मोबाइल गेम और तनाव की चपेट में आते बच्चे......कहीं बहुत देर न हो जाए
लखनऊ में पबजी खेलने से रोकने पर नाबालिग बेटे द्वारा मां के कत्ल की वारदात ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
लखनऊ में पबजी खेलने से रोकने पर नाबालिग बेटे द्वारा मां के कत्ल की वारदात ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है. इसके साथ ही बच्चों में मोबाइल गेम खेलने की खतरनाक होती जाती लत को लेकर नए सिरे से सवाल भी खड़े हो रहे हैं. एक अध्ययन के अनुसार, मोबाइल गेम खेलने वाले 95.65 फीसदी बच्चे तनाव की चपेट में आसानी से आ जाते हैं. 80.43 फीसदी बच्चे गेम के बारे में दिन-रात सोचते हैं.
एक समय था कि बच्चे क्रिकेट, लूडो, शतरंज खेलने, पतंग उड़ाने, पार्क में खेलने के दीवाने थे. मोबाइल गेम की लत लगने के बाद सब छूट गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जून 2018 में ऑनलाइन गेमिंग को एक मानसिक स्वास्थ्य विकार घोषित किया था. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 'गेमिंग डिसऑर्डर' का दूसरी दैनिक गतिविधियों पर भी प्रभाव पड़ता है.
डब्ल्यूएचओ ने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज के ताजा अपडेट में यह भी कहा कि गेमिंग कोकीन और जुए जैसे पदार्थों की लत जैसी हो सकती है. कई ऑनलाइन गेम्स हैं जो अपने रोमांचक एक्शन और ग्राफिक्स के साथ बच्चों और युवाओं को खूब लुभाते हैं. इसकी जद में खास कर बच्चे आते हैं. मोबाइल की लत से बच्चों के व्यवहार पर सबसे बुरा असर पड़ रहा है.
बच्चे हिंसक व्यवहार करने लगे हैं, मनोवैज्ञानिक इसे मोबाइल के अधिक प्रयोग होने से होने वाला बिहैवियर कंडक्ट डिसऑर्डर बताते हैं. गन शॉट वाले गेम खेलने के दौरान जब वे किसी को शूट करते हैं तो उन्हें लगने लगता है कि वे सब कुछ कंट्रोल कर सकते हैं. देखने में आता है कि छोटे बच्चों को बहलाने के लिए मां मोबाइल थमा देती हैं. बच्चों के साथ संवाद की कमी अभिभावकों से उन्हें दूर कर रही है.
90 प्रतिशत अभिभावक मोबाइल देने के बाद ये नहीं देखते है बच्चे उसमें क्या कर रहे हैं. बदलते परिवेश में माता-पिता दोनों ही नौकरीपेशा होते हैं. ऐसे में उनके पास समय का अभाव होता है. मां-बाप समय नहीं दे पाते तो उनकी हर मांग को पूरा कर देते हैं. मोबाइल गेम खेलने की आदत एक दिन में नहीं पड़ती. सबसे पहले बच्चे छोटे गेम खेलते हैं. फिर बैटल गेम खेलते हैं. आगे चलकर पैसे कमाने वाले गेम खेलते हैं.
ऑनलाइन गेम इंडस्ट्री में भारत दुनियाभर में चौथे नंबर पर है. देश में 60 फीसदी से ज्यादा ऑनलाइन गेम खेलने वाले 24 साल से कम उम्र के हैं. गेम की लत और अभिभावकों की अनदेखी बच्चों के हिंसक होने का एक कारण है. गेम की लत लगने पर उनका खुद से नियंत्रण खत्म हो जाता है. ऐसे में अगर उन्हें रोकने की जबरदस्ती की जाए तो वे प्रतिक्रिया देने लगते हैं. ये हिंसक हो सकती है, जैसा कि लखनऊ वाले मामले में हुआ. बच्चों के साथ जबरदस्ती बिल्कुल न करें.
जरूरी है कि आप बच्चों के लिए एक सीमा तय करें कि उन्हें कितने समय के लिए गेम खेलना है और बाकी समय में क्या काम करना है. बच्चे के साथ डांट-डपट या मारपीट न करें, ऐसा करने से वो और जिद्दी और हिंसक हो जाएगा. याद रखें, लत कोई भी हो, तुरंत नहीं जाती. इनसे निपटने का एक ही तरीका है- प्यार, धैर्य और समझदारी.