बचपन निगलता इंटरनेट
भारत में इंटनेट को आए सत्ताईस साल पूरे होने को हैं। 15 अगस्त, 1995 को देश में पहली बार इंटरनेट का इस्तेमाल शुरू हुआ था। इंटरनेट हमारी दिनचर्या में पूरी तरह घुल-मिल गया है।
Written by जनसत्ता: भारत में इंटनेट को आए सत्ताईस साल पूरे होने को हैं। 15 अगस्त, 1995 को देश में पहली बार इंटरनेट का इस्तेमाल शुरू हुआ था। इंटरनेट हमारी दिनचर्या में पूरी तरह घुल-मिल गया है। आज इसके बिना जीवन अधूरा लगता है। दुनिया भर में दिन-प्रतिदिन इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ता ही जा रहा है।
कुछ साल पहले तक इंटरनेट केवल बड़े (वयस्क) अपने काम के लिए करते थे, पर अब यह बड़ों से बच्चों के हाथों में पहुंच गया है। इंटरनेट निश्चित ही प्रगति और विकास का सूचक है, पर मोबाइल के नौनिहालों के हाथ में पड़ जाने से यही विकास विनाश की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है।
बच्चों के हाथ में मोबाइल देखकर आश्चर्य होता है। दोष बच्चे को दें या उनके मां-बाप को, यह सोचने की बात है। इसका कोई अंत भी नहीं है। घर में खाने को दाने नहीं, मगर स्मार्ट फोन हाथ में अवश्य आ गया है।
कोरोना काल में आनलाइन शिक्षा के नाम पर बच्चों के हाथों में मोबाइल थमाया गया। इसी के साथ बच्चे आभासी दुनिया में खो गए। पढ़ाई का झुनझुना खत्म होते ही बच्चों के हाथ तरह-तरह के गेम लग गए हैं।
अब गेम ही उनकी दुनिया हो गई है। आनलाइन गेम खेलने में व्यस्त बच्चे खाना-पीना तक भूलने लगे। इस कारण वे इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन का शिकार हो रहे हैं। यह समस्या घर-घर की हो रही है।
आज स्थिति यह है कि बच्चों के हाथ से मोबाइल छीनते ही वे बेचैनी महसूस करते हैं, गुस्से से भर जाते हैं, चिड़चिड़े हो जाते हैं, घर के किसी काम में रुचि नहीं लेते हैं। अभिभावकों के लाख टोकने और डांटने का भी उन पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। गेमिंग का यह चक्रव्यूह बच्चों का भविष्य कहां लेकर जाएगा, यह कोई बताने की स्थिति में नहीं है।