राष्ट्रीय सुरक्षा पर सस्ती राजनीति: पश्चिम बंगाल ने भी बीएसएफ के क्षेत्रधिकार बढ़ाने की अधिसूचना को किया खारिज
पिछले दो दशकों से पंजाब में नशाखोरी बढ़ती जा रही है
रसाल सिंह। पंजाब की देखा-देखी पश्चिम बंगाल विधानसभा ने भी प्रस्ताव पारित करके 'सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ के क्षेत्रधिकार बढ़ाने संबंधी केंद्र सरकार की अधिसूचना' को खारिज कर दिया। इस अधिसूचना द्वारा सीमावर्ती राज्यों-पंजाब, राजस्थान, गुजरात, असम और बंगाल आदि में सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्रधिकार को एकसमान किया गया है। पंजाब और बंगाल सरकारों का यह विरोध अपना उल्लू सीधा करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौते और केंद्र-राज्य संबंधों को तनावपूर्ण बनाने की स्वार्थप्रेरित राजनीति का नायाब उदाहरण है। यह विडंबना ही है कि इन दोनों सरकारों ने कानून-व्यवस्था को राज्य सूची का विषय बताकर केंद्र सरकार के इस निर्णय को संघीय ढांचे पर चोट बताया है।
तथ्य यह है कि 2011 में तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने भी इस आशय का एक विधेयक संसद में प्रस्तावित किया था। क्या तब कांग्रेस पार्टी को यह नहीं पता था कि यह विषय राज्य-सूची में है? सीमा सुरक्षा बल अधिनियम,1969 इंदिरा गांधी सरकार ने लागू किया था। क्या तब संघीय ढांचे को ठेस नहीं पहुंची थी? दरअसल तात्कालिक लाभ के लिए किए जा रहे इस विरोध से कांग्रेस का छद्म चरित्र उजागर होता है। विपक्ष द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून-व्यवस्था को गड्डमड्ड करके यह गफलत पैदा की जा रही है। विधानसभा में इस प्रकार का प्रस्ताव पारित करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया, व्यवस्था और संस्थाओं का दुरुपयोग है। यह अत्यंत दुखद है कि राज्य विधायिका और कार्यपालिका केंद्रीय विधायिका और कार्यपालिका से टकराव पर आमादा हैं।
बीएसएफ संबंधी अधिसूचना जारी करने से पहले केंद्रीय गृहमंत्री ने संबंधित राज्यों से इस विषय पर चर्चा की थी। इसलिए पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी शुरू में खामोश थे। जब आम आदमी पार्टी और अकाली दल ने उनपर 'आधे से अधिक पंजाब मोदी सरकार को देने' और 'पंजाब के हितों को गिरवी रखने' जैसे आरोप लगाए तब उन्होंने सर्वदलीय बैठक और विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस अधिसूचना को खारिज करने की चाल चली। पंजाब में इस मुद्दे के राजनीतिकरण का एक कारण उसका आंतरिक सत्ता संघर्ष भी है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मोदी के विरोध का अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहती थीं। वह पहले भी केंद्र सरकार से टकरा चुकी हैं। जब केंद्र ने बंगाल में राजनीतिक हिंसा की सीबीआइ जांच की पहल की तो ममता सरकार ने सीबीआइ जांच की 'सामान्य सहमति' को खारिज कर दिया। उसकी देखादेखी राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र, झारखंड, पंजाब आदि विपक्ष शासित राज्यों ने भी ऐसा ही किया। इसी तरह ममता सरकार ने पेगासस जासूसी प्रकरण की एकतरफा न्यायिक जांच शुरू करा दी थी।
पिछले दो दशकों से पंजाब में नशाखोरी बढ़ती जा रही है। 'उड़ता पंजाब' जैसी फिल्मों में इस समस्या की भयावहता दशाई गई है। पड़ोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान से मादक पदार्थों की तस्करी इसकी बड़ी वजह है। पंजाब तस्करी का सबसे सुगम रास्ता रहा है। भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 और 35ए की समाप्ति से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता कब्जाने से उसके हौसले बुलंद हैं। पाकिस्तान और तालिबान का याराना जगजाहिर है। मरणासन्न आतंकवाद में नई जान फूंकने के लिए उसने मादक पदार्थों, हथियारों और नकली नोटों की तस्करी बढ़ा दी है। तस्करी के लिए वह 50 किमी तक की क्षमता वाले विकसित ड्रोनों का प्रयोग कर रहा है। मादक पदार्थों, हथियारों और नकली नोटों की पाकिस्तान संचालित तस्करी को रोका जाना अत्यंत आवश्यक है। यह तस्करी देश की युवा पीढ़ी के भविष्य और राष्ट्रीय एकता-अखंडता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। बंगाल और असम जैसे प्रदेशों में म्यांमार और बांग्लादेश से घुसपैठ की घटनाएं होती हैं। पुलिस राज्य सरकार के अधीन होती है। इसलिए सीमा पर होने वाली अवैध गतिविधियों को रोकने में उसे स्थानीय दबाव और राजनीतिक हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्रधिकार को बढ़ाया जाना अपरिहार्य था।
केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना ने सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्रधिकार में एकरूपता भी स्थापित की है। पहले पंजाब, असम, बंगाल में अंतरराष्ट्रीय सीमा से 15 किमी तक, राजस्थान में 50 किमी तक, गुजरात में 80 किमी तक और जम्मू-कश्मीर और पूवरेत्तर के राज्यों में पूरे भू-भाग में सीमा सुरक्षा बल का अधिकार क्षेत्र था। अब पंजाब, असम, बंगाल, गुजरात और राजस्थान में सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्रधिकार को 50 किमी करते हुए एकसमान किया गया है। जबकि जम्मू-कश्मीर और पूवरेत्तर के राज्यों में उसे यथावत रखा गया है। इस अधिनियम के अनुभाग 139 के तहत सीमा सुरक्षा बल के जवान अपने क्षेत्रधिकार में तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी कर सकते हैं। मुकदमा दर्ज करने और चलाने का अधिकार राज्य पुलिस को ही है। सीमा सुरक्षा बल के उपरोक्त क्षेत्रधिकार में भी कानून-व्यवस्था राज्य पुलिस के नियंत्रण में ही रहती है। इसलिए पुलिस के अधिकार कम होने या उसके अधिकार क्षेत्र के अतिक्रमण की आशंका और आरोप निराधार हैं। सुरक्षा बल राज्य पुलिस का सहयोग ही करेंगे। इससे सीमापार से होने वाली अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगेगा। केंद्र सरकार की इस पहल से राज्य पुलिस पर काम का बोझ थोड़ा कम होगा और उसकी कार्यक्षमता बढ़ेगी। कानून-व्यवस्था पर पूरा ध्यान केंद्रित करते हुए उसे राज्य में अमन-चैन कायम करने में सहूलियत ही होगी।
(लेखक जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)