बुली बाई ऐप: हमारी नई पीढ़ी की यह कैसी सोच है?

बुली ऐप पर होने वाली महिलाओं की यह नीलामी हालांकि वर्च्युअल ही है

Update: 2022-01-15 07:34 GMT
बुली बाई एप के जरिए चुनिंदा मुस्लिम महिलाओं और इंस्टाग्राम पर हिंदू महिलाओं को बदनाम करने का चला सुनियोजित अभियान यह सोचने पर विवश करता है कि हमारी नई पीढ़ी क्या सोच रही है, क्या कर रही है और इसके पीछे कैसे संस्कार हैं? ये निहायत घटिया और अस्वीकार्य काम करने वाले ज्यादातर 20 से 25 साल तक के युवा हैं। इनके मन में धार्मिक विद्वेष का जहर गहरे तक घर कर गया है। शुरू में इस तरह के ऐप और सोशल मीडिया पर चल रहे दुष्प्रचार पर सिलेक्टिव मौन रखा गया, लेकिन जब इस पर बवाल मचा और मामला पुलिस में गया तो कार्रवाई शुरू हुई।
पुलिस ने इसे साइबर क्राइम मानते हुए देश भर में अलग-अलग छापे मारे और एक 18 वर्षीय किशोरी सहित चार लोगों को अब तक गिरफ्तार किया है। इन लोगों से जो खुलासे हो रहे हैं, वो पूरे समाज को झकझोरने वाले हैं। सवाल यही उठ रहा है कि अगर ये पीढ़ी देश की भावी नागरिक है तो देश के भविष्य में क्या होने वाला है, देश किस राह पर जाने वाला है।
बुली ऐप और हमारा समाज
बुली ऐप पर होने वाली महिलाओं की यह नीलामी हालांकि वर्च्युअल ही है
, इसके मूल में नफरत और विधर्मी महिलाओं का निहायत निम्न स्तर पर जाकर मजाक उड़ाना है। बुली ऐप पर जिन महिलाओं की तस्वीरें शेयर की जाती थीं, वो ज्यादातर वो मुखर मुस्लिम महिलाएं हैं, जिन्हें सेक्युलर या हिंदू कट्टरता का विरोधी माना जाता है।
बुल्ली ऐप के पहले पिछले साल एक सुल्ली ऐप भी सामने आया था, लेकिन उसकी चर्चा कम हुई थी। यह ऐप ओंकारेश्वर ठाकुर नाम के युवक ने बनाया था और पुलिस में एफआईआर होने के बाद उसने यह ऐप डिलीट भी कर दिया था। दिल्ली पुलिस ने ओंकारेश्वर को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर से गिरफ्तार किया था। हालांकि गिरफ्तारी के बाद ओंकारेश्वर ने कहा कि अगर मैं गलत हूं तो मुझे फांसी पर चढ़ा देना।
दिल्ली पुलिस के अनुसार, सुल्ली ऐप केस में ग्रुप के सदस्यों ने 50 से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं की फोटो डाली थी। हंगामा हुआ तो उसने गिटहब पर बनाए ऐप और ट्विटर पर बनाए ट्रेडमहासभा ग्रुप को डिलीट कर दिया था। ओंकारेश्वर अपने सभी डिजिटल फुटप्रिंट मिटा चुका था, इसलिए उसे पकड़ाए जाने का जरा भी अंदाजा नहीं था।
पूछताछ में उसने दिल्ली पुलिस को बताया था कि उसने इंदौर में बीसीए तक की पढ़ाई की है। बाद में वह फ्रीलांसिंग करने लगा था और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताता था। ओंकारेश्वर के मुताबिक उसने देखा कि ट्विटर पर कुछ मुस्लिम महिलाएं हिंदू धर्म पर गलत टिप्पणी करती हैं। ऐसे ट्वीट को वह उस क्षेत्र के पुलिस अधिकारियों को टैग कर देता था।
बुली बाई ऐप का मास्टरमाइंड नीरज विश्नोई मूलत:राजस्थान के नागौर का रहने वाला है। पूछताछ में उसने दिल्ली पुलिस की साइबर सेल को बताया कि उसने बुली बाई एप पर सौ से ज्यादा महिलाों की प्रोफाइल बनाई थी।
इनमें अधिकतर सेलिब्रिटी, पत्रकार व एक्टिविस्ट थीं। नीरज के अनुसार उसने यह काम प्रतिक्रियास्वरूप किया क्योंकि दूसरे समुदाय के लोगों ने हिंदू देवी-देवताओं के नाम से कई अश्लील ग्रुप बना रखे थे। उन ग्रुप्स में हिंदू महिलाओं को टारगेट किया जाता था। इसका बदला लेने के लिए उसने बुली बाई ऐप तैयार किया था। जांच में यह भी सामने आया है कि ऐप पर एंटी हिंदू विचारधारा वाली कुछ हिंदू महिलाओं की भी बोली लगाई जाती थी।
नीरज ने इसके लिए पहले से चल रहे सुल्ली डील्स की कोडिंग को कॉपी किया और ग्राफिक्स को एडिट कर के ठीक वैसा ही ऐप तैयार किया। खास बात यह थी कि इस बोली में सबसे कम बोली लगाने वाला ही नीलामी जीतता था। नीलामी के बाद सम्बन्धित महिला की प्रोफाइल फोटो के स्क्रीन शॉट ट्विटर पर अपलोड किए जाते थे।
आईटी एक्सपर्ट के अनुसार बुली बाई ऐप माइक्रोसॉफ्ट के ओपन सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट साइट गिटहब पर बनाया गया था।
क्या थी आखिर पूरी प्रक्रिया?

