बच्चों को कोरोना वैक्सीन

भारत में वैक्सीन से संबंधित विशेषज्ञ समिति ने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन का दो से 18 साल के बच्चों पर परीक्षण की मंजूरी दी है

Update: 2021-05-13 13:58 GMT

भारत में वैक्सीन से संबंधित विशेषज्ञ समिति ने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन का दो से 18 साल के बच्चों पर परीक्षण की मंजूरी दी है। इस वैक्सीन के तीन चरणों के परीक्षण में कुछ महीने लगेंगे और अगर यह परीक्षण में कसौटी पर खरी उतरी, तो संभव है कि बच्चों को भी टीका लगाने का काम शुरू हो सके। अभी तक सिर्फ अमेरिका में फाइजर मॉडर्ना वैक्सीन को बारह साल से बडे़ बच्चों को लगाने की शुरुआत हुई है, बाकी सभी जगहों पर कोरोना की सारी वैक्सीन सिर्फ वयस्कों को लग रही है। संभव है, और भी कई जगह बच्चों को वैक्सीन लगाने के लिए परीक्षण चल रहे हों, और कुछ अरसे में और देश भी बच्चों को टीका लगाना शुरू कर दें, लेकिन फिलहाल सबका ध्यान मुख्यत: ज्यादा से ज्यादा वयस्कों को टीका लगाने पर है।

जब कोरोना टीकों के लिए जगह-जगह परीक्षण चल रहे थे, तब वे सिर्फ वयस्कों पर ही किए जा रहे थे। इसकी वजह यह थी कि कोरोना महामारी का शिकार तब वयस्क ही ज्यादा हो रहे थे। बच्चों पर इसका असर बहुत कम हो रहा था और अगर उन्हें हो भी रहा था, तो उनका रोग प्रतिरक्षा तंत्र इस बीमारी का सामना बहुत मुस्तैदी से कर ले रहा था, इसलिए उन्हें बहुत मामूली लक्षण हो रहे थे। लेकिन कोरोना की बाद की लहर में बच्चे पहले से ज्यादा बीमार हो रहे हैं, हालांकि उनमें गंभीर लक्षण अब भी ज्यादा नहीं दिख रहे हैं। कुछ बच्चों में जरूर प्रतिरोधक तंत्र के अति सक्रिय होने के कारण गंभीर बीमारी के लक्षण हुए हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है। फिर भी दूरगामी नजरिए से कोरोना के स्थाई नियंत्रण के लिए बच्चों को भी वैक्सीन लगाना महत्वपूर्ण होगा। खास तौर पर टीका लगवाने के बाद उनके स्कूल जाने, अन्य बच्चों के साथ घुलने-मिलने और खेलने-कूदने में दिक्कतें खत्म हो जाएंगी। भले ही बच्चे खुद बीमार कम हुए, लेकिन परोक्ष रूप से इस महामारी की मार उन पर कम नहीं पड़ी है। बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए तो एक साल से ज्यादा वक्त से घर में कैद रहना, हमउम्र बच्चों के साथ खुली हवा में न खेल पाना बहुत बड़ी सजा है, और उनके विकास पर इसका बुरा असर होता है। टीका इन समस्याओं से निजात दिलाने में बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। बच्चों के लिए वैक्सीन का परीक्षण करने की कुछ कठिनाइयां भी हैं और कुछ आसानियां भी। बच्चों के लिए वैक्सीन या किसी दवा का भी सही मात्रा का निर्धारण करना काफी नाजुक मामला होता है। जैसे सभी वयस्कों को लगभग एक ही मात्रा दे सकते हैं, वैसा बच्चों के साथ नहीं होता। अक्सर अलग-अलग उम्र और वजन के बच्चों के लिए अलग-अलग मात्रा की जरूरत होती है। बच्चों में दुष्प्रभावों को लेकर भी ज्यादा सचेत रहना होता है। दूसरी ओर, बच्चों का बेहतर रोग प्रतिरोध तंत्र वैक्सीन को ज्यादा प्रभावशाली बना देता है, इसीलिए बचपन में लगाए गए टीकों का असर बहुत अच्छा होता है। बच्चों में टीके का परीक्षण अच्छी खबर है, लेकिन फिलहाल हमारी समस्या वयस्कों के लिए टीकों की कमी है। वैसे हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि जब तक बच्चों के लिए टीके मंज़ूर होंगे, तब तक टीकों का उत्पादन भी बढ़ जाएगा और कुछ अन्य टीके भी भारत में आ जाएंगे। तब बच्चों को टीका लगवाना इतना कठिन नहीं होगा, जितना फिलहाल वयस्कों के लिए हो रहा है।


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