राजनीति की बदलती तासीर
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी अदित्यानाथ ने अपने मंत्रियों को घूमना-फिरना बंद कर विकास कार्यों का लक्ष्य थमा दिया है
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी अदित्यानाथ ने अपने मंत्रियों को घूमना-फिरना बंद कर विकास कार्यों का लक्ष्य थमा दिया है। इसी प्रकार मंत्रियों के लिए लग्जरी गाड़ियां खरीदने पर पाबंदी लगाई गई। नि:संदेह योगी सरकार का यह निर्णय समय की आवश्यकता और राजनीतिक बदलाव का आधार बन सकते हैं। इसी प्रकार का बदलाव पंजाब में प्रचंड बहुमत से बनी आम आदमी पार्टी सरकार में देखा जा रहा है। भगवंत मान ने मुख्यमंत्री का पद संभालते ही विधायकों को चंडीगढ़ की बजाय अपने-अपने हलकों में रहकर काम करने की हिदायत दी है। इस हिदायत से मान ने विधायकों को यह इशारा दिया है कि यदि विधायक ने लोगों की उम्मीदों अनुसार काम न किया तब अगली बार वह टिकट की उम्मीद न रखें।
आप सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल ने पंजाब के मंत्रियों को स्पष्ट कहा है कि यदि किसी ने एक भी पैसा खाया तो मंत्री हटा दिए जाएंगे। ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में योगी अदित्यानाथ कर रहे हैं। सवाल बड़ा यह है कि क्या दोनों मुख्यमंत्रियों के निर्णयों को उनकी अपनी, पार्टियों के विधायक और वर्कर हजम कर सकेंगे। सामान्य रूप में पहले यही होता आया है कि सरकार बनते ही सत्तापक्ष के नेता और वर्कर ही गैर-कानूनी कार्यों को अंजाम देते हैं। यही कारण है कि कानून लागू करने में दिक्कतें आती रही हैं। पंजाब में पिछली सरकारों में नशा तस्करी, गैर-कानूनी माइनिंग, भ्रष्टाचार सहित कई मामलों में मंत्री तक घिरे रहे। अत: सत्तापक्ष दलों का हाल यह हुआ कि अगले चुनाव में उन्हें करारी हार के लिए विरोधी पार्टियों को मेहनत नहीं करनी पड़ी और सत्तापक्ष को हार के रूप में अपने ही गुनाहों की सजा भुगतनी पड़ी। वास्तव में सरकार की निष्पक्ष, स्पष्ट और ठोस नीतियों और कार्रवाईयों से ही सुधार होगा। यदि सत्तापक्ष के नेताओं पर गलत कार्य करने पर कार्यवाही होगी फिर ही आम लोगों में सरकार प्रति विश्वसनीयता बनेगी।
पंजाब और उत्तर प्रदेश में राज्य सरकारों ने स्पष्ट और जनता के हित में निर्णय उठाए हैं। दोनों सरकारों को अपने सिद्धांतों और फैसलों पर पूरी वचनबद्धता से काम करना होगा। गलत कार्य करने वाले अपने-बेगाने बख्शें न जाएं। वास्तव में राजनीति को स्वच्छ और भ्रष्टाचारमुक्त बनाने की आवश्यकता है। विगत समय में राजनीति केवल सत्ता भोगने, पद की लालसा और लग्जरी सुविधाओं तक सीमित रह गई थी। लोग ऐसी राजनीति से उदासीन हो गए थे, विशेष तौर पर शहरी क्षेत्रों में तो लोग वोट तक भी नहीं डालते थे। राजनीति को नफरत के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा था। नेताओं और आम लोगों की दो अलग-अलग दुनिया बन गई थी। वास्तव में राजनीति जनता की सेवा का नाम है, जहां कथनी-करनी को एक सामान रूप से कायम करना होगा।
By सच कहूँ न्यूज