीं रही होगी कि भारत से उसे इतने कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।

भारत न तो चीन से आतंकित हुआ आैर न ही उसने कोई कमजोरी दिखाई। पिछले वर्ष 15 जून को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से झड़प के बाद भारत की सेना ने अपनी रणनीति बदल ली। भारत ने आफेंसिव डिफेंस की रणनीति को अपना लिया। भारत ने पहले चीन से लगती सीमा पर ड्रैगन को रोकने के लिए सैनिक तैनात कर रखे थे लेकिन अब दल-बल में भारी वृद्धि करके जवाबी हमला करने और चीनी सीमा में प्रवेश करने की क्षमता भी हासिल कर ली। इसके लिए एक घाटी से दूसरी घाटी तक सैनिकों और हल्के हॉवित्जर तोपों को लाने-ले जाने के लिए हैलीकाप्टर तैनात कर दिए गए।
तनाव के बीच 50 हजार सैनिकों को सीमा पर तैनात किया। चीन सीमा से सटे तीन अलग-अलग इलाकों में सैन्य टुकड़ियों आैर युद्धक विमानों को तैनात किया है। ड्रैगन की विस्तारवादी नीति पर लगाम कसने के लिए भारत ने चीन से सटी सीमा पर दो लाख सैनिक तैनात किए हुए हैं। जो पिछले साल के मुकाबले 40 फीसदी ज्यादा है। अब हर जगह सीमाओं पर बुनियादी ढांचा मजबूत बनाया जा चुका है। भारत की सख्ती के बाद ड्रैगन की अकड़ ढीली पड़ी। दुशावे में शंघाई संगठन के सम्मेलन से इत्तर विदेश मंत्री जयशंकर ने अपनी चीनी समकक्ष वांग यी के साथ बैठक की। इस दौरान दोनों नेताओं की सीमा विवाद पर बातचीत भी हुई। चीन को स्वीकार करना पड़ा कि भारत-चीन संबंध अब निचले स्तर पर हैं, जो किसी के हित में नहीं हैं। विदेश मंत्री जयशंकर ने वांग से कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति में कोई भी एक तरफा बदलाव भारत को स्वीकार्य नहीं है और पूर्वी लद्दाख में पूर्ण शांति के बाद ही संंबंध समग्र रूप से विकसित हो सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन ने सीमाओं पर काफी तैयारी कर रखी है लेकिन भारत ने जबर्दस्त सैन्य शक्ति का प्रदर्शन कर चीन को पीछे हटने को विवश कर दिया। चीन के मंसूबों के बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
कहा जा रहा है कि जब तक चीनी सैनिक हॉटस्प्रिंग और देपसांग से वापिस नहीं चले जाते तब तक तनाव ही रहेगा। इसी बीच चीन को सख्त संदेश देने के लिए भारतीय नौसेना दक्षिण चीन सागर में चार युद्धपोत तैनात कर रहा है, जो अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया जैसे मित्र देशों के साथ संबंध का विस्तार करेगा। भारतीय नौसेना के युद्धपोत क्वाड सदस्य देशों के साथ युद्धाभ्यास भी करेगी। भारत ने हमेशा अन्तर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र में नौवहन की स्वतंत्रता की वकालत की है। भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है, बल्कि एक सशक्त भारत है। भारत इस समय संयुक्त राष्ट्र की अध्यक्षता कर रहा है, पाकिस्तान तो अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर नंगा हो चुका है, अब जरूरत है वैश्विक मंचों पर चीन को बेनकाब करने की। चीन को कूटनीति से ही जवाब दिया जा सकता है।


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