थोक भाव से मृत्युदंड

साल 2008 में अहमदाबाद में हुए धमाकों के 49 दोषियों में से 38 को मौत की सजा सुनाई गई है

Update: 2022-02-21 08:21 GMT
By NI Editorial
इतने थोक भाव से मृत्यु दंड सुनाना क्या किसी आधुनिक न्याय व्यवस्था में अपेक्षित है। मृत्यु दंड को लेकर दुनिया काफी बहस हुई है। सभ्यता के विकास के साथ यह समझा गया है कि सजा का मकसद प्रतिशोध नहीं, बल्कि भविष्य के लिए बेहतर स्थिति निर्मित करना होता है। Ahmedabad blasts sentenced death
साल 2008 में अहमदाबाद में हुए धमाकों के 49 दोषियों में से 38 को मौत की सजा सुनाई गई है। एक विशेष अदालत ने इस फैसले के साथ साथ बाकी 11 दोषियों को मृत्यु तक कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने इतनी कठोर सजा सुनाई, तो यह माना जा सकता है कि इसके लिए उसके पास ठोस सबूत होंगे। गौरतलब है कि 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में कई स्थानों पर करीब 70 मिनटों के अंदर कुल 22 बम धमाके हुए थे। उनमें 56 लोग मारे गए और करीब 200 लोग घायल हो गए थे। 78 लोगों पर इन धमाकों में शामिल होने का आरोप लगा था। इसी साल आठ फरवरी को इस मामले में सुनवाई को जल्दी पूरी करने के लिए नियुक्त की कई विशेष अदालत ने 78 में से 49 को दोषी पाया। अदालत ने इन 49 में से 48 दोषियों के ऊपर प्रति व्यक्ति 2.85 लाख रुपयों का जुर्माना भी लगाया है। इसके अलावा उन्होंने गंभीर रूप से घायल लोगों को 50,000 रुपए और कम गंभीर रूप से घायल लोगों को 25,000 रुपए हर्जाना दिए जाने का भी आदेश दिया है। अभी हमें यह जानने के लिए इंतजार करना पड़ेगा कि जिन लोगों को सजा सुनाई गई है, उनमें किसने उस कांड को अंजाम देने में क्या भूमिका निभाई थी।
अगर मृत्यु दंड पाए सभी लोगों ने साजिश रचने और उसे अंजाम देने में समान भूमिका निभाई, तो इसे उचित ही माना जाएगा कि उन्हें एक जैसी सजा मिले। लेकिन आम तौर पर ऐसी घटनाओं में कुछ लोग षड्यंत्रकारी होते हैं और बाकी लोग उनके फुट सोल्जर (यानी उनके निर्देश पर साजिश को अंजाम देने वाले) होते हैँ। आधुनिक न्याय व्यवस्था में अपराध की डिग्री (यानी मात्रा) सजा तय करने का एक पैमाना होती है। यानी भले लोग एक ही अपराध में शामिल हों, लेकिन उनमें किसकी भूमिका कितनी संगीन थी, उसे सजा तय करने का पैमाना बनाया जाता है। बहरहाल, इस मामले में हो सकता है कि सबकी हिस्सेदारी समान रही हो। फिर भी यह सवाल उठेगा कि इतने थोक भाव से मृत्यु दंड सुनाना क्या किसी आधुनिक न्याय व्यवस्था में अपेक्षित है। मृत्यु दंड को लेकर दुनिया काफी बहस हुई है। सभ्यता के विकास के साथ यह समझा गया है कि सजा का मकसद प्रतिशोध नहीं, बल्कि भविष्य के लिए बेहतर स्थिति निर्मित करना होता है। इसीलिए अधिकांश विकसित देशों में इस सजा को खत्म कर दिया गया है।
नया इण्डिया के सौजन्य से लेख
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