नीलामी का लिंक ट्विटर पर फर्जी अकाउंट @giyu44 के नाम से अपलोड किया जाता था। ये काम 24 घंटे चलता था और इसके लिए वॉयस कॉल से भद्दे कमेंट भी किए जाते थे। इससे यूजर के पास भी नोटिफिकेशन पहुंच जाता था। नए यूजर भी ऑक्शन से जुड़ जाते थे। बोली लगाने वाले वॉयस कॉल से एक दूसरे से जुड़े होते थे।
बोली महिला की खूबसूरती के हिसाब से लगती थी। उसे बेइज्जत करने के लिए सर्वाधिक सुंदर महिला की सबसे कम बोली लगाई जाती थी। न्यूनतम बोली 1 से 2 पैसे तक की होती थी। इस गंदे खेल में ज्यादातर 20 से 25 साल के युवा शामिल थे। ये सभी अपनी पहचान छुपाने के लिए फर्जी आईडी बनाते थे। पुलिस अब इन लोगों को भी पकड़ रही है।
वैसे नीरज को मुगालता था कि उसने एप बनाने के लिए प्रोटोन मेल और वीपीएन जैसी टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है, इसलिए वो पकड़ में नहीं आएगा। अति आत्मविश्वास के चलते वह पुलिस को चैलेंज कर रहा था। अंतत: पुलिस की स्पेशल सेल ने ट्विटर पर जाल बिछाया और 6 जनवरी को वीपीएन ब्रेक कर उसे ट्रेस कर लिया।
आईटी एक्सपर्ट के अनुसार बुली बाई ऐप माइक्रोसॉफ्ट के ओपन सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट साइट गिटहब पर बनाया गया था। नीरज ने गिटहब पर बुली बाई ऐप को नवंबर 2021 में डेवलप कर दिसंबर में अपडेट किया था। गिटहब में ऐप डेवलप करने के लिए मेल आईडी से लॉगिन करना होता है। मेल आईडी ट्रेस न हो इसके लिए नीरज ने स्विजरलैंड की कंपनी प्रोटोन से एन्क्रिप्टेड मेल आईडी, जिसे ट्रेस नहीं किया जा सकता। कंपनी भी इसे गोपनीय रखती है।
लेकिन यह मामला इकतरफा नहीं है। इसके पहले संदेश सेवा 'टेलीग्राम' पर एक विशिष्ट चैनल को सोशल मीडिया पर एक खास समुदाय के यूजर्स को चिन्हित किया गया। यह समुदाय हिंदू महिलाओं को निशाना बना रहा था, उनकी तस्वीरें साझा करने के साथ ही भद्दे कमेंट भी कर रहा था। केन्द्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार हिंदू महिलाओं को कथित तौर पर निशाना बनाने वाले एक टेलीग्राम चैनल को ब्लॉक कर दिया गया है।
अब ये सवाल बेमानी है कि इसकी शुरूआत पहले किसने की?
बहरहाल, बुल्ली बाई ऐप मामले में मुंबई पुलिस के साइबर सेल ने उत्तराखंड से 19 वर्षीय युवती श्वेता सिंह और इंजीनियरिंग के छात्र मयंक रावल को तथा बेंगलुरू से सिविल इंजीनियरिंग के छात्र विशाल कुमार झा को गिरफ्तार किया है। श्वेता सिंह तो 12 वीं छात्रा है। उसके परिजनों का कहना है कि वो निर्दोष है, उसका अकाउंट हैक किसी ने यह ऐप बनाया है। सच्चाई क्या है, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा।
मुंबई पुलिस का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाने वाले 'बुली बाई' ऐप के प्रचार में शामिल लोगों ने गुमराह करने के लिए ट्विटर हैंडल पर सिख समुदाय से जुड़े नामों का इस्तेमाल किया ताकि सांप्रदायिक तनाव पैदा हो। यह भी उजागर हुआ है कि युवाओं के मन में साम्प्रदायिक विद्वेष भरने के लिए कुछ राजनीतिक संगठनो द्वारा अत्यंत परिष्कृत 'टैक फाॅग' ऐप का उपयोग किया जा रहा है।
अब ये सवाल बेमानी है कि इसकी शुरूआत पहले किसने की? उन्होंने, जिन्होंने हिंदू देवीताओं पर अश्लील कमेंट शुरू किए या फिर उन्होंने, जो सुल्ली या बुली ऐप पर हिंदू विरोधी महिलाों की नीलामी या भद्दे कमेंट कर रहे थे? मुद्दा यह है कि जिसने भी यह निंदनीय सिलसिला शुरू किया, उसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई क्यों नहीं की गई? अगर कार्रवाई हो गई होती तो मामला इतना नहीं बिगड़ता।
धार्मिक विरोध, राजनीतिक असहमतियां अपनी जगह हैं, लेकिन इसकी आड़ में आस्था के बिंदुओं और नारी की अस्मत से खिलवाड़ की इजाजत तो नहीं दी जा सकती। यह ऐसा खतरनाक खेल है, जिसकी देश को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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