भारत सरकार ने कनाडा को वहां बढ़ रही भारत-विरोधी ताकतों के खिलाफ चेतावनी दी थी। लेकिन कनाडा सरकार ने खालिस्तान जनमत संग्रह को अपने देश के कानूनी मानकों के भीतर शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक बताकर रोकने से इनकार कर दिया। चिंता की बात यह है कि अकेले कनाडा में ही नहीं, बल्कि कट्टरपंथी खालिस्तानी तत्व पूरे उत्तरी अमेरिका और यूरोप में भी अपनी विचारधारा के लिए राजनीतिक समर्थन पाने की कोशिश कर रहे हैं। विश्व सिख संगठन और सिख्स फॉर जस्टिस जैसे खालिस्तान समर्थक संगठनों की गतिविधियों के विश्लेषण से खालिस्तान मकसद के पुनरुद्धार के लिए धन संग्रह और सोशल मीडिया प्रचार जैसे प्रयासों का खुलासा हुआ है। एक सहानुभूतिपूर्ण राजनीतिक दृष्टिकोण ने सिख कट्टरपंथियों को 1984 के दंगों को 'नरसंहार' के रूप में घोषित करने, सिख समुदाय के आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए जनमत संग्रह करने और यहां तक कि खुले तौर पर भारत की आलोचना करने के लिए प्रोत्साहित किया है। कुछ भारतीय मूल के सांसदों ने खालिस्तान से जुड़े मुद्दों को उठाने से इनकार कर दिया है।
इससे पहले अगस्त में सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास की दीवारों पर खालिस्तान के नारे लिखे पाए गए थे, यह घटना तब हुई, जब भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के मद्देनजर प्रतिबंधित खालिस्तानी समूह ने एक भड़काऊ बयान जारी किया। भारत में स्वतंत्रता दिवस समारोह से पहले, खालिस्तानी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू ने हाल ही में प्रमुख स्थानों पर खालिस्तानी झंडा फहराने के लिए नकद इनाम की घोषणा की। विदेशों में गुरुद्वारों से आने वाले धन ने पंजाब में अलगाववादी प्रयासों को आवश्यक ईंधन प्रदान किया है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका में बैसाखी और सिखों के अन्य महत्वपूर्ण त्योहारों पर प्रवासी सिखों द्वारा गुरुद्वारों में किए गए असंख्य दान को सामाजिक कल्याण गतिविधियों की आड़ में पंजाब के खालिस्तान समर्थक संगठनों की ओर मोड़ दिया गया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने ऐसे ही एक मामले में बब्बर खालसा अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी समूह से जुड़े सिख ऑर्गेनाइजेशन फॉर प्रिजनर वेलफेयर का पर्दाफाश किया है। इन संगठनों ने धन के प्रवाह को बनाए रखने के लिए नए तरीके ईजाद कर लिए हैं, जिनमें हवाला और कूरियर नेटवर्क का उपयोग शामिल है।
खालिस्तान समर्थक गतिविधि ने फिर से 2014 में तब गति पकड़ी, जब दमदमी टकसाल ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मारे गए जरनैल सिंह भिंडरावाले और अन्य आतंकवादियों के लिए स्वर्ण मंदिर परिसर में एक स्मारक बनाया। राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के मुखर विरोध के बावजूद वे इस स्मारक के मुद्दे पर अड़े रहे। समय के साथ ये आपत्तियां समाप्त हो गईं। आज स्थिति यह है कि अकाल तख्त (जो सिख धर्म का सर्वोच्च स्थान है) के बगल में स्थित इस स्मारक पर रुके बिना स्वर्ण मंदिर की यात्रा अधूरी मानी जाती है। खालिस्तान की मांग दोहराने के पीछे की वजह 1984 में भारत के कुछ शहरों, खासकर दिल्ली में हुए नरसंहार को बताया जा रहा है। वह दंगा 31 अक्तूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा की गई हत्या के विरोध में हुआ था। उस नरसंहार के जिम्मेदार चंद कांग्रेसी नेताओं पर तत्काल कोई कानूनी कारवाई नहीं हुई थी। 1984 के आरोपियों पर अगर कोई कार्रवाई हुई, तो मौजूदा सरकार के शासनकाल में। इतने वर्षों में उस कांड के कई गवाह मर चुके हैं और इस वजह से अब कोई कानूनी कारवाई हो पाना बहुत मुश्किल है। फिर भी निहित स्वार्थी तत्व इसे बेवजह हवा देकर माहौल खराब करने में लगे हुए हैं।
आश्चर्य नहीं कि लंबे समय से कई वरिष्ठ खालिस्तानी नेताओं को पनाह देने वाले पाकिस्तान को इसमें एक अवसर दिखा है। भारतीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने खालिस्तान लिबरेशन फोर्स और बब्बर खालसा इंटरनेशनल जैसे समूहों को पंजाब में आतंकवादी गतिविधियों को चलाने और यूरोप व उत्तरी अमेरिका में सिख कट्टरपंथियों के साथ संपर्क बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। भारत-विरोधी प्रचार के हिस्से के रूप में अलगाववादियों के जत्थे ननकाना साहिब और पाकिस्तान के अन्य गुरुद्वारों में अपने खास मकसद से यात्रा करते हैं। पिछले साल भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पाकिस्तान, कनाडा, ब्रिटेन और इटली स्थित अलगाववादी गुटों से जुड़े आठ से अधिक खालिस्तानी मॉड्यूलों को बेअसर किया था।
पंजाब के भीतर खालिस्तानी भावना के इस पुनर्जागरण में 1980 और 1990 के दशक के दोहराव की आशंका नहीं है, क्योंकि वहां के आम लोगों का अब कट्टरपंथियों को समर्थन नहीं मिल रहा है। फिर भी यह हिंसा की छिटपुट घटनाओं को जन्म देता है, जैसे कि पिछले दो वर्षों में हिंदू और अन्य सामाजिक-धार्मिक समूहों को लक्षित कर हमलों की एक शृंखला चलाई गई, जिसमें छह लोग मारे गए। ये कट्टरपंथी तत्व कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा कर सकते हैं। पंजाब पहले से ही कृषि संकट, बेरोजगारी और नशे की लत से जूझ रहा है। पाकिस्तान से समर्थन पाने वाले इन कट्टरपंथी तत्वों के भारत विरोधी प्रचार और उनके राजनीतिक दबदबे को कम करना एक बड़ी चुनौती होगा।