अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती

ये प्रक्रिया धीमी गति से आगे बढ़ रही थी, लेकिन अब अचानक इसने दुनिया का ध्यान खींचा है।

Update: 2021-06-07 03:20 GMT

ये प्रक्रिया धीमी गति से आगे बढ़ रही थी, लेकिन अब अचानक इसने दुनिया का ध्यान खींचा है। दुनिया में देशों की एक धुरी उभरी है, जो विश्व आर्थिक व्यवस्था को अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व से मुक्त करने की ठोस रणनीति पर चल रहे हैं। ये रणनीति अब एक खास मुकाम पर पहुंच गई है। रूस ने पिछले हफ्ते एलान किया कि वह अपने सॉवरेन वेल्थ फंड को डॉलर से पूरी तरह मुक्त करने जा रहा है। सॉवरेन वेल्थ फंड सरकारी निवेश कोष को कहा जाता है। किसी देश में व्यापार मुनाफे से जो रकम बचती है, उसके एक हिस्से को सरकारें इस कोष में निवेश के लिए रखती हैं। इसके पहले चीन, रूस और ईरान के बीच अपना सारा कारोबार अपनी मुद्राओं के जरिए करने का फैसला हो चुका है। इसी क्रम में रूस का ये खुलान एलान आया कि रूस अपने सॉवरेन वेल्थ फंड में डॉलर के हिस्से को घटा कर शून्य कर देगा। लक्ष्य यह है कि इस काम को जुलाई खत्म होने के पहले पूरा कर लिया जाए। रूस का केंद्रीय बैंक पहले ही डॉलर में अपने निवेश को घटाने में जुटा हुआ है।

रूस ने कहा है कि अमेरिका पर वित्तीय निर्भरता घटाने का काम सिर्फ रूस ही नहीं, बल्कि बहुत से दूसरे देश भी कर रहे हैं। ऐसा उन देशों ने अपने अनुभव और अमेरिका की विश्वसनीयता पर उठे शक के बाद करना शुरू किया। इस कोशिश में जुटे देशों का मानना है कि अमेरिकी मुद्रा में कारोबार करना अब आसानी के बजाय घाटे का सौदा हो गया है। अमेरिका प्रतिबंध लगाकर एक अनिश्चित स्थिति पैदा कर देता है। इसलिए चीन, रूस, ईरान, वेजेजुएला, क्यूबा
आदि जैसों में अब राय बनी है कि डॉलर पर निर्भर रहने का मतलब लेन-देन में बाधा और आर्थिक नुकसान झेलने के लिए तैयार रहना हो गया है। तो अब वैकल्पिक तरीके विकसित करना इन देशों का अहम अंतरराष्ट्रीय एजेंडा बन गया है। गौरतलब है कि ये एलान करने वाला पहला देश भी रूस ही बना है कि वह एक 'नई विश्व व्यवस्था' बनाने की कोशिश में जुटा हुआ है। उसने ये राय जताई है कि मौजूदा विश्व विधि व्यवस्था बिखर रही है। अब एक नया शीत युद्ध शुरू हो गया है, जिसमें अलग-अलग देश किसी एक पक्ष से जुड़ने को मजबूर हो रहे हैं। जाहिर है, दुनिया एक बिल्कुल नई परिस्थिति के द्वार पर खड़ी हो गई है।


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