पुस्तकालयों की बदलती भूमिका
कुछ ऐसे विषय हैं जिनके ऊपर अगर कभी सुर्खी बनती है, तो ताज्जुब होता है
कुछ ऐसे विषय हैं जिनके ऊपर अगर कभी सुर्खी बनती है, तो ताज्जुब होता है। धर्मशाला में अनुसूचित जाति कल्याण बोर्ड की बैठक में सरकार की उदारता से अब हर जिला के किसी न किसी पुस्तकालय का नाम संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर से जोड़ा जाएगा। डा. भीमराव अंबेडकर के नाम से किसी संस्था का नाम जुड़ना सुखद है, लेकिन इसके साथ अगर उद्देश्यपूर्ण ढंग से पुस्तकालयों की कार्यप्रणाली भी सुधरती है तो यह सोने पे सुहागा होगा। यह विषय नाम से कहीं आगे डा. भीमराव अंबेडकर के साथ जुड़ने वाले पुस्तकालय को एक अलग ढंग से पेश करने का भी होना चाहिए। अमूमन भारतीय महापुरुषों के साथ संस्थाएं, संस्थान और इमारतें तो जोड़ दी जाती हैं, लेकिन उनकी खासियत में कुछ नहीं जोड़ा जाता। ऐसे में पुस्तकालयों के मौजूदा वजूद को अगर नए परिप्रेक्ष्य में पेश करते हुए इन्हें आइंदा अंबेडकर लाइब्रेरी कहा जाए तो इसके साथ उच्च गुणवत्ता की गारंटी भी होनी चाहिए। हिमाचल में पिछले दो दशक से पुस्तकालयों के प्रति युवाओं का रुझान कहीं अधिक सार्थक हुआ है। धीरे-धीरे ये स्टडी सेंटर के रूप में अंगीकार हो रहे हैं। दिव्य हिमाचल ने एक सर्वेक्षण में पाया कि राज्य के कई जिला पुस्तकालय अब युवा करियर की पनाह बन चुके हैं, जहां छात्र समुदाय सुबह सात बजे से देर रात्रि तक बैठना पसंद करता है। इतना ही नहीं, पूरे प्रदेश में निजी तौर पर ही दर्जनों पुस्तकालय खुल रहे हैं। ऐसे में सरकार अगर चाहे तो आगामी बजट में अंबेडकर के नाम पर ऐसे पुस्तकालयों की नींव रख सकती है, जो आगे चलकर हिमाचली बच्चों को तमाम राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी और राष्ट्रीय प्रशासनिक व अन्य सेवाओं में प्रवेश के लिए तैयार कर सके।
धीरे-धीरे पुस्तकालय की अवधारणा बदल रही है और अध्ययन की तकनीकी जरूरतें भी। आज का पुस्तकालय केवल किताबों का जमघट नहीं, बल्कि अध्ययन का माहौल और ज्ञान को छूने का रास्ता है, जहां एक साथ सैकड़ों छात्र बैठ सकें। धर्मशाला के जिला पुस्तकालय में युवा अपनी सीट मुकर्रर करने के लिए सुबह-सुबह कतारबद्ध हो जाते हैं, तो इसके मायने समझे जा सकते हैं। प्रदेश में किसी स्कूल या कालेज बनाने से कहीं अधिक बेहतर होगा कि हम नए आधार पर पुस्तकालयों का निर्माण करके इनका उपयोग स्टडी सेंटर के रूप में करें। ऐसे पुस्तकालयों का संचालन पुस्तकालय अध्यक्ष के बजाय करियर निदेशक के तहत किया जाए और जहां बच्चों की काउंसिलिंग तथा मार्गदर्शन किया जाए। पुस्तकालय के साथ लेक्चर रूम बनाकर विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ परिचर्चाएं कराई जा सकती हैं। पुस्तकालयों के नए प्रारूप में यह आवश्यक होगा कि औपचारिक शिक्षा के बाद युवा अपने व्यक्तित्व विकास का सामर्थ्य हासिल करें। किस तरह करियर या रोजगार के दबाव को कम करते हुए किताबों से इतर खुद को शरीक किया जाए और इसके लिए गीत, संगीत, योग, शारीरिक कसरतें और खेलों का योगदान हो सकता है, इसके ऊपर भी गतिविधियां जोड़ी जा सकती हैं। कहना न होगा कि पुस्तकालयों को नाम से अलंकृत करने से राजनीतिक तुष्टि हो सकती है, लेकिन इन्हें वास्तव में अलग करके दिखाना है, तो अंबेडकर पुस्तकालय के तहत नए शिखर बनाने होंगे। विडंबना यह भी है कि स्कूल व कालेजों के शैक्षणिक स्तर व पाठ्यक्रमों की रफ्तार ने पुस्तकालयों का महत्त्व गौण कर दिया है, जबकि उपाधियों के बाद युवाओं को महसूस होने लगा है कि लाइब्रेरी मानसिक उत्थान की सबसे अहम कार्यशाला है। हम सरकार से आग्रह करेंगे कि प्रदेश में करियर और काम्पीटिशन लाइब्रेरियों की दिशा में आगे बढ़ते हुए वर्तमान जिला पुस्तकालयों को अंबेडकर के नाम से ऐसे सदन में परिवर्तित करें, जो युवाओं के भविष्य और चुनौतियों का समाधान कर सकें। जिला अंबेडकर पुस्तकालय की शुरुआत से न केवल अध्ययन केंद्र विकसित होंगे, बल्कि युवाओं को अपने व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ मानसिक संतुलन के लिए भी मार्गदर्शन मिलेगा।
दिव्यहिमाचल के सौजन्य से