आपातकाल के एक फैसले का जश्न मनाया जाना चाहिए। भले ही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार यह दोहराना न भूले कि इस काले दौर के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है और उसने 25 जून को संविधान हत्या दिवस भी घोषित किया है, लेकिन केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने शिक्षा को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में डालने के 1976 के फैसले का समर्थन किया। आजादी के बाद से चली आ रही व्यवस्था ने संघवाद को कायम रखा। व्यावहारिक स्तर पर इसने राज्यों को क्षेत्रीय, जातीय और भाषाई रूप से विविधतापूर्ण देश में युवाओं को उनकी जरूरतों के हिसाब से शिक्षित करने के लिए अपना रास्ता बनाने की अनुमति दी। शिक्षा को समवर्ती सूची में डालने का मतलब था राज्यों और केंद्र के बीच सहयोग, जो एक अच्छी बात हो सकती है अगर केंद्रीय हस्तक्षेप राज्यों की समझ और व्यवहार के साथ संतुलित हो। लेकिन अगर केंद्र की सरकार एक ही व्यवस्था बनाने के नाम पर विचार, नीति और पद्धति की पूरी जगह हड़पने की कोशिश करती है, तो सहमति का बिंदु विफल हो जाएगा और राज्यों की स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी।
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