व्यवस्था का कहर

Update: 2023-06-27 19:02 GMT
By: divyahimachal  
मानसून का बरसना सुखद भी है और तबाही भी है। किसानों के 15 करोड़ से अधिक परिवारों के लिए ‘संजीवनी’ भी है, क्योंकि आज भी खेती बरसात की धार पर आश्रित है। किसान अक्सर आसमान की ओर टुकुर-टुकुर देखता रहता है, जब मानसून देरी से आता है। मानसून का मानवीय आयाम बेहद भयावह भी है। अब बरसात के मौसम में पहाड़ टूटते हैं। भू-स्खलन होते हैं, तो प्रलय-सा सैलाब भी आता है। आपदा के साथ विनाश भी बरसता है। सडक़ें तालाब बन जाती हैं। पानी के जबरदस्त बहाव से घर टूट जाते हैं या कच्चे, पुराने मकान सैलाब में बह जाते हैं। राजधानी के नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर, बरसात के पानी में, करंट दौडऩे लगता है, नतीजतन एक 35 वर्षीय महिला की वहीं मौत हो जाती है। एक घर अनाथ हो गया! मानसून ने तो नहीं चाहा था। वह तो हर साल बरसता है। महानगरों में जल-भराव इतना हो जाता है कि सडक़ और गड्ढे का फर्क गायब हो जाता है। दुर्घटनाएं और मौत बिन बुलाए आती हैं।
जिंदगी और रवानगी ठहर जाती हैं। अब मानसून मूसलाधार बरसता है, लिहाजा असम राज्य में 2 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ की चपेट में हैं। करीब 5 लाख लोग बारिश और बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। वहां 1200 से अधिक गांव डूब चुके हैं। चारों ओर तबाही का मंजर है। यह असम की नियति है, जो कई दशकों से जारी है। साल में छह माह असम बाढग़्रस्त रहता है। शेष छह माह खुद को संभालने, जीवन को पटरी पर लाने की मशक्कत में गुजर जाते हैं, लेकिन उसके बाद भी बर्बादी और बिखरना…! बाढ़ और आपदा राहत के नाम पर बजट खर्च कर दिया जाता है और फिर अगली तबाही का इंतजार किया जाता है। यही हमारी सरकारी व्यवस्था है। मानसून की अभी तक की बारिश में, देश भर में, 30-35 मौतें हो चुकी हैं। यह आंकड़ा घोषित है, अघोषित यथार्थ की कोई जानकारी नहीं है। अब मूसलाधार बारिश ऐसी होती है मानो मानसून तीन महीने का नहीं, कुछ ही दिनों के लिए बरसेगा! फिर बहुत कुछ तबाह कर, बिखेर कर या विनाश कर लौट जाएगा। ऐसे मौसम की जरूरत क्या है? यह जलवायु-परिवर्तन का असर है। बेशक आप मौसम की इस अवधारणा को स्वीकार न करें, लेकिन पूरा विश्व चिंतित है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भयातुर विमर्श किए जा रहे हैं। भारत में मानसून की अभी तो शुरुआत है, लेकिन मौसम विभाग ने 11 राज्यों-पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, हरियाणा, पश्चिमी उप्र, राजस्थान, मप्र, छत्तीसगढ़, केरल, महाराष्ट्र और गुजरात-में अलग-अलग स्तर के अलर्ट जारी किए हैं। कुछ भी अनहोनी, अनिष्ट घट सकता है! इन राज्यों में मध्यम से भारी बारिश हुई, तो तबाही के नए मंजर सामने आएंगे। दुर्भाग्य है कि हमारी व्यवस्था, सरकारों, अधिकारियों ने बारिश और बाढ़ के कहर से कोई सबक नहीं सीखा है। व्यवस्था बारिश को कुदरत का प्रकोप मान कर अपना दायित्व निभा लेती है। ‘आपदा’ करार देकर बचने की कोशिश की जाती है। शहरों और गांवों में डे्रनेज बंद पड़े रहते हैं। उनकी सफाई सालों-साल नहीं की जाती, अलबत्ता उसके नाम के मोटे-मोटे खर्च दिखा दिए जाते हैं। आखिर भ्रष्टाचार भी तो होना चाहिए न! महानगरों में भी गली-सड़ी व्यवस्थाएं हैं। आखिर कब तक हमारे शहर-गांव डूबते रहेंगे? क्या ऐसे मुद्दे पर कभी, कोई चुनावी शोर सुना है? क्या इन समस्याओं पर कोई जनादेश दिया गया है? बारिश और बाढ़ हर साल आती हैं। फिर उन्हें रोकने के बंदोबस्त क्यों नहीं किए जाते? देश में विकास के नाम पर राजनीति की जाती रही है, लेकिन हमारी सरकारों, दलों और नेताओं को शायद यह जानकारी नहीं है कि बेलगाम बारिश और बाढ़ विकास को औसतन 3 फीसदी सालाना पीछे धकेल देती हैं! शायद इसीलिए बारिश और बाढ़ के प्रबंधन पर कोई सार्थक काम नहीं किया जाता। अभी मानसून देश के पूर्वी, मध्य, उत्तर-पश्चिम और पश्चिमी राज्यों में 5 दिन लगातार सक्रिय रहेगा, जाहिर है कि बरसात भी होगी।

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